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प्रकाशितवाक्य 18:6 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

6 परान् प्रति तया यद्वद् व्यवहृतं तद्वत् तां प्रति व्यवहरत, तस्याः कर्म्मणां द्विगुणफलानि तस्यै दत्त, यस्मिन् कंसे सा परान् मद्यम् अपाययत् तमेव तस्याः पानार्थं द्विगुणमद्येन पूरयत।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

6 পৰান্ প্ৰতি তযা যদ্ৱদ্ ৱ্যৱহৃতং তদ্ৱৎ তাং প্ৰতি ৱ্যৱহৰত, তস্যাঃ কৰ্ম্মণাং দ্ৱিগুণফলানি তস্যৈ দত্ত, যস্মিন্ কংসে সা পৰান্ মদ্যম্ অপাযযৎ তমেৱ তস্যাঃ পানাৰ্থং দ্ৱিগুণমদ্যেন পূৰযত|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

6 পরান্ প্রতি তযা যদ্ৱদ্ ৱ্যৱহৃতং তদ্ৱৎ তাং প্রতি ৱ্যৱহরত, তস্যাঃ কর্ম্মণাং দ্ৱিগুণফলানি তস্যৈ দত্ত, যস্মিন্ কংসে সা পরান্ মদ্যম্ অপাযযৎ তমেৱ তস্যাঃ পানার্থং দ্ৱিগুণমদ্যেন পূরযত|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

6 ပရာန် ပြတိ တယာ ယဒွဒ် ဝျဝဟၖတံ တဒွတ် တာံ ပြတိ ဝျဝဟရတ, တသျား ကရ္မ္မဏာံ ဒွိဂုဏဖလာနိ တသျဲ ဒတ္တ, ယသ္မိန် ကံသေ သာ ပရာန် မဒျမ် အပါယယတ် တမေဝ တသျား ပါနာရ္ထံ ဒွိဂုဏမဒျေန ပူရယတ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

6 parAn prati tayA yadvad vyavahRtaM tadvat tAM prati vyavaharata, tasyAH karmmaNAM dviguNaphalAni tasyai datta, yasmin kaMsE sA parAn madyam apAyayat tamEva tasyAH pAnArthaM dviguNamadyEna pUrayata|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

6 પરાન્ પ્રતિ તયા યદ્વદ્ વ્યવહૃતં તદ્વત્ તાં પ્રતિ વ્યવહરત, તસ્યાઃ કર્મ્મણાં દ્વિગુણફલાનિ તસ્યૈ દત્ત, યસ્મિન્ કંસે સા પરાન્ મદ્યમ્ અપાયયત્ તમેવ તસ્યાઃ પાનાર્થં દ્વિગુણમદ્યેન પૂરયત|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




प्रकाशितवाक्य 18:6
21 अन्तरसन्दर्भाः  

कांस्यकारः सिकन्दरो मम बह्वनिष्टं कृतवान् प्रभुस्तस्य कर्म्मणां समुचितफलं ददातु।


यो जनो ऽपरान् वन्दीकृत्य नयति स स्वयं वन्दीभूय स्थानान्तरं गमिष्यति, यश्च खङ्गेन हन्ति स स्वयं खङ्गेन घानिष्यते। अत्र पवित्रलोकानां सहिष्णुतया विश्वासेन च प्रकाशितव्यं।


सो ऽपीश्वरस्य क्रोधपात्रे स्थितम् अमिश्रितं मदत् अर्थत ईश्वरस्य क्रोधमदं पास्यति पवित्रदूतानां मेषशावकस्य च साक्षाद् वह्निगन्धकयो र्यातनां लप्स्यते च।


तदानीं महानगरी त्रिखण्डा जाता भिन्नजातीयानां नगराणि च न्यपतन् महाबाबिल् चेश्वरेण स्वकीयप्रचण्डकोपमदिरापात्रदानार्थं संस्मृता।


यस्या व्यभिचारमदेन च पृथिवीनिवासिनो मत्ता अभवन् तस्या बहुतोयेषूपविष्टाया महावेश्याया दण्डम् अहं त्वां दर्शयामि।


सा नारी कृष्णलोहितवर्णं सिन्दूरवर्णञ्च परिच्छदं धारयति स्वर्णमणिमुक्ताभिश्च विभूषितास्ति तस्याः करे घृणार्हद्रव्यैः स्वव्यभिचारजातमलैश्च परिपूर्ण एकः सुवर्णमयः कंसो विद्यते।


हे स्वर्गवासिनः सर्व्वे पवित्राः प्रेरिताश्च हे। हे भाविवादिनो यूयं कृते तस्याः प्रहर्षत। युष्माकं यत् तया सार्द्धं यो विवादः पुराभवत्। दण्डं समुचितं तस्य तस्यै व्यतरदीश्वरः॥


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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