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प्रकाशितवाक्य 11:12 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

12 ततः परं तौ स्वर्गाद् उच्चैरिदं कथयन्तं रवम् अशृणुतां युवां स्थानम् एतद् आरोहतां ततस्तयोः शत्रुषु निरीक्षमाणेषु तौ मेघेन स्वर्गम् आरूढवन्तौ।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

12 ততঃ পৰং তৌ স্ৱৰ্গাদ্ উচ্চৈৰিদং কথযন্তং ৰৱম্ অশৃণুতাং যুৱাং স্থানম্ এতদ্ আৰোহতাং ততস্তযোঃ শত্ৰুষু নিৰীক্ষমাণেষু তৌ মেঘেন স্ৱৰ্গম্ আৰূঢৱন্তৌ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

12 ততঃ পরং তৌ স্ৱর্গাদ্ উচ্চৈরিদং কথযন্তং রৱম্ অশৃণুতাং যুৱাং স্থানম্ এতদ্ আরোহতাং ততস্তযোঃ শত্রুষু নিরীক্ষমাণেষু তৌ মেঘেন স্ৱর্গম্ আরূঢৱন্তৌ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

12 တတး ပရံ တော် သွရ္ဂာဒ် ဥစ္စဲရိဒံ ကထယန္တံ ရဝမ် အၑၖဏုတာံ ယုဝါံ သ္ထာနမ် ဧတဒ် အာရောဟတာံ တတသ္တယေား ၑတြုၐု နိရီက္ၐမာဏေၐု တော် မေဃေန သွရ္ဂမ် အာရူဎဝန္တော်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

12 tataH paraM tau svargAd uccairidaM kathayantaM ravam azRNutAM yuvAM sthAnam Etad ArOhatAM tatastayOH zatruSu nirIkSamANESu tau mEghEna svargam ArUPhavantau|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

12 તતઃ પરં તૌ સ્વર્ગાદ્ ઉચ્ચૈરિદં કથયન્તં રવમ્ અશૃણુતાં યુવાં સ્થાનમ્ એતદ્ આરોહતાં તતસ્તયોઃ શત્રુષુ નિરીક્ષમાણેષુ તૌ મેઘેન સ્વર્ગમ્ આરૂઢવન્તૌ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




प्रकाशितवाक्य 11:12
21 अन्तरसन्दर्भाः  

पश्चात् स धनवानपि ममार, तं श्मशाने स्थापयामासुश्च; किन्तु परलोके स वेदनाकुलः सन् ऊर्द्ध्वां निरीक्ष्य बहुदूराद् इब्राहीमं तत्क्रोड इलियासरञ्च विलोक्य रुवन्नुवाच;


इति वाक्यमुक्त्वा स तेषां समक्षं स्वर्गं नीतोऽभवत्, ततो मेघमारुह्य तेषां दृष्टेरगोचरोऽभवत्।


अपरम् अस्माकं मध्ये ये जीवन्तोऽवशेक्ष्यन्ते त आकाशे प्रभोः साक्षात्करणार्थं तैः सार्द्धं मेघवाहनेन हरिष्यन्ते; इत्थञ्च वयं सर्व्वदा प्रभुना सार्द्धं स्थास्यामः।


सा तु पुंसन्तानं प्रसूता स एव लौहमयराजदण्डेन सर्व्वजातीश्चारयिष्यति, किञ्च तस्याः सन्तान ईश्वरस्य समीपं तदीयसिंहासनस्य च सन्निधिम् उद्धृतः।


अपरमहं यथा जितवान् मम पित्रा च सह तस्य सिंहासन उपविष्टश्चास्मि, तथा यो जनो जयति तमहं मया सार्द्धं मत्सिंहासन उपवेशयिष्यामि।


ततः परं मया दृष्टिपातं कृत्वा स्वर्गे मुक्तं द्वारम् एकं दृष्टं मया सहभाषमाणस्य च यस्य तूरीवाद्यतुल्यो रवः पूर्व्वं श्रुतः स माम् अवोचत् स्थानमेतद् आरोहय, इतः परं येन येन भवितव्यं तदहं त्वां दर्शयिष्ये।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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