22 कुल 212 मर्दों को दरबान की ज़िम्मादारी दी गई थी। उनके नाम उनकी मक़ामी जगहों के नसबनामे में दर्ज थे। दाऊद और समुएल ग़ैबबीन ने उनके बापदादा को यह ज़िम्मादारी दी थी।
22 وہ جو دربان ہونے کے لیٔے چُنے گیٔے کُل مِلا کر دو سَو بَارہ تھے۔ اُنہیں دیہات میں اُن کے نَسب ناموں کے مُطابق گِنا گیا۔ دربانوں کو اُن کے قابلِ اِعتبار منصب پر داویؔد اَور شموایلؔ غیب بین نے مُقرّر کیا تھا۔
22 یہ سب جو پھاٹکوں کے دربان ہونے کو چُنے گئے دو سَو بارہ تھے۔ یہ جِن کو داؤُد اور سمواؔیل غَیب بِین نے اِن کے منصب پر مُقرّر کِیا تھا اپنے نسب نامہ کے مُطابِق اپنے اپنے گاؤں میں گِنے گئے تھے۔
22 کُل 212 مردوں کو دربان کی ذمہ داری دی گئی تھی۔ اُن کے نام اُن کی مقامی جگہوں کے نسب ناموں میں درج تھے۔ داؤد اور سموایل غیب بین نے اُن کے باپ دادا کو یہ ذمہ داری دی تھی۔
साऊल ने कहा, “ठीक है, चलें।” वह शहर की तरफ़ चल पड़े ताकि मर्दे-ख़ुदा से बात करें। जब पहाड़ी ढलान पर शहर की तरफ़ चढ़ रहे थे तो कुछ लड़कियाँ पानी भरने के लिए निकलीं। आदमियों ने उनसे पूछा, “क्या ग़ैबबीन शहर में है?” (पुराने ज़माने में नबी ग़ैबबीन कहलाता था। अगर कोई अल्लाह से कुछ मालूम करना चाहता तो कहता, “आओ, हम ग़ैबबीन के पास चलें।”)
उसने रब के घर की ख़िदमत के लिए दरकार इमामों और लावियों के गुरोहों को भी मुक़र्रर किया, और साथ साथ रब के घर में बाक़ी तमाम ज़िम्मादारियाँ भी। इसके अलावा उसने रब के घर की ख़िदमत के लिए दरकार तमाम सामान की फ़हरिस्त भी तैयार की थी।
उस वक़्त कुछ आदमियों को उन गोदामों के निगरान बनाया गया जिनमें हदिये, फ़सलों का पहला फल और पैदावार का दसवाँ हिस्सा महफ़ूज़ रखा जाता था। उनमें शहरों की फ़सलों का वह हिस्सा जमा करना था जो शरीअत ने इमामों और लावियों के लिए मुक़र्रर किया था। क्योंकि यहूदाह के बाशिंदे ख़िदमत करनेवाले इमामों और लावियों से ख़ुश थे
ख़ानदानों की औरतें और बेटे-बेटियाँ छोटे बच्चों समेत भी इन फ़हरिस्तों में दर्ज थीं। चूँकि उनके मर्द वफ़ादारी से रब के घर में ख़िदमत करते थे, इसलिए यह दीगर अफ़राद भी मख़सूसो-मुक़द्दस समझे जाते थे।
अदन, मिन्यमीन, यशुअ, समायाह, अमरियाह और सकनियाह उसके मददगार थे। उनकी ज़िम्मादारी लावियों के शहरों में रहनेवाले इमामों को उनका हिस्सा देना थी। बड़ी वफ़ादारी से वह ख़याल रखते थे कि ख़िदमत के मुख़्तलिफ़ गुरोहों के तमाम इमामों को वह हिस्सा मिल जाए जो उनका हक़ बनता था, ख़ाह वह बड़े थे या छोटे।
ख़िदमत के लिए मुक़र्रर इमामों और लावियों के गुरोह भी आपका सहारा बनकर रब के घर में अपनी ख़िदमत सरंजाम देंगे। तामीर के लिए जितने भी माहिर कारीगरों की ज़रूरत है वह ख़िदमत के लिए तैयार खड़े हैं। बुज़ुर्गों से लेकर आम लोगों तक सब आपकी हर हिदायत की तामील करने के लिए मुस्तैद हैं।”