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प्रकाशितवाक्य 17:16 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

16 त्वया दृष्टानि दश शृङ्गाणि पशुश्चेमे तां वेश्याम् ऋतीयिष्यन्ते दीनां नग्नाञ्च करिष्यन्ति तस्या मांसानि भोक्ष्यन्ते वह्निना तां दाहयिष्यन्ति च।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

16 ৎৱযা দৃষ্টানি দশ শৃঙ্গাণি পশুশ্চেমে তাং ৱেশ্যাম্ ঋতীযিষ্যন্তে দীনাং নগ্নাঞ্চ কৰিষ্যন্তি তস্যা মাংসানি ভোক্ষ্যন্তে ৱহ্নিনা তাং দাহযিষ্যন্তি চ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

16 ৎৱযা দৃষ্টানি দশ শৃঙ্গাণি পশুশ্চেমে তাং ৱেশ্যাম্ ঋতীযিষ্যন্তে দীনাং নগ্নাঞ্চ করিষ্যন্তি তস্যা মাংসানি ভোক্ষ্যন্তে ৱহ্নিনা তাং দাহযিষ্যন্তি চ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

16 တွယာ ဒၖၐ္ဋာနိ ဒၑ ၑၖင်္ဂါဏိ ပၑုၑ္စေမေ တာံ ဝေၑျာမ် ၒတီယိၐျန္တေ ဒီနာံ နဂ္နာဉ္စ ကရိၐျန္တိ တသျာ မာံသာနိ ဘောက္ၐျန္တေ ဝဟ္နိနာ တာံ ဒါဟယိၐျန္တိ စ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

16 tvayA dRSTAni daza zRggANi pazuzcEmE tAM vEzyAm RtIyiSyantE dInAM nagnAnjca kariSyanti tasyA mAMsAni bhOkSyantE vahninA tAM dAhayiSyanti ca|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

16 ત્વયા દૃષ્ટાનિ દશ શૃઙ્ગાણિ પશુશ્ચેમે તાં વેશ્યામ્ ઋતીયિષ્યન્તે દીનાં નગ્નાઞ્ચ કરિષ્યન્તિ તસ્યા માંસાનિ ભોક્ષ્યન્તે વહ્નિના તાં દાહયિષ્યન્તિ ચ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




प्रकाशितवाक्य 17:16
17 अन्तरसन्दर्भाः  

ततः स्वर्गे ऽपरम् एकं चित्रं दृष्टं महानाग एक उपातिष्ठत् स लोहितवर्णस्तस्य सप्त शिरांसि सप्त शृङ्गाणि शिरःसु च सप्त किरीटान्यासन्।


ततः परं षष्ठो दूतः स्वकंसे यद्यद् अविद्यत तत् सर्व्वं फराताख्यो महानदे ऽस्रावयत् तेन सूर्य्योदयदिश आगमिष्यतां राज्ञां मार्गसुगमार्थं तस्य तोयानि पर्य्यशुष्यन्।


तेषां पञ्च पतिता एकश्च वर्त्तमानः शेषश्चाद्याप्यनुपस्थितः स यदोपस्थास्यति तदापि तेनाल्पकालं स्थातव्यं।


अपरं स्वशिरःसु मृत्तिकां निक्षिप्य ते रुदन्तः शोचन्तश्चोच्चैःस्वरेणेदं वदन्ति हा हा यस्या महापुर्य्या बाहुल्यधनकारणात्, सम्पत्तिः सञ्चिता सर्व्वैः सामुद्रपोतनायकैः, एकस्मिन्नेव दण्डे सा सम्पूर्णोच्छिन्नतां गता।


तस्माद् दिवस एकस्मिन् मारीदुर्भिक्षशोचनैः, सा समाप्लोष्यते नारी ध्यक्ष्यते वह्निना च सा; यद् विचाराधिपस्तस्या बलवान् प्रभुरीश्वरः,


ईश्वरस्य महाभोज्ये मिलत, राज्ञां क्रव्याणि सेनापतीनां क्रव्याणि वीराणां क्रव्याण्यश्वानां तदारूढानाञ्च क्रव्याणि दासमुक्तानां क्षुद्रमहतां सर्व्वेषामेव क्रव्याणि च युष्माभि र्भक्षितव्यानि।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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