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मत्ती 13:32 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

32 सर्षपबीजं सर्व्वस्माद् बीजात् क्षुद्रमपि सदङ्कुरितं सर्व्वस्मात् शाकात् बृहद् भवति; स तादृशस्तरु र्भवति, यस्य शाखासु नभसः खगा आगत्य निवसन्ति; स्वर्गीयराज्यं तादृशस्य सर्षपैकस्य समम्।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

32 সৰ্ষপবীজং সৰ্ৱ্ৱস্মাদ্ বীজাৎ ক্ষুদ্ৰমপি সদঙ্কুৰিতং সৰ্ৱ্ৱস্মাৎ শাকাৎ বৃহদ্ ভৱতি; স তাদৃশস্তৰু ৰ্ভৱতি, যস্য শাখাসু নভসঃ খগা আগত্য নিৱসন্তি; স্ৱৰ্গীযৰাজ্যং তাদৃশস্য সৰ্ষপৈকস্য সমম্|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

32 সর্ষপবীজং সর্ৱ্ৱস্মাদ্ বীজাৎ ক্ষুদ্রমপি সদঙ্কুরিতং সর্ৱ্ৱস্মাৎ শাকাৎ বৃহদ্ ভৱতি; স তাদৃশস্তরু র্ভৱতি, যস্য শাখাসু নভসঃ খগা আগত্য নিৱসন্তি; স্ৱর্গীযরাজ্যং তাদৃশস্য সর্ষপৈকস্য সমম্|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

32 သရ္ၐပဗီဇံ သရွွသ္မာဒ် ဗီဇာတ် က္ၐုဒြမပိ သဒင်္ကုရိတံ သရွွသ္မာတ် ၑာကာတ် ဗၖဟဒ် ဘဝတိ; သ တာဒၖၑသ္တရု ရ္ဘဝတိ, ယသျ ၑာခါသု နဘသး ခဂါ အာဂတျ နိဝသန္တိ; သွရ္ဂီယရာဇျံ တာဒၖၑသျ သရ္ၐပဲကသျ သမမ်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

32 sarSapabIjaM sarvvasmAd bIjAt kSudramapi sadagkuritaM sarvvasmAt zAkAt bRhad bhavati; sa tAdRzastaru rbhavati, yasya zAkhAsu nabhasaH khagA Agatya nivasanti; svargIyarAjyaM tAdRzasya sarSapaikasya samam|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

32 સર્ષપબીજં સર્વ્વસ્માદ્ બીજાત્ ક્ષુદ્રમપિ સદઙ્કુરિતં સર્વ્વસ્માત્ શાકાત્ બૃહદ્ ભવતિ; સ તાદૃશસ્તરુ ર્ભવતિ, યસ્ય શાખાસુ નભસઃ ખગા આગત્ય નિવસન્તિ; સ્વર્ગીયરાજ્યં તાદૃશસ્ય સર્ષપૈકસ્ય સમમ્|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मत्ती 13:32
20 अन्तरसन्दर्भाः  

पुनः सोऽकथयद् ईश्वरराज्यं केन समं? केन वस्तुना सह वा तदुपमास्यामि?


किन्तु वपनात् परम् अङ्कुरयित्वा सर्व्वशाकाद् बृहद् भवति, तस्य बृहत्यः शाखाश्च जायन्ते ततस्तच्छायां पक्षिण आश्रयन्ते।


अनन्तरं सोवदद् ईश्वरस्य राज्यं कस्य सदृशं? केन तदुपमास्यामि?


तस्मिन् समये तत्र स्थाने साकल्येन विंशत्यधिकशतं शिष्या आसन्। ततः पितरस्तेषां मध्ये तिष्ठन् उक्तवान्


इति श्रुत्वा ते प्रभुं धन्यं प्रोच्य वाक्यमिदम् अभाषन्त, हे भ्रात र्यिहूदीयानां मध्ये बहुसहस्राणि लोका विश्वासिन आसते किन्तु ते सर्व्वे व्यवस्थामताचारिण एतत् प्रत्यक्षं पश्यसि।


अनन्तरं सप्तदूतेन तूर्य्यां वादितायां स्वर्ग उच्चैः स्वरैर्वागियं कीर्त्तिता, राजत्वं जगतो यद्यद् राज्यं तदधुनाभवत्। अस्मत्प्रभोस्तदीयाभिषिक्तस्य तारकस्य च। तेन चानन्तकालीयं राजत्वं प्रकरिष्यते॥


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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