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लूका 11:42 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

42 किन्तु हन्त फिरूशिगणा यूयं न्यायम् ईश्वरे प्रेम च परित्यज्य पोदिनाया अरुदादीनां सर्व्वेषां शाकानाञ्च दशमांशान् दत्थ किन्तु प्रथमं पालयित्वा शेषस्यालङ्घनं युष्माकम् उचितमासीत्।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

42 কিন্তু হন্ত ফিৰূশিগণা যূযং ন্যাযম্ ঈশ্ৱৰে প্ৰেম চ পৰিত্যজ্য পোদিনাযা অৰুদাদীনাং সৰ্ৱ্ৱেষাং শাকানাঞ্চ দশমাংশান্ দত্থ কিন্তু প্ৰথমং পালযিৎৱা শেষস্যালঙ্ঘনং যুষ্মাকম্ উচিতমাসীৎ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

42 কিন্তু হন্ত ফিরূশিগণা যূযং ন্যাযম্ ঈশ্ৱরে প্রেম চ পরিত্যজ্য পোদিনাযা অরুদাদীনাং সর্ৱ্ৱেষাং শাকানাঞ্চ দশমাংশান্ দত্থ কিন্তু প্রথমং পালযিৎৱা শেষস্যালঙ্ঘনং যুষ্মাকম্ উচিতমাসীৎ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

42 ကိန္တု ဟန္တ ဖိရူၑိဂဏာ ယူယံ နျာယမ် ဤၑွရေ ပြေမ စ ပရိတျဇျ ပေါဒိနာယာ အရုဒါဒီနာံ သရွွေၐာံ ၑာကာနာဉ္စ ဒၑမာံၑာန် ဒတ္ထ ကိန္တု ပြထမံ ပါလယိတွာ ၑေၐသျာလင်္ဃနံ ယုၐ္မာကမ် ဥစိတမာသီတ်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

42 kintu hanta phirUzigaNA yUyaM nyAyam IzvarE prEma ca parityajya pOdinAyA arudAdInAM sarvvESAM zAkAnAnjca dazamAMzAn dattha kintu prathamaM pAlayitvA zESasyAlagghanaM yuSmAkam ucitamAsIt|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

42 કિન્તુ હન્ત ફિરૂશિગણા યૂયં ન્યાયમ્ ઈશ્વરે પ્રેમ ચ પરિત્યજ્ય પોદિનાયા અરુદાદીનાં સર્વ્વેષાં શાકાનાઞ્ચ દશમાંશાન્ દત્થ કિન્તુ પ્રથમં પાલયિત્વા શેષસ્યાલઙ્ઘનં યુષ્માકમ્ ઉચિતમાસીત્|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




लूका 11:42
22 अन्तरसन्दर्भाः  

हन्त कपटिन उपाध्यायाः फिरूशिनश्च, यूयं मनुजानां समक्षं स्वर्गद्वारं रुन्ध, यूयं स्वयं तेन न प्रविशथ, प्रविविक्षूनपि वारयथ। वत कपटिन उपाध्यायाः फिरूशिनश्च यूयं छलाद् दीर्घं प्रार्थ्य विधवानां सर्व्वस्वं ग्रसथ, युष्माकं घोरतरदण्डो भविष्यति।


हन्त कपटिन उपाध्यायाः फिरूशिनश्च, यूयं पोदिनायाः सितच्छत्राया जीरकस्य च दशमांशान् दत्थ, किन्तु व्यवस्थाया गुरुतरान् न्यायदयाविश्वासान् परित्यजथ; इमे युष्माभिराचरणीया अमी च न लंघनीयाः।


हन्त कपटिन उपाध्यायाः फिरूशिनश्च, यूयं शुक्लीकृतश्मशानस्वरूपा भवथ, यथा श्मशानभवनस्य बहिश्चारु, किन्त्वभ्यन्तरं मृतलोकानां कीकशैः सर्व्वप्रकारमलेन च परिपूर्णम्;


सप्तसु दिनेषु दिनद्वयमुपवसामि सर्व्वसम्पत्ते र्दशमांशं ददामि च, एतत्कथां कथयन् प्रार्थयामास।


अहं युष्मान् जानामि; युष्माकमन्तर ईश्वरप्रेम नास्ति।


ईश्वरे ऽहं प्रीय इत्युक्त्वा यः कश्चित् स्वभ्रातरं द्वेष्टि सो ऽनृतवादी। स यं दृष्टवान् तस्मिन् स्वभ्रातरि यदि न प्रीयते तर्हि यम् ईश्वरं न दृष्टवान् कथं तस्मिन् प्रेम कर्त्तुं शक्नुयात्?


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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