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۱-کرنتھیوں 13:4 - किताबे-मुक़द्दस

4 मुहब्बत सब्र से काम लेती है, मुहब्बत मेहरबान है। न यह हसद करती है न डींगें मारती है। यह फूलती भी नहीं।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

4 مَحَبّت صَابر اَور مہربان ہوتی ہے۔ حَسد نہیں کرتی، شیخی نہیں مارتی، گھمنڈ نہیں کرتی۔

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کِتابِ مُقادّس

4 مُحبّت صابِر ہے اور مِہربان۔ مُحبّت حَسد نہیں کرتی۔ مُحبّت شَیخی نہیں مارتی اور پُھولتی نہیں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

4 محبت صبر سے کام لیتی ہے، محبت مہربان ہے۔ نہ یہ حسد کرتی ہے نہ ڈینگیں مارتی ہے۔ یہ پھولتی بھی نہیں۔

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۱-کرنتھیوں 13:4
53 حوالہ جات  

सबसे ज़रूरी बात यह है कि आप एक दूसरे से लगातार मुहब्बत रखें, क्योंकि मुहब्बत गुनाहों की बड़ी तादाद पर परदा डाल देती है।


एक दूसरे पर मेहरबान और रहमदिल हों और एक दूसरे को यों मुआफ़ करें जिस तरह अल्लाह ने आपको भी मसीह में मुआफ़ कर दिया है।


अल्लाह ने आपको चुनकर अपने लिए मख़सूसो-मुक़द्दस कर लिया है। वह आपसे मुहब्बत रखता है। इसलिए अब तरस, नेकी, फ़रोतनी, नरमदिली और सब्र को पहन लें।


नफ़रत झगड़े छेड़ती रहती जबकि मुहब्बत तमाम ख़ताओं पर परदा डाल देती है।


अज़ीज़ो, चूँकि अल्लाह ने हमें इतना प्यार किया इसलिए लाज़िम है कि हम भी एक दूसरे को प्यार करें।


जो दूसरे की ग़लती को दरगुज़र करे वह मुहब्बत को फ़रोग़ देता है, लेकिन जो माज़ी की ग़लतियाँ दोहराता रहे वह क़रीबी दोस्तों में निफ़ाक़ पैदा करता है।


आख़िर में एक और बात, आप सब एक ही सोच रखें और एक दूसरे से ताल्लुक़ात में हमदर्दी, प्यार, रहम और हलीमी का इज़हार करें।


भाइयो, हम इस पर ज़ोर देना चाहते हैं कि उन्हें समझाएँ जो बेक़ायदा ज़िंदगी गुज़ारते हैं, उन्हें तसल्ली दें जो जल्दी से मायूस हो जाते हैं, कमज़ोरों का ख़याल रखें और सबको सब्र से बरदाश्त करें।


ख़ुदातरस ज़िंदगी से बरादराना शफ़क़त और बरादराना शफ़क़त से सबके लिए मुहब्बत।


हर वक़्त हलीम और नरमदिल रहें, सब्र से काम लें और एक दूसरे से मुहब्बत रखकर उसे बरदाश्त करें।


जब हम अपनी पाकीज़गी, इल्म, सब्र और मेहरबान सुलूक का इज़हार करते हैं, जब हम रूहुल-क़ुद्स के वसीले से हक़ीक़ी मुहब्बत रखते,


इनसान का लालच उस की रुसवाई का बाइस है, और ग़रीब दरोग़गो से बेहतर है।


और आप उस की जलाली क़ुदरत से मिलनेवाली हर क़िस्म की क़ुव्वत से तक़वियत पाकर हर वक़्त साबितक़दमी और सब्र से चल सकेंगे। आप ख़ुशी से


न हम मग़रूर हों, न एक दूसरे को मुश्तइल करें या एक दूसरे से हसद करें।


भाइयो, मैंने इन बातों का इतलाक़ अपने और अपुल्लोस पर किया ताकि आप हम पर ग़ौर करते हुए अल्लाह के कलाम की हुदूद जान लें जिनसे तजावुज़ करना मुनासिब नहीं। फिर आप फूलकर एक शख़्स की हिमायत करके दूसरे की मुख़ालफ़त नहीं करेंगे।


कि वक़्त बेवक़्त कलामे-मुक़द्दस की मुनादी करने के लिए तैयार रहें। बड़े सब्र से ईमानदारों को तालीम देकर उन्हें समझाएँ, मलामत करें और उनकी हौसलाअफ़्ज़ाई भी करें।


लेकिन आप हर लिहाज़ से मेरे शागिर्द रहे हैं, चाल-चलन में, इरादे में, ईमान में, सब्र में, मुहब्बत में, साबितक़दमी में,


वह हिकमत से बात करती, और उस की ज़बान पर शफ़ीक़ तालीम रहती है।


वह अपनी मुट्ठी मुसीबतज़दों और ग़रीबों के लिए खोलकर उनकी मदद करती है।


लड़ाई-झगड़ा छेड़ना बंद में रख़ना डालने के बराबर है। इससे पहले कि मुक़दमाबाज़ी शुरू हो उससे बाज़ आ।


उन्होंने तेरी सुनने से इनकार किया और वह मोजिज़ात याद न रखे जो तूने उनके दरमियान किए थे। वह यहाँ तक अड़ गए कि उन्होंने एक राहनुमा को मुक़र्रर किया जो उन्हें मिसर की ग़ुलामी में वापस ले जाए। लेकिन तू मुआफ़ करनेवाला ख़ुदा है जो मेहरबान और रहीम, तहम्मुल और शफ़क़त से भरपूर है। तूने उन्हें तर्क न किया,


चुनाँचे अपनी ज़िंदगी से तमाम तरह की बुराई, धोकेबाज़ी, रियाकारी, हसद और बुहतान निकालें।


क्योंकि एक वक़्त था जब हम भी नासमझ, नाफ़रमान और सहीह राह से भटके हुए थे। उस वक़्त हम कई तरह की शहवतों और ग़लत ख़ाहिशों की ग़ुलामी में थे। हम बुरे कामों और हसद करने में ज़िंदगी गुज़ारते थे। दूसरे हमसे नफ़रत करते थे और हम भी उनसे नफ़रत करते थे।


अभी तक आप जिस्मानी हैं, क्योंकि आपमें हसद और झगड़ा पाया जाता है। क्या इससे यह साबित नहीं होता कि आप जिस्मानी हैं और रूह के बग़ैर चलते हैं?


यह सरदार अपने भाई यूसुफ़ से हसद करने लगे और इसलिए उसे बेच दिया। यों वह ग़ुलाम बनकर मिसर पहुँचा। लेकिन अल्लाह उसके साथ रहा


अगर हुक्मरान तुझसे नाराज़ हो जाए तो अपनी जगह मत छोड़, क्योंकि पुरसुकून रवैया बड़ी बड़ी ग़लतियाँ दूर कर देता है।


मग़रूरों में हमेशा झगड़ा होता है जबकि दानिशमंद सलाह-मशवरे के मुताबिक़ ही चलते हैं।


जो कुछ भी करे उसमें वह कामयाब है। तेरी अदालतें उसे बुलंदियों में कहीं दूर लगती हैं जबकि वह अपने तमाम मुख़ालिफ़ों के ख़िलाफ़ फुँकारता है।


जो मुख़ालफ़त करते हैं उन्हें वह नरमदिली से तरबियत दे, क्योंकि हो सकता है कि अल्लाह उन्हें तौबा करने की तौफ़ीक़ दे और वह सच्चाई को जान लें,


वह ख़ुदपसंदी से फूला हुआ है और कुछ नहीं समझता। ऐसा शख़्स बहस-मुबाहसा करने और ख़ाली बातों पर झगड़ने में ग़ैरसेहतमंद दिलचस्पी लेता है। नतीजे में हसद, झगड़े, कुफ़र और बदगुमानी पैदा होती है।


अब मैं बुतों की क़ुरबानी के बारे में बात करता हूँ। हम जानते हैं कि हम सब साहबे-इल्म हैं। इल्म इनसान के फूलने का बाइस बनता है जबकि मुहब्बत उस की तामीर करती है।


वह हर तरह की नारास्ती, शर, लालच और बुराई से भरे हुए हैं। वह हसद, ख़ूनरेज़ी, झगड़े, फ़रेब और कीनावरी से लबरेज़ हैं। वह चुग़ली खानेवाले,


नतीजे में उसके भाई उससे बहुत हसद करने लगे। लेकिन उसके बाप ने दिल में यह बात महफ़ूज़ रखी।


या क्या आप समझते हैं कि कलामे-मुक़द्दस की यह बात बेतुकी-सी है कि अल्लाह ग़ैरत से उस रूह का आरज़ूमंद है जिसको उसने हमारे अंदर सुकूनत करने दिया?


आपमें से बाज़ यों फूल गए हैं जैसे मैं अब आपके पास कभी नहीं आऊँगा।


हम शरीफ़ ज़िंदगी गुज़ारें, ऐसे लोगों की तरह जो दिन की रौशनी में चलते हैं। इसलिए लाज़िम है कि हम इन चीज़ों से बाज़ रहें : बदमस्तों की रंगरलियों और शराबनोशी से, ज़िनाकारी और ऐयाशी से, और झगड़े और हसद से।


ऐसे लोग आपको मुजरिम न ठहराएँ जो ज़ाहिरी फ़रोतनी और फ़रिश्तों की पूजा पर इसरार करते हैं। बड़ी तफ़सील से अपनी रोयाओं में देखी हुई बातें बयान करते करते उनके ग़ैररूहानी ज़हन ख़ाहमख़ाह फूल जाते हैं।


बेशक बाज़ तो हसद और मुख़ालफ़त के बाइस मसीह की मुनादी कर रहे हैं, लेकिन बाक़ियों की नीयत अच्छी है,


मुझे डर है कि जब मैं आऊँगा तो न आपकी हालत मुझे पसंद आएगी, न मेरी हालत आपको। मुझे डर है कि आपमें झगड़ा, हसद, ग़ुस्सा, ख़ुदग़रज़ी, बुहतान, गपबाज़ी, ग़ुरूर और बेतरतीबी पाई जाएगी।


कमाल है कि आप इस फ़ेल पर नादिम नहीं बल्कि फूले फिर रहे हैं! क्या मुनासिब न होता कि आप दुख महसूस करके इस बदी के मुरतकिब को अपने दरमियान से ख़ारिज कर देते?


वह तो जानता था कि उन्होंने ईसा को सिर्फ़ हसद की बिना पर उसके हवाले किया है।


लेकिन राख़िल बेऔलाद ही रही, इसलिए वह अपनी बहन से हसद करने लगी। उसने याक़ूब से कहा, “मुझे भी औलाद दें वरना मैं मर जाऊँगी।”


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