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प्रकाशितवाक्य 14:18 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

18 अपरम् अन्य एको दूतो वेदितो निर्गतः स वह्नेरधिपतिः स उच्चैःस्वरेण तं तीक्ष्णदात्रधारिणं सम्भाष्यावदत् त्वया स्वं तीक्ष्णं दात्रं प्रसार्य्य मेदिन्या द्राक्षागुच्छच्छेदनं क्रियतां यतस्तत्फलानि परिणतानि।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

18 অপৰম্ অন্য একো দূতো ৱেদিতো নিৰ্গতঃ স ৱহ্নেৰধিপতিঃ স উচ্চৈঃস্ৱৰেণ তং তীক্ষ্ণদাত্ৰধাৰিণং সম্ভাষ্যাৱদৎ ৎৱযা স্ৱং তীক্ষ্ণং দাত্ৰং প্ৰসাৰ্য্য মেদিন্যা দ্ৰাক্ষাগুচ্ছচ্ছেদনং ক্ৰিযতাং যতস্তৎফলানি পৰিণতানি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

18 অপরম্ অন্য একো দূতো ৱেদিতো নির্গতঃ স ৱহ্নেরধিপতিঃ স উচ্চৈঃস্ৱরেণ তং তীক্ষ্ণদাত্রধারিণং সম্ভাষ্যাৱদৎ ৎৱযা স্ৱং তীক্ষ্ণং দাত্রং প্রসার্য্য মেদিন্যা দ্রাক্ষাগুচ্ছচ্ছেদনং ক্রিযতাং যতস্তৎফলানি পরিণতানি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

18 အပရမ် အနျ ဧကော ဒူတော ဝေဒိတော နိရ္ဂတး သ ဝဟ္နေရဓိပတိး သ ဥစ္စဲးသွရေဏ တံ တီက္ၐ္ဏဒါတြဓာရိဏံ သမ္ဘာၐျာဝဒတ် တွယာ သွံ တီက္ၐ္ဏံ ဒါတြံ ပြသာရျျ မေဒိနျာ ဒြာက္ၐာဂုစ္ဆစ္ဆေဒနံ ကြိယတာံ ယတသ္တတ္ဖလာနိ ပရိဏတာနိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

18 aparam anya EkO dUtO vEditO nirgataH sa vahnEradhipatiH sa uccaiHsvarENa taM tIkSNadAtradhAriNaM sambhASyAvadat tvayA svaM tIkSNaM dAtraM prasAryya mEdinyA drAkSAgucchacchEdanaM kriyatAM yatastatphalAni pariNatAni|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

18 અપરમ્ અન્ય એકો દૂતો વેદિતો નિર્ગતઃ સ વહ્નેરધિપતિઃ સ ઉચ્ચૈઃસ્વરેણ તં તીક્ષ્ણદાત્રધારિણં સમ્ભાષ્યાવદત્ ત્વયા સ્વં તીક્ષ્ણં દાત્રં પ્રસાર્ય્ય મેદિન્યા દ્રાક્ષાગુચ્છચ્છેદનં ક્રિયતાં યતસ્તત્ફલાનિ પરિણતાનિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




प्रकाशितवाक्य 14:18
7 अन्तरसन्दर्भाः  

किन्तु फलेषु पक्केषु शस्यच्छेदनकालं ज्ञात्वा स तत्क्षणं शस्यानि छिनत्ति, अनेन तुल्यमीश्वरराज्यं।


अनन्तरं वेदीतो भाषमाणस्य कस्यचिद् अयं रवो मया श्रुतः, हे परश्वर सत्यं तत् हे सर्व्वशक्तिमन् प्रभो। सत्या न्याय्याश्च सर्व्वा हि विचाराज्ञास्त्वदीयकाः॥


अनन्तरं चतुर्थो दूतः स्वकंसे यद्यद् अविद्यत तत् सर्व्वं सूर्य्ये ऽस्रावयत् तस्मै च वह्निना मानवान् दग्धुं सामर्थ्यम् अदायि।


ततः परम् अन्य एको दूत आगतः स स्वर्णधूपाधारं गृहीत्वा वेदिमुपातिष्ठत् स च यत् सिंहासनस्यान्तिके स्थितायाः सुवर्णवेद्या उपरि सर्व्वेषां पवित्रलोकानां प्रार्थनासु धूपान् योजयेत् तदर्थं प्रचुरधूपास्तस्मै दत्ताः।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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