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۱-تیمتھیس 5:4 - किताबे-मुक़द्दस

4 अगर किसी बेवा के बच्चे या पोते-नवासे हों तो उस की मदद करना उन्हीं का फ़र्ज़ है। हाँ, वह सीखें कि ख़ुदातरस होने का पहला फ़र्ज़ यह है कि हम अपने घरवालों की फ़िकर करें और यों अपने माँ-बाप, दादा-दादी और नाना-नानी को वह कुछ वापस करें जो हमें उनसे मिला है, क्योंकि ऐसा अमल अल्लाह को पसंद है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

4 اَور اگر کسی بِیوہ کے لڑکے یا پوتے ہوں تو اُن کی پہلی ذمّہ داری اَپنے گھر والوں کے تئیں اَپنا فرائض پہچانتے ہُوئے خُدا کا بندہ بننا سیکھیں اِس طرح اَپنے والدین اَور دادا دادی کے حق اَدا کرنا سیکھیں کیونکہ یہ خُدا کی نظر میں پسندِیدہ ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

4 اور اگر کِسی بیوہ کے بیٹے یا پوتے ہوں تو وہ پہلے اپنے ہی گھرانے کے ساتھ دِین داری کا برتاؤ کرنا اور ماں باپ کا حق ادا کرنا سِیکھیں کیونکہ یہ خُدا کے نزدِیک پسندِیدہ ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

4 اگر کسی بیوہ کے بچے یا پوتے نواسے ہوں تو اُس کی مدد کرنا اُن ہی کا فرض ہے۔ ہاں، وہ سیکھیں کہ خدا ترس ہونے کا پہلا فرض یہ ہے کہ ہم اپنے گھر والوں کی فکر کریں اور یوں اپنے ماں باپ، دادا دادی اور نانا نانی کو وہ کچھ واپس کریں جو ہمیں اُن سے ملا ہے، کیونکہ ایسا عمل اللہ کو پسند ہے۔

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۱-تیمتھیس 5:4
18 حوالہ جات  

यूसुफ़ अपने बाप के पूरे घराने को ख़ुराक मुहैया करता रहा। हर ख़ानदान को उसके बच्चों की तादाद के मुताबिक़ ख़ुराक मिलती रही।


यह अच्छा और हमारे नजातदहिंदा अल्लाह को पसंदीदा है।


फिर वह उनके साथ रवाना होकर नासरत वापस आया और उनके ताबे रहा। लेकिन उस की माँ ने यह तमाम बातें अपने दिल में महफ़ूज़ रखें।


उसके बेटे खड़े होकर उसे मुबारक कहते हैं, उसका शौहर भी उस की तारीफ़ करके कहता है,


फिर वह सब कुछ उठाकर अपने घर वापस ले आई और सास को दिखाया। साथ साथ उसने उसे वह भुने हुए दाने भी दिए जो दोपहर के खाने से बच गए थे।


एक दिन रूत ने अपनी सास से कहा, “मैं खेतों में जाकर फ़सल की कटाई से बची हुई बालें चुन लूँ। कोई न कोई तो मुझे इसकी इजाज़त देगा।” नओमी ने जवाब दिया, “ठीक है बेटी, जाएँ।”


रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, “मैं उनके ख़िलाफ़ यों उठूँगा कि बाबल का नामो-निशान तक नहीं रहेगा। मैं उस की औलाद को रूए-ज़मीन पर से मिटा दूँगा, और एक भी नहीं बचने का।


क़ौम में उस की न औलाद न नसल रहेगी, जहाँ पहले रहता था वहाँ कोई नहीं बचेगा।


उसके 40 बेटे और 30 पोते थे जो 70 गधों पर सफ़र किया करते थे। अबदोन ने आठ साल के दौरान इसराईल की राहनुमाई की।


याक़ूब 17 साल मिसर में रहा। वह 147 साल का था जब फ़ौत हुआ।


लेकिन जिस ईमानदार औरत के ख़ानदान में बेवाएँ हैं उसका फ़र्ज़ है कि वह उनकी मदद करे ताकि वह ख़ुदा की जमात के लिए बोझ न बनें। वरना जमात उन बेवाओं की सहीह मदद नहीं कर सकेगी जो वाक़ई ज़रूरतमंद हैं।


लाज़िम है कि उन्हें चुप करा दिया जाए, क्योंकि यह लालच में आकर कई लोगों के पूरे घर अपनी ग़लत तालीम से ख़राब कर रहे हैं।


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