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प्रकाशितवाक्य 19:18 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

18 ईश्वरस्य महाभोज्ये मिलत, राज्ञां क्रव्याणि सेनापतीनां क्रव्याणि वीराणां क्रव्याण्यश्वानां तदारूढानाञ्च क्रव्याणि दासमुक्तानां क्षुद्रमहतां सर्व्वेषामेव क्रव्याणि च युष्माभि र्भक्षितव्यानि।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

18 ঈশ্ৱৰস্য মহাভোজ্যে মিলত, ৰাজ্ঞাং ক্ৰৱ্যাণি সেনাপতীনাং ক্ৰৱ্যাণি ৱীৰাণাং ক্ৰৱ্যাণ্যশ্ৱানাং তদাৰূঢানাঞ্চ ক্ৰৱ্যাণি দাসমুক্তানাং ক্ষুদ্ৰমহতাং সৰ্ৱ্ৱেষামেৱ ক্ৰৱ্যাণি চ যুষ্মাভি ৰ্ভক্ষিতৱ্যানি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

18 ঈশ্ৱরস্য মহাভোজ্যে মিলত, রাজ্ঞাং ক্রৱ্যাণি সেনাপতীনাং ক্রৱ্যাণি ৱীরাণাং ক্রৱ্যাণ্যশ্ৱানাং তদারূঢানাঞ্চ ক্রৱ্যাণি দাসমুক্তানাং ক্ষুদ্রমহতাং সর্ৱ্ৱেষামেৱ ক্রৱ্যাণি চ যুষ্মাভি র্ভক্ষিতৱ্যানি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

18 ဤၑွရသျ မဟာဘောဇျေ မိလတ, ရာဇ္ဉာံ ကြဝျာဏိ သေနာပတီနာံ ကြဝျာဏိ ဝီရာဏာံ ကြဝျာဏျၑွာနာံ တဒါရူဎာနာဉ္စ ကြဝျာဏိ ဒါသမုက္တာနာံ က္ၐုဒြမဟတာံ သရွွေၐာမေဝ ကြဝျာဏိ စ ယုၐ္မာဘိ ရ္ဘက္ၐိတဝျာနိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

18 Izvarasya mahAbhOjyE milata, rAjnjAM kravyANi sEnApatInAM kravyANi vIrANAM kravyANyazvAnAM tadArUPhAnAnjca kravyANi dAsamuktAnAM kSudramahatAM sarvvESAmEva kravyANi ca yuSmAbhi rbhakSitavyAni|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

18 ઈશ્વરસ્ય મહાભોજ્યે મિલત, રાજ્ઞાં ક્રવ્યાણિ સેનાપતીનાં ક્રવ્યાણિ વીરાણાં ક્રવ્યાણ્યશ્વાનાં તદારૂઢાનાઞ્ચ ક્રવ્યાણિ દાસમુક્તાનાં ક્ષુદ્રમહતાં સર્વ્વેષામેવ ક્રવ્યાણિ ચ યુષ્માભિ ર્ભક્ષિતવ્યાનિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




प्रकाशितवाक्य 19:18
18 अन्तरसन्दर्भाः  

यत्र शवस्तिष्ठति, तत्रेव गृध्रा मिलन्ति।


तदा ते पप्रच्छुः, हे प्रभो कुत्रेत्थं भविष्यति? ततः स उवाच, यत्र शवस्तिष्ठति तत्र गृध्रा मिलन्ति।


विजातीयेषु कुप्यत्सु प्रादुर्भूता तव क्रुधा। मृतानामपि कालो ऽसौ विचारो भविता यदा। भृत्याश्च तव यावन्तो भविष्यद्वादिसाधवः। ये च क्षुद्रा महान्तो वा नामतस्ते हि बिभ्यति। यदा सर्व्वेभ्य एतेभ्यो वेतनं वितरिष्यते। गन्तव्यश्च यदा नाशो वसुधाया विनाशकैः॥


अपरं क्षुद्रमहद्धनिदरिद्रमुक्तदासान् सर्व्वान् दक्षिणकरे भाले वा कलङ्कं ग्राहयति।


त्वया दृष्टानि दश शृङ्गाणि पशुश्चेमे तां वेश्याम् ऋतीयिष्यन्ते दीनां नग्नाञ्च करिष्यन्ति तस्या मांसानि भोक्ष्यन्ते वह्निना तां दाहयिष्यन्ति च।


अनन्तरं सिंहासनमध्याद् एष रवो निर्गतो, यथा, हे ईश्वरस्य दासेयास्तद्भक्ताः सकला नराः। यूयं क्षुद्रा महान्तश्च प्रशंसत व ईश्वरं॥


पृथिवीस्था भूपाला महाल्लोकाः सहस्त्रपतयो धनिनः पराक्रमिणश्च लोका दासा मुक्ताश्च सर्व्वे ऽपि गुहासु गिरिस्थशैलेषु च स्वान् प्राच्छादयन्।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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