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मत्ती 11:19 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

19 मनुजसुत आगत्य भुक्तवान् पीतवांश्च, तेन लोका वदन्ति, पश्यत एष भोक्ता मद्यपाता चण्डालपापिनां बन्धश्च, किन्तु ज्ञानिनो ज्ञानव्यवहारं निर्दोषं जानन्ति।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

19 মনুজসুত আগত্য ভুক্তৱান্ পীতৱাংশ্চ, তেন লোকা ৱদন্তি, পশ্যত এষ ভোক্তা মদ্যপাতা চণ্ডালপাপিনাং বন্ধশ্চ, কিন্তু জ্ঞানিনো জ্ঞানৱ্যৱহাৰং নিৰ্দোষং জানন্তি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

19 মনুজসুত আগত্য ভুক্তৱান্ পীতৱাংশ্চ, তেন লোকা ৱদন্তি, পশ্যত এষ ভোক্তা মদ্যপাতা চণ্ডালপাপিনাং বন্ধশ্চ, কিন্তু জ্ঞানিনো জ্ঞানৱ্যৱহারং নির্দোষং জানন্তি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

19 မနုဇသုတ အာဂတျ ဘုက္တဝါန် ပီတဝါံၑ္စ, တေန လောကာ ဝဒန္တိ, ပၑျတ ဧၐ ဘောက္တာ မဒျပါတာ စဏ္ဍာလပါပိနာံ ဗန္ဓၑ္စ, ကိန္တု ဇ္ဉာနိနော ဇ္ဉာနဝျဝဟာရံ နိရ္ဒောၐံ ဇာနန္တိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

19 manujasuta Agatya bhuktavAn pItavAMzca, tEna lOkA vadanti, pazyata ESa bhOktA madyapAtA caNPAlapApinAM bandhazca, kintu jnjAninO jnjAnavyavahAraM nirdOSaM jAnanti|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

19 મનુજસુત આગત્ય ભુક્તવાન્ પીતવાંશ્ચ, તેન લોકા વદન્તિ, પશ્યત એષ ભોક્તા મદ્યપાતા ચણ્ડાલપાપિનાં બન્ધશ્ચ, કિન્તુ જ્ઞાનિનો જ્ઞાનવ્યવહારં નિર્દોષં જાનન્તિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मत्ती 11:19
19 अन्तरसन्दर्भाः  

ये युष्मासु प्रेम कुर्व्वन्ति, यूयं यदि केवलं तेव्वेव प्रेम कुरुथ, तर्हि युष्माकं किं फलं भविष्यति? चण्डाला अपि तादृशं किं न कुर्व्वन्ति?


अनन्तरं विश्रामवारे यीशौ प्रधानस्य फिरूशिनो गृहे भोक्तुं गतवति ते तं वीक्षितुम् आरेभिरे।


तद् दृष्ट्वा सर्व्वे विवदमाना वक्तुमारेभिरे, सोतिथित्वेन दुष्टलोकगृहं गच्छति।


अपरञ्च सर्व्वे लोकाः करमञ्चायिनश्च तस्य वाक्यानि श्रुत्वा योहना मज्जनेन मज्जिताः परमेश्वरं निर्दोषं मेनिरे।


तस्मै विवाहाय यीशुस्तस्य शिष्याश्च निमन्त्रिता आसन्।


अस्माकम् एकैको जनः स्वसमीपवासिनो हितार्थं निष्ठार्थञ्च तस्यैवेष्टाचारम् आचरतु।


तथास्तु धन्यवादश्च तेजो ज्ञानं प्रशंसनं। शौर्य्यं पराक्रमश्चापि शक्तिश्च सर्व्वमेव तत्। वर्त्ततामीश्वरेऽस्माकं नित्यं नित्यं तथास्त्विति।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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