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योहन 3:8 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

8 सदागतिर्यां दिशमिच्छति तस्यामेव दिशि वाति, त्वं तस्य स्वनं शुणोषि किन्तु स कुत आयाति कुत्र याति वा किमपि न जानासि तद्वाद् आत्मनः सकाशात् सर्व्वेषां मनुजानां जन्म भवति।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

8 সদাগতিৰ্যাং দিশমিচ্ছতি তস্যামেৱ দিশি ৱাতি, ৎৱং তস্য স্ৱনং শুণোষি কিন্তু স কুত আযাতি কুত্ৰ যাতি ৱা কিমপি ন জানাসি তদ্ৱাদ্ আত্মনঃ সকাশাৎ সৰ্ৱ্ৱেষাং মনুজানাং জন্ম ভৱতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

8 সদাগতির্যাং দিশমিচ্ছতি তস্যামেৱ দিশি ৱাতি, ৎৱং তস্য স্ৱনং শুণোষি কিন্তু স কুত আযাতি কুত্র যাতি ৱা কিমপি ন জানাসি তদ্ৱাদ্ আত্মনঃ সকাশাৎ সর্ৱ্ৱেষাং মনুজানাং জন্ম ভৱতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

8 သဒါဂတိရျာံ ဒိၑမိစ္ဆတိ တသျာမေဝ ဒိၑိ ဝါတိ, တွံ တသျ သွနံ ၑုဏောၐိ ကိန္တု သ ကုတ အာယာတိ ကုတြ ယာတိ ဝါ ကိမပိ န ဇာနာသိ တဒွါဒ် အာတ္မနး သကာၑာတ် သရွွေၐာံ မနုဇာနာံ ဇန္မ ဘဝတိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

8 sadAgatiryAM dizamicchati tasyAmEva dizi vAti, tvaM tasya svanaM zuNOSi kintu sa kuta AyAti kutra yAti vA kimapi na jAnAsi tadvAd AtmanaH sakAzAt sarvvESAM manujAnAM janma bhavati|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

8 સદાગતિર્યાં દિશમિચ્છતિ તસ્યામેવ દિશિ વાતિ, ત્વં તસ્ય સ્વનં શુણોષિ કિન્તુ સ કુત આયાતિ કુત્ર યાતિ વા કિમપિ ન જાનાસિ તદ્વાદ્ આત્મનઃ સકાશાત્ સર્વ્વેષાં મનુજાનાં જન્મ ભવતિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

8 sadAgatiryAM dizamicchati tasyAmeva dizi vAti, tvaM tasya svanaM zuNoSi kintu sa kuta AyAti kutra yAti vA kimapi na jAnAsi tadvAd AtmanaH sakAzAt sarvveSAM manujAnAM janma bhavati|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




योहन 3:8
21 अन्तरसन्दर्भाः  

तेषां जनिः शोणितान्न शारीरिकाभिलाषान्न मानवानामिच्छातो न किन्त्वीश्वरादभवत्।


युष्माभिः पुन र्जनितव्यं ममैतस्यां कथायाम् आश्चर्यं मा मंस्थाः।


तदा निकदीमः पृष्टवान् एतत् कथं भवितुं शक्नोति?


एतस्मिन्नेव समयेऽकस्माद् आकाशात् प्रचण्डात्युग्रवायोः शब्दवद् एकः शब्द आगत्य यस्मिन् गृहे त उपाविशन् तद् गृहं समस्तं व्याप्नोत्।


इत्थं प्रार्थनया यत्र स्थाने ते सभायाम् आसन् तत् स्थानं प्राकम्पत; ततः सर्व्वे पवित्रेणात्मना परिपूर्णाः सन्त ईश्वरस्य कथाम् अक्षोभेण प्राचारयन्।


एकेनाद्वितीयेनात्मना यथाभिलाषम् एकैकस्मै जनायैकैकं दानं वितरता तानि सर्व्वाणि साध्यन्ते।


मनुजस्यान्तःस्थमात्मानं विना केन मनुजेन तस्य मनुजस्य तत्त्वं बुध्यते? तद्वदीश्वरस्यात्मानं विना केनापीश्वरस्य तत्त्वं न बुध्यते।


स धार्म्मिको ऽस्तीति यदि यूयं जानीथ तर्हि यः कश्चिद् धर्म्माचारं करोति स तस्मात् जात इत्यपि जानीत।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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