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मत्ती 23:23 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

23 हन्त कपटिन उपाध्यायाः फिरूशिनश्च, यूयं पोदिनायाः सितच्छत्राया जीरकस्य च दशमांशान् दत्थ, किन्तु व्यवस्थाया गुरुतरान् न्यायदयाविश्वासान् परित्यजथ; इमे युष्माभिराचरणीया अमी च न लंघनीयाः।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

23 হন্ত কপটিন উপাধ্যাযাঃ ফিৰূশিনশ্চ, যূযং পোদিনাযাঃ সিতচ্ছত্ৰাযা জীৰকস্য চ দশমাংশান্ দত্থ, কিন্তু ৱ্যৱস্থাযা গুৰুতৰান্ ন্যাযদযাৱিশ্ৱাসান্ পৰিত্যজথ; ইমে যুষ্মাভিৰাচৰণীযা অমী চ ন লংঘনীযাঃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

23 হন্ত কপটিন উপাধ্যাযাঃ ফিরূশিনশ্চ, যূযং পোদিনাযাঃ সিতচ্ছত্রাযা জীরকস্য চ দশমাংশান্ দত্থ, কিন্তু ৱ্যৱস্থাযা গুরুতরান্ ন্যাযদযাৱিশ্ৱাসান্ পরিত্যজথ; ইমে যুষ্মাভিরাচরণীযা অমী চ ন লংঘনীযাঃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

23 ဟန္တ ကပဋိန ဥပါဓျာယား ဖိရူၑိနၑ္စ, ယူယံ ပေါဒိနာယား သိတစ္ဆတြာယာ ဇီရကသျ စ ဒၑမာံၑာန် ဒတ္ထ, ကိန္တု ဝျဝသ္ထာယာ ဂုရုတရာန် နျာယဒယာဝိၑွာသာန် ပရိတျဇထ; ဣမေ ယုၐ္မာဘိရာစရဏီယာ အမီ စ န လံဃနီယား၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

23 hanta kapaTina upAdhyAyAH phirUzinazca, yUyaM pOdinAyAH sitacchatrAyA jIrakasya ca dazamAMzAn dattha, kintu vyavasthAyA gurutarAn nyAyadayAvizvAsAn parityajatha; imE yuSmAbhirAcaraNIyA amI ca na laMghanIyAH|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

23 હન્ત કપટિન ઉપાધ્યાયાઃ ફિરૂશિનશ્ચ, યૂયં પોદિનાયાઃ સિતચ્છત્રાયા જીરકસ્ય ચ દશમાંશાન્ દત્થ, કિન્તુ વ્યવસ્થાયા ગુરુતરાન્ ન્યાયદયાવિશ્વાસાન્ પરિત્યજથ; ઇમે યુષ્માભિરાચરણીયા અમી ચ ન લંઘનીયાઃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मत्ती 23:23
16 अन्तरसन्दर्भाः  

किन्तु दयायां मे यथा प्रीति र्न तथा यज्ञकर्म्मणि। एतद्वचनस्यार्थं यदि युयम् अज्ञासिष्ट तर्हि निर्दोषान् दोषिणो नाकार्ष्ट।


हन्त कपटिन उपाध्यायाः फिरूशिनश्च, यूयं मनुजानां समक्षं स्वर्गद्वारं रुन्ध, यूयं स्वयं तेन न प्रविशथ, प्रविविक्षूनपि वारयथ। वत कपटिन उपाध्यायाः फिरूशिनश्च यूयं छलाद् दीर्घं प्रार्थ्य विधवानां सर्व्वस्वं ग्रसथ, युष्माकं घोरतरदण्डो भविष्यति।


अतो यूयं यात्वा वचनस्यास्यार्थं शिक्षध्वम्, दयायां मे यथा प्रीति र्न तथा यज्ञकर्म्मणि।यतोऽहं धार्म्मिकान् आह्वातुं नागतोऽस्मि किन्तु मनः परिवर्त्तयितुं पापिन आह्वातुम् आगतोऽस्मि।


किन्तु हन्त फिरूशिगणा यूयं न्यायम् ईश्वरे प्रेम च परित्यज्य पोदिनाया अरुदादीनां सर्व्वेषां शाकानाञ्च दशमांशान् दत्थ किन्तु प्रथमं पालयित्वा शेषस्यालङ्घनं युष्माकम् उचितमासीत्।


सप्तसु दिनेषु दिनद्वयमुपवसामि सर्व्वसम्पत्ते र्दशमांशं ददामि च, एतत्कथां कथयन् प्रार्थयामास।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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