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मत्ती 28:8 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

8 ततस्ता भयात् महानन्दाञ्च श्मशानात् तूर्णं बहिर्भूय तच्छिष्यान् वार्त्तां वक्तुं धावितवत्यः। किन्तु शिष्यान् वार्त्तां वक्तुं यान्ति, तदा यीशु र्दर्शनं दत्त्वा ता जगाद,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

8 ততস্তা ভযাৎ মহানন্দাঞ্চ শ্মশানাৎ তূৰ্ণং বহিৰ্ভূয তচ্ছিষ্যান্ ৱাৰ্ত্তাং ৱক্তুং ধাৱিতৱত্যঃ| কিন্তু শিষ্যান্ ৱাৰ্ত্তাং ৱক্তুং যান্তি, তদা যীশু ৰ্দৰ্শনং দত্ত্ৱা তা জগাদ,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

8 ততস্তা ভযাৎ মহানন্দাঞ্চ শ্মশানাৎ তূর্ণং বহির্ভূয তচ্ছিষ্যান্ ৱার্ত্তাং ৱক্তুং ধাৱিতৱত্যঃ| কিন্তু শিষ্যান্ ৱার্ত্তাং ৱক্তুং যান্তি, তদা যীশু র্দর্শনং দত্ত্ৱা তা জগাদ,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

8 တတသ္တာ ဘယာတ် မဟာနန္ဒာဉ္စ ၑ္မၑာနာတ် တူရ္ဏံ ဗဟိရ္ဘူယ တစ္ဆိၐျာန် ဝါရ္တ္တာံ ဝက္တုံ ဓာဝိတဝတျး၊ ကိန္တု ၑိၐျာန် ဝါရ္တ္တာံ ဝက္တုံ ယာန္တိ, တဒါ ယီၑု ရ္ဒရ္ၑနံ ဒတ္တွာ တာ ဇဂါဒ,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

8 tatastA bhayAt mahAnandAnjca zmazAnAt tUrNaM bahirbhUya tacchiSyAn vArttAM vaktuM dhAvitavatyaH| kintu ziSyAn vArttAM vaktuM yAnti, tadA yIzu rdarzanaM dattvA tA jagAda,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

8 તતસ્તા ભયાત્ મહાનન્દાઞ્ચ શ્મશાનાત્ તૂર્ણં બહિર્ભૂય તચ્છિષ્યાન્ વાર્ત્તાં વક્તું ધાવિતવત્યઃ| કિન્તુ શિષ્યાન્ વાર્ત્તાં વક્તું યાન્તિ, તદા યીશુ ર્દર્શનં દત્ત્વા તા જગાદ,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मत्ती 28:8
9 अन्तरसन्दर्भाः  

तूर्णं गत्वा तच्छिष्यान् इति वदत, स श्मशानाद् उदतिष्ठत्, युष्माकमग्रे गालीलं यास्यति यूयं तत्र तं वीक्षिष्यध्वे, पश्यताहं वार्त्तामिमां युष्मानवादिषं।


युष्माकं कल्याणं भूयात्, ततस्ता आगत्य तत्पादयोः पतित्वा प्रणेमुः।


ताः कम्पिता विस्तिताश्च तूर्णं श्मशानाद् बहिर्गत्वा पलायन्त भयात् कमपि किमपि नावदंश्च।


युष्मानहम् अतियथार्थं वदामि यूयं क्रन्दिष्यथ विलपिष्यथ च, किन्तु जगतो लोका आनन्दिष्यन्ति; यूयं शोकाकुला भविष्यथ किन्तु शोकात् परं आनन्दयुक्ता भविष्यथ।


तथा यूयमपि साम्प्रतं शोकाकुला भवथ किन्तु पुनरपि युष्मभ्यं दर्शनं दास्यामि तेन युष्माकम् अन्तःकरणानि सानन्दानि भविष्यन्ति, युष्माकं तम् आनन्दञ्च कोपि हर्त्तुं न शक्ष्यति।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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