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मार्क 13:34 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

34 यद्वत् कश्चित् पुमान् स्वनिवेशनाद् दूरदेशं प्रति यात्राकरणकाले दासेषु स्वकार्य्यस्य भारमर्पयित्वा सर्व्वान् स्वे स्वे कर्म्मणि नियोजयति; अपरं दौवारिकं जागरितुं समादिश्य याति, तद्वन् नरपुत्रः।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

34 যদ্ৱৎ কশ্চিৎ পুমান্ স্ৱনিৱেশনাদ্ দূৰদেশং প্ৰতি যাত্ৰাকৰণকালে দাসেষু স্ৱকাৰ্য্যস্য ভাৰমৰ্পযিৎৱা সৰ্ৱ্ৱান্ স্ৱে স্ৱে কৰ্ম্মণি নিযোজযতি; অপৰং দৌৱাৰিকং জাগৰিতুং সমাদিশ্য যাতি, তদ্ৱন্ নৰপুত্ৰঃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

34 যদ্ৱৎ কশ্চিৎ পুমান্ স্ৱনিৱেশনাদ্ দূরদেশং প্রতি যাত্রাকরণকালে দাসেষু স্ৱকার্য্যস্য ভারমর্পযিৎৱা সর্ৱ্ৱান্ স্ৱে স্ৱে কর্ম্মণি নিযোজযতি; অপরং দৌৱারিকং জাগরিতুং সমাদিশ্য যাতি, তদ্ৱন্ নরপুত্রঃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

34 ယဒွတ် ကၑ္စိတ် ပုမာန် သွနိဝေၑနာဒ် ဒူရဒေၑံ ပြတိ ယာတြာကရဏကာလေ ဒါသေၐု သွကာရျျသျ ဘာရမရ္ပယိတွာ သရွွာန် သွေ သွေ ကရ္မ္မဏိ နိယောဇယတိ; အပရံ ဒေါ်ဝါရိကံ ဇာဂရိတုံ သမာဒိၑျ ယာတိ, တဒွန် နရပုတြး၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

34 yadvat kazcit pumAn svanivEzanAd dUradEzaM prati yAtrAkaraNakAlE dAsESu svakAryyasya bhAramarpayitvA sarvvAn svE svE karmmaNi niyOjayati; aparaM dauvArikaM jAgarituM samAdizya yAti, tadvan naraputraH|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

34 યદ્વત્ કશ્ચિત્ પુમાન્ સ્વનિવેશનાદ્ દૂરદેશં પ્રતિ યાત્રાકરણકાલે દાસેષુ સ્વકાર્ય્યસ્ય ભારમર્પયિત્વા સર્વ્વાન્ સ્વે સ્વે કર્મ્મણિ નિયોજયતિ; અપરં દૌવારિકં જાગરિતું સમાદિશ્ય યાતિ, તદ્વન્ નરપુત્રઃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मार्क 13:34
17 अन्तरसन्दर्भाः  

अहं तुभ्यं स्वर्गीयराज्यस्य कुञ्जिकां दास्यामि, तेन यत् किञ्चन त्वं पृथिव्यां भंत्स्यसि तत्स्वर्गे भंत्स्यते, यच्च किञ्चन मह्यां मोक्ष्यसि तत् स्वर्गे मोक्ष्यते।


दौवारिकस्तस्मै द्वारं मोचयति मेषगणश्च तस्य वाक्यं शृणोति स निजान् मेषान् स्वस्वनाम्नाहूय बहिः कृत्वा नयति।


एतस्माद् युष्माकं राजकरदानमप्युचितं यस्माद् ये करं गृह्लन्ति त ईश्वरस्य किङ्करा भूत्वा सततम् एतस्मिन् कर्म्मणि निविष्टास्तिष्ठन्ति।


अतो हे मम प्रियभ्रातरः; यूयं सुस्थिरा निश्चलाश्च भवत प्रभोः सेवायां युष्माकं परिश्रमो निष्फलो न भविष्यतीति ज्ञात्वा प्रभोः कार्य्ये सदा तत्परा भवत।


यतो वयं प्रभुतः स्वर्गाधिकाररूपं फलं लप्स्यामह इति यूयं जानीथ यस्माद् यूयं प्रभोः ख्रीष्टस्य दासा भवथ।


अपरञ्च हे अधिपतयः, यूयं दासान् प्रति न्याय्यं यथार्थञ्चाचरणं कुरुध्वं युष्माकमप्येकोऽधिपतिः स्वर्गे विद्यत इति जानीत।


अपरञ्च फिलादिल्फियास्थसमिते र्दूतं प्रतीदं लिख, यः पवित्रः सत्यमयश्चास्ति दायूदः कुञ्जिकां धारयति च येन मोचिते ऽपरः कोऽपि न रुणद्धि रुद्धे चापरः कोऽपि न मोचयति स एव भाषते।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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