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मत्ती 21:37 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

37 अनन्तरं मम सुते गते तं समादरिष्यन्ते, इत्युक्त्वा शेषे स निजसुतं तेषां सन्निधिं प्रेषयामास।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

37 অনন্তৰং মম সুতে গতে তং সমাদৰিষ্যন্তে, ইত্যুক্ত্ৱা শেষে স নিজসুতং তেষাং সন্নিধিং প্ৰেষযামাস|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

37 অনন্তরং মম সুতে গতে তং সমাদরিষ্যন্তে, ইত্যুক্ত্ৱা শেষে স নিজসুতং তেষাং সন্নিধিং প্রেষযামাস|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

37 အနန္တရံ မမ သုတေ ဂတေ တံ သမာဒရိၐျန္တေ, ဣတျုက္တွာ ၑေၐေ သ နိဇသုတံ တေၐာံ သန္နိဓိံ ပြေၐယာမာသ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

37 anantaraM mama sutE gatE taM samAdariSyantE, ityuktvA zESE sa nijasutaM tESAM sannidhiM prESayAmAsa|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

37 અનન્તરં મમ સુતે ગતે તં સમાદરિષ્યન્તે, ઇત્યુક્ત્વા શેષે સ નિજસુતં તેષાં સન્નિધિં પ્રેષયામાસ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

37 anantaraM mama sute gate taM samAdariSyante, ityuktvA zeSe sa nijasutaM teSAM sannidhiM preSayAmAsa|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मत्ती 21:37
13 अन्तरसन्दर्भाः  

पुनरपि स प्रभुः प्रथमतोऽधिकदासेयान् प्रेषयामास, किन्तु ते तान् प्रत्यपि तथैव चक्रुः।


किन्तु ते कृषीवलाः सुतं वीक्ष्य परस्परम् इति मन्त्रयितुम् आरेभिरे, अयमुत्तराधिकारी वयमेनं निहत्यास्याधिकारं स्ववशीकरिष्यामः।


अपरम् एष मम प्रियः पुत्र एतस्मिन्नेव मम महासन्तोष एतादृशी व्योमजा वाग् बभूव।


ततः परं मया स्वपुत्रे प्रहिते ते तमवश्यं सम्मंस्यन्ते, इत्युक्त्वावशेषे तेषां सन्निधौ निजप्रियम् अद्वितीयं पुत्रं प्रेषयामास।


तदा क्षेत्रपति र्विचारयामास, ममेदानीं किं कर्त्तव्यं? मम प्रिये पुत्रे प्रहिते ते तमवश्यं दृष्ट्वा समादरिष्यन्ते।


कोपि मनुज ईश्वरं कदापि नापश्यत् किन्तु पितुः क्रोडस्थोऽद्वितीयः पुत्रस्तं प्रकाशयत्।


अवस्तन्निरीक्ष्यायम् ईश्वरस्य तनय इति प्रमाणं ददामि।


ईश्वर इत्थं जगददयत यत् स्वमद्वितीयं तनयं प्राददात् ततो यः कश्चित् तस्मिन् विश्वसिष्यति सोऽविनाश्यः सन् अनन्तायुः प्राप्स्यति।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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