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۱-سلاطین 12:25 - किताबे-मुक़द्दस

25 यरुबियाम इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े के शहर सिकम को मज़बूत करके वहाँ आबाद हुआ। बाद में उसने फ़नुएल शहर की भी क़िलाबंदी की और वहाँ मुंतक़िल हुआ।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

25 پھر یرُبعامؔ نے اِفرائیمؔ کے پہاڑی علاقہ میں شِکیمؔ کو قلعہ بند کیا اَور وہاں رہنے لگا اَور وہاں سے باہر جا کر اُس پنی ایل کو تعمیر کیا۔

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کِتابِ مُقادّس

25 تب یرُبعاؔم نے اِفرائِیم کے کوہستانی مُلک میں سِکم کو تعمِیر کِیا اور اُس میں رہنے لگا اور وہاں سے نِکل کر اُس نے فنواؔیل کو تعمِیر کِیا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

25 یرُبعام افرائیم کے پہاڑی علاقے کے شہر سِکم کو مضبوط کر کے وہاں آباد ہوا۔ بعد میں اُس نے فنوایل شہر کی بھی قلعہ بندی کی اور وہاں منتقل ہوا۔

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۱-سلاطین 12:25
15 حوالہ جات  

फिर वह फ़नुएल गया और वहाँ का बुर्ज गिराकर शहर के मर्दों को मार डाला।


वह आगे निकलकर फ़नुएल शहर पहुँच गया। वहाँ भी उसने रोटी माँगी, लेकिन फ़नुएल के बाशिंदों ने सुक्कात का-सा जवाब दिया।


इसके बाद उसने एक आदमी बनाम समर को चाँदी के 6,000 सिक्के देकर उससे सामरिया पहाड़ी ख़रीद ली और वहाँ अपना नया दारुल-हुकूमत तामीर किया। पहले मालिक समर की याद में उसने शहर का नाम सामरिया रखा।


एक दिन बाशा बादशाह ने यहूदाह पर हमला करके रामा शहर की क़िलाबंदी की। मक़सद यह था कि न कोई यहूदाह के मुल्क में दाख़िल हो सके, न कोई वहाँ से निकल सके।


रहुबियाम सिकम गया, क्योंकि वहाँ तमाम इसराईली उसे बादशाह मुक़र्रर करने के लिए जमा हो गए थे।


सुलेमान ने अपने तामीरी काम के लिए बेगारी लगाए। ऐसे ही लोगों की मदद से उसने न सिर्फ़ रब का घर, अपना महल, इर्दगिर्द के चबूतरे और यरूशलम की फ़सील बनवाई बल्कि तीनों शहर हसूर, मजिद्दो और जज़र को भी।


एक दिन यरुब्बाल यानी जिदौन का बेटा अबीमलिक अपने मामुओं और माँ के बाक़ी रिश्तेदारों से मिलने के लिए सिकम गया। उसने उनसे कहा,


अब्राम उस मुल्क में से गुज़रकर सिकम के मक़ाम पर ठहर गया जहाँ मोरिह के बलूत का दरख़्त था। उस ज़माने में मुल्क में कनानी क़ौमें आबाद थीं।


लेकिन दिल में अंदेशा रहा कि कहीं इसराईल दुबारा दाऊद के घराने के हाथ में न आ जाए।


तो 80 आदमी वहाँ पहुँचे जो सिकम, सैला और सामरिया से आकर रब के तबाहशुदा घर में उस की परस्तिश करने जा रहे थे। उनके पास ग़ल्ला और बख़ूर की क़ुरबानियाँ थीं, और उन्होंने ग़म के मारे अपनी दाढ़ियाँ मुँडवाकर अपने कपड़े फाड़ लिए और अपनी जिल्द को ज़ख़मी कर दिया था।


यही वजह है कि आज भी इसराईल की औलाद कूल्हे के जोड़ पर की नस को नहीं खाते, क्योंकि याक़ूब की इसी नस को छुआ गया था।


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