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मत्ती 22:4 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

4 ततो राजा पुनरपि दासानन्यान् इत्युक्त्वा प्रेषयामास, निमन्त्रितान् वदत, पश्यत, मम भेज्यमासादितमास्ते, निजव्टषादिपुष्टजन्तून् मारयित्वा सर्व्वं खाद्यद्रव्यमासादितवान्, यूयं विवाहमागच्छत।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

4 ততো ৰাজা পুনৰপি দাসানন্যান্ ইত্যুক্ত্ৱা প্ৰেষযামাস, নিমন্ত্ৰিতান্ ৱদত, পশ্যত, মম ভেজ্যমাসাদিতমাস্তে, নিজৱ্টষাদিপুষ্টজন্তূন্ মাৰযিৎৱা সৰ্ৱ্ৱং খাদ্যদ্ৰৱ্যমাসাদিতৱান্, যূযং ৱিৱাহমাগচ্ছত|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

4 ততো রাজা পুনরপি দাসানন্যান্ ইত্যুক্ত্ৱা প্রেষযামাস, নিমন্ত্রিতান্ ৱদত, পশ্যত, মম ভেজ্যমাসাদিতমাস্তে, নিজৱ্টষাদিপুষ্টজন্তূন্ মারযিৎৱা সর্ৱ্ৱং খাদ্যদ্রৱ্যমাসাদিতৱান্, যূযং ৱিৱাহমাগচ্ছত|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

4 တတော ရာဇာ ပုနရပိ ဒါသာနနျာန် ဣတျုက္တွာ ပြေၐယာမာသ, နိမန္တြိတာန် ဝဒတ, ပၑျတ, မမ ဘေဇျမာသာဒိတမာသ္တေ, နိဇဝ္ဋၐာဒိပုၐ္ဋဇန္တူန် မာရယိတွာ သရွွံ ခါဒျဒြဝျမာသာဒိတဝါန်, ယူယံ ဝိဝါဟမာဂစ္ဆတ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

4 tatO rAjA punarapi dAsAnanyAn ityuktvA prESayAmAsa, nimantritAn vadata, pazyata, mama bhEjyamAsAditamAstE, nijavTaSAdipuSTajantUn mArayitvA sarvvaM khAdyadravyamAsAditavAn, yUyaM vivAhamAgacchata|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

4 તતો રાજા પુનરપિ દાસાનન્યાન્ ઇત્યુક્ત્વા પ્રેષયામાસ, નિમન્ત્રિતાન્ વદત, પશ્યત, મમ ભેજ્યમાસાદિતમાસ્તે, નિજવ્ટષાદિપુષ્ટજન્તૂન્ મારયિત્વા સર્વ્વં ખાદ્યદ્રવ્યમાસાદિતવાન્, યૂયં વિવાહમાગચ્છત|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मत्ती 22:4
18 अन्तरसन्दर्भाः  

पुनरपि स प्रभुः प्रथमतोऽधिकदासेयान् प्रेषयामास, किन्तु ते तान् प्रत्यपि तथैव चक्रुः।


तथपि ते तुच्छीकृत्य केचित् निजक्षेत्रं केचिद् वाणिज्यं प्रति स्वस्वमार्गेण चलितवन्तः।


ततः स निजदासेयान् बभाषे, विवाहीयं भोज्यमासादितमास्ते, किन्तु निमन्त्रिता जना अयोग्याः।


ततो भोजनसमये निमन्त्रितलोकान् आह्वातुं दासद्वारा कथयामास, खद्यद्रव्याणि सर्व्वाणि समासादितानि सन्ति, यूयमागच्छत।


किन्तु युष्मासु पवित्रस्यात्मन आविर्भावे सति यूयं शक्तिं प्राप्य यिरूशालमि समस्तयिहूदाशोमिरोणदेशयोः पृथिव्याः सीमां यावद् यावन्तो देशास्तेषु यर्व्वेषु च मयि साक्ष्यं दास्यथ।


ततः पौैलबर्णब्बावक्षोभौ कथितवन्तौ प्रथमं युष्माकं सन्निधावीश्वरीयकथायाः प्रचारणम् उचितमासीत् किन्तुं तदग्राह्यत्वकरणेन यूयं स्वान् अनन्तायुषोऽयोग्यान् दर्शयथ, एतत्कारणाद् वयम् अन्यदेशीयलोकानां समीपं गच्छामः।


आत्मपुत्रं न रक्षित्वा योऽस्माकं सर्व्वेषां कृते तं प्रदत्तवान् स किं तेन सहास्मभ्यम् अन्यानि सर्व्वाणि न दास्यति?


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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