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۲-کرنتھیوں 11:26 - किताबे-मुक़द्दस

26 मेरे बेशुमार सफ़रों के दौरान मुझे कई तरह के ख़तरों का सामना करना पड़ा, दरियाओं और डाकुओं का ख़तरा, अपने हमवतनों और ग़ैरयहूदियों के हमलों का ख़तरा। जहाँ भी मैं गया हूँ वहाँ यह ख़तरे मौजूद रहे, ख़ाह मैं शहर में था, ख़ाह ग़ैरआबाद इलाक़े में या समुंदर में। झूटे भाइयों की तरफ़ से भी ख़तरे रहे हैं।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

26 میں اَپنے سفر کے دَوران بارہا دریاؤں کے خطروں میں، ڈاکوؤں کے خطروں میں، اَپنی قوم کے اَور غَیریہُودیوں کے، شہر کے، بیابان کے، سمُندر کے خطروں میں؛ جھُوٹے مُومِنین بھائیوں کے خطروں میں گھِرا رہا ہُوں۔

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کِتابِ مُقادّس

26 مَیں بارہا سفر میں۔ دریاؤں کے خطروں میں۔ ڈاکُوؤں کے خطروں میں۔ اپنی قَوم سے خطروں میں۔ غَیر قَوموں سے خطروں میں۔ شہر کے خطروں میں۔ بیابان کے خطروں میں۔ سمُندر کے خطروں میں۔ جُھوٹے بھائِیوں کے خطروں میں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

26 میرے بےشمار سفروں کے دوران مجھے کئی طرح کے خطروں کا سامنا کرنا پڑا، دریاؤں اور ڈاکوؤں کا خطرہ، اپنے ہم وطنوں اور غیریہودیوں کے حملوں کا خطرہ۔ جہاں بھی مَیں گیا ہوں وہاں یہ خطرے موجود رہے، خواہ مَیں شہر میں تھا، خواہ غیرآباد علاقے میں یا سمندر میں۔ جھوٹے بھائیوں کی طرف سے بھی خطرے رہے ہیں۔

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۲-کرنتھیوں 11:26
35 حوالہ جات  

फिर कुछ ग़ैरयहूदियों और यहूदियों में जोश आ गया। उन्होंने अपने लीडरों समेत फ़ैसला किया कि हम पौलुस और बरनबास की तज़लील करके उन्हें संगसार करेंगे।


मिन्नत की कि वह उनकी रिआयत करके पौलुस को यरूशलम मुंतक़िल करे। वजह यह थी कि वह घात में बैठकर रास्ते में पौलुस को क़त्ल करना चाहते थे।


मैंने बड़ी इंकिसारी से ख़ुदावंद की ख़िदमत की है। मुझे बहुत आँसू बहाने पड़े और यहूदियों की साज़िशों से मुझ पर बहुत आज़माइशें आईं।


यह देखकर बाक़ी यहूदी हसद करने लगे। उन्होंने गलियों में आवारा फिरनेवाले कुछ शरीर आदमी इकट्ठे करके जुलूस निकाला और शहर में हलचल मचा दी। फिर यासोन के घर पर हमला करके उन्होंने पौलुस और सीलास को ढूँडा ताकि उन्हें अवामी इजलास के सामने पेश करें।


फिर यहूदियों ने शहर के लीडरों और यहूदी ईमान रखनेवाली कुछ बारसूख ग़ैरयहूदी ख़वातीन को उकसाकर लोगों को पौलुस और बरनबास को सताने पर उभारा। आख़िरकार उन्हें शहर की सरहद्दों से निकाल दिया गया।


और चंद यही चाहते थे। लेकिन यह झूटे भाई थे जो चुपके से अंदर घुस आए थे ताकि जासूस बनकर हमारी उस आज़ादी के बारे में मालूमात हासिल कर लें जो हमें मसीह में मिली है। यह हमें ग़ुलाम बनाना चाहते थे,


जब मैं दमिश्क़ शहर में था तो बादशाह अरितास के गवर्नर ने शहर के तमाम दरवाज़ों पर अपने पहरेदार मुक़र्रर किए ताकि वह मुझे गिरिफ़्तार करें।


अगर मैं सिर्फ़ इसी ज़िंदगी की उम्मीद रखते हुए इफ़िसुस में वहशी दरिंदों से लड़ा तो मुझे क्या फ़ायदा हुआ? अगर मुरदे जी नहीं उठते तो इस क़ौल के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारना बेहतर होगा कि “आओ, हम खाएँ पिएँ, क्योंकि कल तो मर ही जाना है।”


इलाही निशानों और मोजिज़ों की क़ुव्वत से और अल्लाह के रूह की क़ुदरत से सरंजाम दिया है। यों मैंने यरूशलम से लेकर सूबा इल्लुरिकुम तक सफ़र करते करते अल्लाह की ख़ुशख़बरी फैलाने की ख़िदमत पूरी की है।


झगड़े ने इतना ज़ोर पकड़ा कि कमाँडर डर गया, क्योंकि ख़तरा था कि वह पौलुस के टुकड़े कर डालें। इसलिए उसने अपने फ़ौजियों को हुक्म दिया कि वह उतरें और पौलुस को यहूदियों के बीच में से छीनकर क़िले में वापस लाएँ।


तक़रीबन उस वक़्त अल्लाह की राह एक शदीद हंगामे का बाइस हो गई।


जब अपुल्लोस कुरिंथुस में ठहरा हुआ था तो पौलुस एशियाए-कूचक के अंदरूनी इलाक़े में से सफ़र करते करते साहिली शहर इफ़िसुस में आया। वहाँ उसे कुछ शागिर्द मिले


उन दिनों में जब गल्लियो सूबा अख़या का गवर्नर था तो यहूदी मुत्तहिद होकर पौलुस के ख़िलाफ़ जमा हुए और उसे अदालत में गल्लियो के सामने लाए।


जबकि पौलुस ने सीलास को ख़िदमत के लिए चुन लिया। मक़ामी भाइयों ने उन्हें ख़ुदावंद के फ़ज़ल के सुपुर्द किया और वह रवाना हुए।


फिर कुछ यहूदी पिसिदिया के अंताकिया और इकुनियुम से वहाँ आए और हुजूम को अपनी तरफ़ मायल किया। उन्होंने पौलुस को संगसार किया और शहर से बाहर घसीटकर ले गए। उनका ख़याल था कि वह मर गया है,


लेकिन जब यहूदियों ने हुजूम को देखा तो वह हसद से जल गए और पौलुस की बातों की तरदीद करके कुफ़र बकने लगे।


लेकिन फिर थिस्सलुनीके के यहूदियों को यह ख़बर मिली कि पौलुस बेरिया में अल्लाह का कलाम सुना रहा है। वह वहाँ भी पहुँचे और लोगों को उकसाकर हलचल मचा दी।


जहाँ वह तीन माह तक ठहरा। वह मुल्के-शाम के लिए जहाज़ पर सवार होनेवाला था कि पता चला कि यहूदियों ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की है। इस पर उसने मकिदुनिया से होकर वापस जाने का फ़ैसला किया।


फ़ौजी क़ैदियों को क़त्ल करना चाहते थे ताकि वह जहाज़ से तैरकर फ़रार न हो सकें।


ग़रज़ कौन हमें मसीह की मुहब्बत से जुदा करेगा? क्या कोई मुसीबत, तंगी, ईज़ारसानी, काल, नंगापन, ख़तरा या तलवार?


और हम भी हर वक़्त अपनी जान ख़तरे में क्यों डाले हुए हैं?


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