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۱-کرنتھیوں 14:15 - किताबे-मुक़द्दस

15 तो फिर क्या करूँ? मैं रूह में दुआ करूँगा, लेकिन अक़्ल को भी इस्तेमाल करूँगा। मैं रूह में हम्दो-सना करूँगा, लेकिन अक़्ल को भी इस्तेमाल में लाऊँगा।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

15 لہٰذا مُجھے کیا کرنا چاہئے؟ میں اَپنی رُوح سے دعا کروں گا، لیکن مَیں اَپنی عقل سے بھی دعا کروں گا، میں اَپنی رُوح سے حَمد کے نغمہ گاؤں گا، لیکن مَیں اَپنی عقل سے بھی گاؤں گا۔

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کِتابِ مُقادّس

15 پس کیا کرنا چاہئے؟ مَیں رُوح سے بھی دُعا کرُوں گا اور عقل سے بھی دُعا کرُوں گا۔ رُوح سے بھی گاؤُں گا اور عقل سے بھی گاؤُں گا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

15 تو پھر کیا کروں؟ مَیں روح میں دعا کروں گا، لیکن عقل کو بھی استعمال کروں گا۔ مَیں روح میں حمد و ثنا کروں گا، لیکن عقل کو بھی استعمال میں لاؤں گا۔

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۱-کرنتھیوں 14:15
17 حوالہ جات  

आपकी ज़िंदगी में मसीह के कलाम की पूरी दौलत घर कर जाए। एक दूसरे को हर तरह की हिकमत से तालीम देते और समझाते रहें। साथ साथ अपने दिलों में अल्लाह के लिए शुक्रगुज़ारी के साथ ज़बूर, हम्दो-सना और रूहानी गीत गाते रहें।


और हर मौक़े पर रूह में हर तरह की दुआ और मिन्नत करते रहें। जागते और साबितक़दमी से तमाम मुक़द्दसीन के लिए दुआ करते रहें।


लेकिन आप मेरे अज़ीज़ो, अपने आपको अपने मुक़द्दसतरीन ईमान की बुनियाद पर तामीर करें और रूहुल-क़ुद्स में दुआ करें।


क्योंकि अल्लाह पूरी दुनिया का बादशाह है। हिकमत का गीत गाकर उस की सताइश करो।


फिर भी मैं ख़ुदा की जमात में ऐसी बातें पेश करना चाहता हूँ जो दूसरे समझ सकें और जिनसे वह तरबियत हासिल कर सकें। क्योंकि ग़ैरज़बानों में बोली गई बेशुमार बातों की निसबत पाँच तरबियत देनेवाले अलफ़ाज़ कहीं बेहतर हैं।


क्या मैं यह कहना चाहता हूँ कि बुतों के चढ़ावे की कोई हैसियत है? या कि बुत की कोई हैसियत है? हरगिज़ नहीं।


कोई कह सकता है, “हमारी नारास्ती का एक अच्छा मक़सद होता है, क्योंकि इससे लोगों पर अल्लाह की रास्ती ज़ाहिर होती है। तो क्या अल्लाह बेइनसाफ़ नहीं होगा अगर वह अपना ग़ज़ब हम पर नाज़िल करे?” (मैं इनसानी ख़याल पेश कर रहा हूँ)।


ख़ुदा ही मेरा गवाह है जिसकी ख़िदमत मैं अपनी रूह में करता हूँ जब मैं उसके फ़रज़ंद के बारे में ख़ुशख़बरी फैलाता हूँ, मैं लगातार आपको याद करता रहता हूँ


लेकिन इससे क्या फ़रक़ पड़ता है! अहम बात तो यह है कि मसीह की मुनादी हर तरह से की जा रही है, ख़ाह मुनाद की नीयत पुरख़ुलूस हो या न। और इस वजह से मैं ख़ुश हूँ। और ख़ुश रहूँगा भी,


इन तमाम बातों के जवाब में हम क्या कहें? अगर अल्लाह हमारे हक़ में है तो कौन हमारे ख़िलाफ़ हो सकता है?


अब हम क्या करें? वह तो ज़रूर सुनेंगे कि आप यहाँ आ गए हैं।


क्योंकि अगर मैं ग़ैरज़बान में दुआ करूँ तो मेरी रूह तो दुआ करती है मगर मेरी अक़्ल बेअमल रहती है।


भाइयो, फिर क्या होना चाहिए? जब आप जमा होते हैं तो हर एक के पास कोई गीत या तालीम या मुकाशफ़ा या ग़ैरज़बान या इसका तरजुमा हो। इन सबका मक़सद ख़ुदा की जमात की तामीरो-तरक़्क़ी हो।


क्या आपमें से कोई मुसीबत में फँसा हुआ है? वह दुआ करे। क्या कोई ख़ुश है? वह सताइश के गीत गाए।


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