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रोमियों 7:2 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

2 यावत्कालं पति र्जीवति तावत्कालम् ऊढा भार्य्या व्यवस्थया तस्मिन् बद्धा तिष्ठति किन्तु यदि पति र्म्रियते तर्हि सा नारी पत्यु र्व्यवस्थातो मुच्यते।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

2 যাৱৎকালং পতি ৰ্জীৱতি তাৱৎকালম্ ঊঢা ভাৰ্য্যা ৱ্যৱস্থযা তস্মিন্ বদ্ধা তিষ্ঠতি কিন্তু যদি পতি ৰ্ম্ৰিযতে তৰ্হি সা নাৰী পত্যু ৰ্ৱ্যৱস্থাতো মুচ্যতে|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

2 যাৱৎকালং পতি র্জীৱতি তাৱৎকালম্ ঊঢা ভার্য্যা ৱ্যৱস্থযা তস্মিন্ বদ্ধা তিষ্ঠতি কিন্তু যদি পতি র্ম্রিযতে তর্হি সা নারী পত্যু র্ৱ্যৱস্থাতো মুচ্যতে|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

2 ယာဝတ္ကာလံ ပတိ ရ္ဇီဝတိ တာဝတ္ကာလမ် ဦဎာ ဘာရျျာ ဝျဝသ္ထယာ တသ္မိန် ဗဒ္ဓါ တိၐ္ဌတိ ကိန္တု ယဒိ ပတိ ရ္မြိယတေ တရှိ သာ နာရီ ပတျု ရွျဝသ္ထာတော မုစျတေ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

2 yAvatkAlaM pati rjIvati tAvatkAlam UPhA bhAryyA vyavasthayA tasmin baddhA tiSThati kintu yadi pati rmriyatE tarhi sA nArI patyu rvyavasthAtO mucyatE|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

2 યાવત્કાલં પતિ ર્જીવતિ તાવત્કાલમ્ ઊઢા ભાર્ય્યા વ્યવસ્થયા તસ્મિન્ બદ્ધા તિષ્ઠતિ કિન્તુ યદિ પતિ ર્મ્રિયતે તર્હિ સા નારી પત્યુ ર્વ્યવસ્થાતો મુચ્યતે|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




रोमियों 7:2
6 अन्तरसन्दर्भाः  

एतत्कारणात् पत्युर्जीवनकाले नारी यद्यन्यं पुरुषं विवहति तर्हि सा व्यभिचारिणी भवति किन्तु यदि स पति र्म्रियते तर्हि सा तस्या व्यवस्थाया मुक्ता सती पुरुषान्तरेण व्यूढापि व्यभिचारिणी न भवति।


किन्तु तदा यस्या व्यवस्थाया वशे आस्महि साम्प्रतं तां प्रति मृतत्वाद् वयं तस्या अधीनत्वात् मुक्ता इति हेतोरीश्वरोऽस्माभिः पुरातनलिखितानुसारात् न सेवितव्यः किन्तु नवीनस्वभावेनैव सेवितव्यः


यावत्कालं पति र्जीवति तावद् भार्य्या व्यवस्थया निबद्धा तिष्ठति किन्तु पत्यौ महानिद्रां गते सा मुक्तीभूय यमभिलषति तेन सह तस्या विवाहो भवितुं शक्नोति, किन्त्वेतत् केवलं प्रभुभक्तानां मध्ये।


भार्य्यायाः स्वदेहे स्वत्वं नास्ति भर्त्तुरेव, तद्वद् भर्त्तुरपि स्वदेहे स्वत्वं नास्ति भार्य्याया एव।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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