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۲-سلاطین 6:24 - किताबे-मुक़द्दस

24 कुछ देर के बाद शाम का बादशाह बिन-हदद अपनी पूरी फ़ौज जमा करके इसराईल पर चढ़ आया और सामरिया का मुहासरा किया।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

24 کچھ عرصہ بعد بِن ہددؔ شاہِ ارام نے اَپنی تمام فَوج جمع کرکے سامریہؔ پر حملہ کر دیا اَور شہر کا محاصرہ کر لیا۔

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کِتابِ مُقادّس

24 اِس کے بعد اَیسا ہُؤا کہ بِن ہدد شاہِ اراؔم اپنی سب فَوج اِکٹّھی کر کے چڑھ آیا اور سامرِؔیہ کا مُحاصرہ کر لِیا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

24 کچھ دیر کے بعد شام کا بادشاہ بن ہدد اپنی پوری فوج جمع کر کے اسرائیل پر چڑھ آیا اور سامریہ کا محاصرہ کیا۔

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۲-سلاطین 6:24
12 حوالہ جات  

एक दिन शाम के बादशाह बिन-हदद ने अपनी पूरी फ़ौज को जमा किया। 32 इत्तहादी बादशाह भी अपने रथों और घोड़ों को लेकर आए। इस बड़ी फ़ौज के साथ बिन-हदद ने सामरिया का मुहासरा करके इसराईल से जंग का एलान किया।


कहीं कोई छोटा शहर था जिसमें थोड़े-से अफ़राद बसते थे। एक दिन एक ताक़तवर बादशाह उससे लड़ने आया। उसने उसका मुहासरा किया और इस मक़सद से उसके इर्दगिर्द बड़े बड़े बुर्ज खड़े किए।


सल्मनसर पूरे मुल्क में से गुज़रकर सामरिया तक पहुँच गया। तीन साल तक उसे शहर का मुहासरा करना पड़ा,


शाम के बादशाह ने रथों पर मुक़र्रर अपने 32 अफ़सरों को हुक्म दिया था, “सिर्फ़ और सिर्फ़ बादशाह पर हमला करें। किसी और से मत लड़ना, ख़ाह वह छोटा हो या बड़ा।”


दुश्मन तेरे मुल्क के तमाम शहरों का मुहासरा करेगा। आख़िरकार जिन ऊँची और मज़बूत फ़सीलों पर तू एतमाद करेगा वह भी सब गिर पड़ेंगी। दुश्मन उस मुल्क का कोई भी शहर नहीं छोड़ेगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देनेवाला है।


इसलिए शाहे-बाबल नबूकदनज़्ज़र तमाम फ़ौज को अपने साथ लेकर दुबारा यरूशलम पहुँचा ताकि उस पर हमला करे। सिदक़ियाह की हुकूमत के नवें साल में बाबल की फ़ौज यरूशलम का मुहासरा करने लगी। यह काम दसवें महीने के दसवें दिन शुरू हुआ। पूरे शहर के इर्दगिर्द बादशाह ने पुश्ते बनवाए।


हिज़क़ियाह की हुकूमत के चौथे साल में और इसराईल के बादशाह होसेअ की हुकूमत के सातवें साल में असूर के बादशाह सल्मनसर ने इसराईल पर हमला किया। सामरिया शहर का मुहासरा करके


शहर में काल है। अगर उसमें जाएँ तो भूके मर जाएंगे, लेकिन यहाँ रहने से भी कोई फ़रक़ नहीं पड़ता। तो क्यों न हम शाम की लशकरगाह में जाकर अपने आपको उनके हवाले करें। अगर वह हमें ज़िंदा रहने दें तो अच्छा रहेगा, और अगर वह हमें क़त्ल भी कर दें तो कोई फ़रक़ नहीं पड़ेगा। यहाँ रहकर भी हमें मरना ही है।”


एक दिन इलीशा दमिश्क़ आया। उस वक़्त शाम का बादशाह बिन-हदद बीमार था। जब उसे इत्तला मिली कि मर्दे-ख़ुदा आया है


लेकिन फिर काल ने शहर में ज़ोर पकड़ा, और अवाम के लिए खाने की चीज़ें न रहीं। चौथे महीने के नवें दिन


चुनाँचे मैं हज़ाएल के घराने पर आग नाज़िल करूँगा, और बिन-हदद के महल नज़रे-आतिश हो जाएंगे।


शाम और इसराईल के दरमियान जंग थी। जब कभी बादशाह अपने अफ़सरों से मशवरा करके कहता, “हम फ़ुलाँ फ़ुलाँ जगह अपनी लशकरगाह लगा लेंगे”


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