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۱-کرنتھیوں 12:17 - किताबे-मुक़द्दस

17 अगर पूरा जिस्म आँख ही होता तो फिर सुनने की सलाहियत कहाँ होती? अगर सारा बदन कान ही होता तो फिर सूँघने का क्या बनता?

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

17 اگر سارا بَدن آنکھ ہی ہوتا تو وہ کیسے سُنتا؟ اگر سارا بَدن کان ہی ہوتا تو وہ کیسے سُونگھتا؟

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کِتابِ مُقادّس

17 اگر سارا بدن آنکھ ہی ہوتا تو سُننا کہاں ہوتا؟ اگر سُننا ہی سُننا ہوتا تو سُونگھنا کہاں ہوتا؟

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

17 اگر پورا جسم آنکھ ہی ہوتا تو پھر سننے کی صلاحیت کہاں ہوتی؟ اگر سارا بدن کان ہی ہوتا تو پھر سونگھنے کا کیا بنتا؟

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۱-کرنتھیوں 12:17
8 حوالہ جات  

आँख हाथ से नहीं कह सकती, “मुझे तेरी ज़रूरत नहीं,” न सर पाँवों से कह सकता है, “मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं।”


क्या सब रसूल हैं? क्या सब नबी हैं? क्या सब उस्ताद हैं? क्या सब मोजिज़े करते हैं?


सुननेवाले कान और देखनेवाली आँखें दोनों ही रब ने बनाई हैं।


जिसने कान बनाया, क्या वह नहीं सुनता? जिसने आँख को तश्कील दिया क्या वह नहीं देखता?


साऊल ने कहा, “ठीक है, चलें।” वह शहर की तरफ़ चल पड़े ताकि मर्दे-ख़ुदा से बात करें। जब पहाड़ी ढलान पर शहर की तरफ़ चढ़ रहे थे तो कुछ लड़कियाँ पानी भरने के लिए निकलीं। आदमियों ने उनसे पूछा, “क्या ग़ैबबीन शहर में है?” (पुराने ज़माने में नबी ग़ैबबीन कहलाता था। अगर कोई अल्लाह से कुछ मालूम करना चाहता तो कहता, “आओ, हम ग़ैबबीन के पास चलें।”)


या फ़र्ज़ करें कि कान कहे, “मैं आँख नहीं हूँ इसलिए बदन का हिस्सा नहीं।” क्या यह कहने पर उसका बदन से नाता टूट जाएगा?


लेकिन अल्लाह ने जिस्म के मुख़्तलिफ़ आज़ा बनाकर हर एक को वहाँ लगाया जहाँ वह चाहता था।


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