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۲-توارِیخ 26:9 - किताबे-मुक़द्दस

9 यरूशलम में उज़्ज़ियाह ने कोने के दरवाज़े, वादी के दरवाज़े और फ़सील के मोड़ पर मज़बूत बुर्ज बनवाए।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

9 اِن کے علاوہ عُزّیاہؔ نے یروشلیمؔ میں کونے کے پھاٹک پر اَور وادی کے پھاٹک پر اَور فصیل کے موڑ پر بُرج بنائے اَور اُنہیں مضبُوط کیا۔

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کِتابِ مُقادّس

9 اور عُزّیاہ نے یروشلیِم میں کونے کے پھاٹک اور وادی کے پھاٹک اور دِیوار کے موڑ پر بُرج بنوائے اور اُن کو مُحکم کِیا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

9 یروشلم میں عُزیّاہ نے کونے کے دروازے، وادی کے دروازے اور فصیل کے موڑ پر مضبوط بُرج بنوائے۔

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۲-توارِیخ 26:9
10 حوالہ جات  

हनून ने ज़नूह के बाशिंदों समेत वादी के दरवाज़े को तामीर किया। शहतीरों से उसे बनाकर उन्होंने किवाड़, चटख़नियाँ और कुंडे लगाए। इसके अलावा उन्होंने फ़सील को वहाँ से कचरे के दरवाज़े तक खड़ा किया। इस हिस्से का फ़ासला तक़रीबन 1,500 फ़ुट यानी आधा किलोमीटर था।


इसराईल के बादशाह युआस ने यहूदाह के बादशाह अमसियाह बिन युआस बिन अख़ज़ियाह को वहीं बैत-शम्स में गिरिफ़्तार कर लिया। फिर वह उसे यरूशलम लाया और शहर की फ़सील इफ़राईम नामी दरवाज़े से लेकर कोने के दरवाज़े तक गिरा दी। इस हिस्से की लंबाई तक़रीबन 600 फ़ुट थी।


इसराईल के बादशाह यहुआस ने यहूदाह के बादशाह अमसियाह बिन युआस बिन अख़ज़ियाह को वहीं बैत-शम्स में गिरिफ़्तार कर लिया। फिर वह यरूशलम गया और शहर की फ़सील इफ़राईम नामी दरवाज़े से कोने के दरवाज़े तक गिरा दी। इस हिस्से की लंबाई तक़रीबन 600 फ़ुट थी।


पूरा मुल्क शिमाली शहर जिबा से लेकर यरूशलम के जुनूब में वाक़े शहर रिम्मोन तक खुला मैदान बन जाएगा। सिर्फ़ यरूशलम अपनी ही ऊँची जगह पर रहेगा। उस की पुरानी हुदूद भी क़ायम रहेंगी यानी बिनयमीन के दरवाज़े से लेकर पुराने दरवाज़े और कोने के दरवाज़े तक, फिर हननेल के बुर्ज से लेकर उस जगह तक जहाँ शाही मै बनाई जाती है।


रब फ़रमाता है, “वह वक़्त आनेवाला है जब यरूशलम को रब के लिए नए सिरे से तामीर किया जाएगा। तब उस की फ़सील हननेल के बुर्ज से लेकर कोने के दरवाज़े तक तैयार हो जाएगी।


आख़िरी हिस्सा भेड़ के दरवाज़े पर ख़त्म हुआ। सुनारों और ताजिरों ने उसे खड़ा किया।


अगला हिस्सा बिन्नूई बिन हनदाद की ज़िम्मादारी थी। यह अज़रियाह के घर से शुरू हुआ और मुड़ते मुड़ते कोने पर ख़त्म हुआ।


इसलिए मैं वादीए-क़िदरोन में से गुज़रा। अब तक अंधेरा ही अंधेरा था। वहाँ भी मैं फ़सील का मुआयना करता गया। फिर मैं मुड़ा और वादी के दरवाज़े में से दुबारा शहर में दाख़िल हुआ।


चुनाँचे मैं अंधेरे में वादी के दरवाज़े से शहर से निकला और जुनूब की तरफ़ अज़दहे के चश्मे से होकर कचरे के दरवाज़े तक पहुँचा। हर जगह मैंने गिरी हुई फ़सील और भस्म हुए दरवाज़ों का मुआयना किया।


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