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लूका 14:12 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

12 तदा स निमन्त्रयितारं जनमपि जगाद, मध्याह्ने रात्रौ वा भोज्ये कृते निजबन्धुगणो वा भ्रातृृगणो वा ज्ञातिगणो वा धनिगणो वा समीपवासिगणो वा एतान् न निमन्त्रय, तथा कृते चेत् ते त्वां निमन्त्रयिष्यन्ति, तर्हि परिशोधो भविष्यति।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

12 তদা স নিমন্ত্ৰযিতাৰং জনমপি জগাদ, মধ্যাহ্নে ৰাত্ৰৌ ৱা ভোজ্যে কৃতে নিজবন্ধুগণো ৱা ভ্ৰাতৃृগণো ৱা জ্ঞাতিগণো ৱা ধনিগণো ৱা সমীপৱাসিগণো ৱা এতান্ ন নিমন্ত্ৰয, তথা কৃতে চেৎ তে ৎৱাং নিমন্ত্ৰযিষ্যন্তি, তৰ্হি পৰিশোধো ভৱিষ্যতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

12 তদা স নিমন্ত্রযিতারং জনমপি জগাদ, মধ্যাহ্নে রাত্রৌ ৱা ভোজ্যে কৃতে নিজবন্ধুগণো ৱা ভ্রাতৃृগণো ৱা জ্ঞাতিগণো ৱা ধনিগণো ৱা সমীপৱাসিগণো ৱা এতান্ ন নিমন্ত্রয, তথা কৃতে চেৎ তে ৎৱাং নিমন্ত্রযিষ্যন্তি, তর্হি পরিশোধো ভৱিষ্যতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

12 တဒါ သ နိမန္တြယိတာရံ ဇနမပိ ဇဂါဒ, မဓျာဟ္နေ ရာတြော် ဝါ ဘောဇျေ ကၖတေ နိဇဗန္ဓုဂဏော ဝါ ဘြာတၖृဂဏော ဝါ ဇ္ဉာတိဂဏော ဝါ ဓနိဂဏော ဝါ သမီပဝါသိဂဏော ဝါ ဧတာန် န နိမန္တြယ, တထာ ကၖတေ စေတ် တေ တွာံ နိမန္တြယိၐျန္တိ, တရှိ ပရိၑောဓော ဘဝိၐျတိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

12 tadA sa nimantrayitAraM janamapi jagAda, madhyAhnE rAtrau vA bhOjyE kRtE nijabandhugaNO vA bhrAtRृgaNO vA jnjAtigaNO vA dhanigaNO vA samIpavAsigaNO vA EtAn na nimantraya, tathA kRtE cEt tE tvAM nimantrayiSyanti, tarhi parizOdhO bhaviSyati|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

12 તદા સ નિમન્ત્રયિતારં જનમપિ જગાદ, મધ્યાહ્ને રાત્રૌ વા ભોજ્યે કૃતે નિજબન્ધુગણો વા ભ્રાતૃृગણો વા જ્ઞાતિગણો વા ધનિગણો વા સમીપવાસિગણો વા એતાન્ ન નિમન્ત્રય, તથા કૃતે ચેત્ તે ત્વાં નિમન્ત્રયિષ્યન્તિ, તર્હિ પરિશોધો ભવિષ્યતિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




लूका 14:12
13 अन्तरसन्दर्भाः  

ये युष्मासु प्रेम कुर्व्वन्ति, यूयं यदि केवलं तेव्वेव प्रेम कुरुथ, तर्हि युष्माकं किं फलं भविष्यति? चण्डाला अपि तादृशं किं न कुर्व्वन्ति?


क्षुधितान् मानवान् द्रव्यैरुत्तमैः परितर्प्य सः। सकलान् धनिनो लोकान् विसृजेद् रिक्तहस्तकान्।


ततः परमेश्वरस्तस्यां महानुग्रहं कृतवान् एतत् श्रुत्वा समीपवासिनः कुटुम्बाश्चागत्य तया सह मुमुदिरे।


यः कश्चित् स्वमुन्नमयति स नमयिष्यते, किन्तु यः कश्चित् स्वं नमयति स उन्नमयिष्यते।


किन्तु यदा भेज्यं करोषि तदा दरिद्रशुष्ककरखञ्जान्धान् निमन्त्रय,


किन्तु मह्यं न्याय्यफलदानार्थं युष्माभिरपि विकसितै र्भवितव्यम् इत्यहं निजबालकानिव युष्मान् वदामि।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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