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۱-تیمتھیس 6:4 - किताबे-मुक़द्दस

4 वह ख़ुदपसंदी से फूला हुआ है और कुछ नहीं समझता। ऐसा शख़्स बहस-मुबाहसा करने और ख़ाली बातों पर झगड़ने में ग़ैरसेहतमंद दिलचस्पी लेता है। नतीजे में हसद, झगड़े, कुफ़र और बदगुमानी पैदा होती है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

4 تو وہ مغروُر ہیں اَور کُچھ نہیں جانتے۔ بَلکہ اُنہیں صِرف فُضول بحث اَور لَفظی تکرار کرنے کا شوق ہے جِن کا نتیجہ حَسد، جھگڑے، بدگوئی اَور بدزبانی ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

4 وہ مغرُور ہے اور کُچھ نہیں جانتا بلکہ اُسے بحث اور لفظی تکرار کرنے کا مرض ہے۔ جِن سے حَسد اور جھگڑے اور بَدگوئِیاں اور بدگُمانِیاں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

4 وہ خود پسندی سے پھولا ہوا ہے اور کچھ نہیں سمجھتا۔ ایسا شخص بحث مباحثہ کرنے اور خالی باتوں پر جھگڑنے میں غیرصحت مند دل چسپی لیتا ہے۔ نتیجے میں حسد، جھگڑے، کفر اور بدگمانی پیدا ہوتی ہے۔

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۱-تیمتھیس 6:4
44 حوالہ جات  

हमाक़त और जहालत की बहसों से किनारा करें। आप तो जानते हैं कि इनसे सिर्फ़ झगड़े पैदा होते हैं।


वह नमकहराम, ग़ैरमुहतात और ग़ुरूर से फूले हुए होंगे। अल्लाह से मुहब्बत रखने के बजाए उन्हें ऐशो-इशरत प्यारी होगी।


वह नौमुरीद न हो वरना ख़तरा है कि वह फूलकर इबलीस के जाल में उलझ जाए और यों उस की अदालत की जाए।


लेकिन यह लोग हर ऐसी बात के बारे में कुफ़र बकते हैं जो उनकी समझ में नहीं आती। और जो कुछ वह फ़ितरी तौर पर बेसमझ जानवरों की तरह समझते हैं वही उन्हें तबाह कर देता है।


लेकिन यह झूटे उस्ताद बेअक़्ल जानवरों की मानिंद हैं, जो फ़ितरी तौर पर इसलिए पैदा हुए हैं कि उन्हें पकड़ा और ख़त्म किया जाए। जो कुछ वह नहीं समझते उस पर वह कुफ़र बकते हैं। और जंगली जानवरों की तरह वह भी हलाक हो जाएंगे।


लोगों को इन बातों की याद दिलाते रहें और उन्हें संजीदगी से अल्लाह के हुज़ूर समझाएँ कि वह बाल की खाल उतारकर एक दूसरे से न झगड़ें। यह बेफ़ायदा है बल्कि सुननेवालों को बिगाड़ देता है।


यह लोग बुड़बुड़ाते और शिकायत करते रहते हैं। यह सिर्फ़ अपनी ज़ाती ख़ाहिशात पूरी करने के लिए ज़िंदगी गुज़ारते हैं। यह अपने बारे में शेख़ी मारते और अपने फ़ायदे के लिए दूसरों की ख़ुशामद करते हैं।


यह मग़रूर बातें करते हैं जिनके पीछे कुछ नहीं है और ग़ैरअख़लाक़ी जिस्मानी शहवतों से ऐसे लोगों को उकसाते हैं जो हाल ही में धोके की ज़िंदगी गुज़ारनेवालों में से बच निकले हैं।


यह शरीअत के उस्ताद बनना चाहते हैं, लेकिन उन्हें उन बातों की समझ नहीं आती जो वह कर रहे हैं और जिन पर वह इतने एतमाद से इसरार कर रहे हैं।


उन्हें फ़रज़ी कहानियों और ख़त्म न होनेवाले नसबनामे के पीछे न लगने दें। इनसे महज़ बहस-मुबाहसा पैदा होता है और अल्लाह का नजातबख़्श मनसूबा पूरा नहीं होता। क्योंकि यह मनसूबा सिर्फ़ ईमान से तकमील तक पहुँचता है।


मेरे अज़ीज़ भाइयो, इसका ख़याल रखना, हर शख़्स सुनने में तेज़ हो, लेकिन बोलने और ग़ुस्सा करने में धीमा।


लेकिन बेहूदा बहसों, नसबनामों, झगड़ों और शरीअत के बारे में तनाज़ों से बाज़ रहें, क्योंकि ऐसा करना बेफ़ायदा और फ़ज़ूल है।


इससे उनके और बरनबास और पौलुस के दरमियान नाइत्तफ़ाक़ी पैदा हो गई और दोनों उनके साथ ख़ूब बहस-मुबाहसा करने लगे। आख़िरकार जमात ने पौलुस और बरनबास को मुक़र्रर किया कि वह चंद एक और मक़ामी ईमानदारों के साथ यरूशलम जाएँ और वहाँ के रसूलों और बुज़ुर्गों को यह मामला पेश करें।


तू कहता है, ‘मैं अमीर हूँ, मैंने बहुत दौलत हासिल कर ली है और मुझे किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं।’ और तू नहीं जानता कि तू असल में बदबख़्त, क़ाबिले-रहम, ग़रीब, अंधा और नंगा है।


वह हर एक की मुख़ालफ़त करेगा जो ख़ुदा और माबूद कहलाता है और अपने आपको उन सबसे बड़ा ठहराएगा। हाँ, वह अल्लाह के घर में बैठकर एलान करेगा, “मैं अल्लाह हूँ।”


ऐसे लोग आपको मुजरिम न ठहराएँ जो ज़ाहिरी फ़रोतनी और फ़रिश्तों की पूजा पर इसरार करते हैं। बड़ी तफ़सील से अपनी रोयाओं में देखी हुई बातें बयान करते करते उनके ग़ैररूहानी ज़हन ख़ाहमख़ाह फूल जाते हैं।


सब कुछ बुड़बुड़ाए और बहस-मुबाहसा किए बग़ैर करें


ख़ुदग़रज़ न हों, न बातिल इज़्ज़त के पीछे पड़ें बल्कि फ़रोतनी से दूसरों को अपने से बेहतर समझें।


बेशक बाज़ तो हसद और मुख़ालफ़त के बाइस मसीह की मुनादी कर रहे हैं, लेकिन बाक़ियों की नीयत अच्छी है,


जो समझता है कि मैं कुछ हूँ अगरचे वह हक़ीक़त में कुछ भी नहीं है तो वह अपने आपको फ़रेब दे रहा है।


न हम मग़रूर हों, न एक दूसरे को मुश्तइल करें या एक दूसरे से हसद करें।


अगर आप एक दूसरे को काटते और फाड़ते हैं तो ख़बरदार! ऐसा न हो कि आप एक दूसरे को ख़त्म करके सबके सब तबाह हो जाएँ।


हाँ, बल्कि आप यह भी बरदाश्त करते हैं जब लोग आपको ग़ुलाम बनाते, आपको लूटते, आपसे ग़लत फ़ायदा उठाते, नख़रे करते और आपको थप्पड़ मारते हैं।


अव्वल तो मैं सुनता हूँ कि जब आप जमात की सूरत में इकट्ठे होते हैं तो आपके दरमियान पार्टीबाज़ी नज़र आती है। और किसी हद तक मुझे इसका यक़ीन भी है।


लेकिन इस सिलसिले में अगर कोई झगड़ने का शौक़ रखे तो जान ले कि न हमारा यह दस्तूर है, न अल्लाह की जमातों का।


कोई अपने आपको फ़रेब न दे। अगर आपमें से कोई समझे कि वह इस दुनिया की नज़र में दानिशमंद है तो फिर ज़रूरी है कि वह बेवुक़ूफ़ बने ताकि वाक़ई दानिशमंद हो जाए।


अभी तक आप जिस्मानी हैं, क्योंकि आपमें हसद और झगड़ा पाया जाता है। क्या इससे यह साबित नहीं होता कि आप जिस्मानी हैं और रूह के बग़ैर चलते हैं?


जिसका ईमान कमज़ोर है उसे क़बूल करें, और उसके साथ बहस-मुबाहसा न करें।


हम शरीफ़ ज़िंदगी गुज़ारें, ऐसे लोगों की तरह जो दिन की रौशनी में चलते हैं। इसलिए लाज़िम है कि हम इन चीज़ों से बाज़ रहें : बदमस्तों की रंगरलियों और शराबनोशी से, ज़िनाकारी और ऐयाशी से, और झगड़े और हसद से।


एक दूसरे के साथ अच्छे ताल्लुक़ात रखें। ऊँची सोच न रखें बल्कि दबे हुओं से रिफ़ाक़त रखें। अपने आपको दाना मत समझें।


लेकिन कुछ लोग ख़ुदग़रज़ हैं और सच्चाई की नहीं बल्कि नारास्ती की पैरवी करते हैं। उन पर अल्लाह का ग़ज़ब और क़हर नाज़िल होगा।


लेकिन आपका झगड़ा मज़हबी तालीम, नामों और आपकी यहूदी शरीअत से ताल्लुक़ रखता है, इसलिए उसे ख़ुद हल करें। मैं इस मामले में फ़ैसला करने के लिए तैयार नहीं हूँ।”


वहाँ काफ़ी अरसे से एक आदमी रहता था जिसका नाम शमौन था। वह जादूगर था और उसके हैरतअंगेज़ काम से सामरिया के लोग बहुत मुतअस्सिर थे। उसका अपना दावा था कि मैं कोई ख़ास शख़्स हूँ।


न सिर्फ़ यह बल्कि तुम रोज़ा रखने के साथ साथ झगड़ते और लड़ते भी हो। तुम एक दूसरे को शरारत के मुक्के मारने से भी नहीं चूकते। यह कैसी बात है? अगर तुम यों रोज़ा रखो तो इसकी तवक़्क़ो नहीं कर सकते कि तुम्हारी बात आसमान तक पहुँचे।


क्या कोई दिखाई देता है जो अपने आपको दानिशमंद समझता है? उस की निसबत अहमक़ के सुधरने की ज़्यादा उम्मीद है।


जो शेख़ी मारकर तोह्फ़ों का वादा करे लेकिन कुछ न दे वह उन तूफ़ानी बादलों की मानिंद है जो बरसे बग़ैर गुज़र जाते हैं।


कुछ लोग अमीर का रूप भरकर फिरते हैं गो ग़रीब हैं। दूसरे ग़रीब का रूप भरकर फिरते हैं गो अमीरतरीन हैं।


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