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गलातियों 1:9 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

9 पूर्व्वं यद्वद् अकथयाम, इदानीमहं पुनस्तद्वत् कथयामि यूयं यं सुसंवादं गृहीतवन्तस्तस्माद् अन्यो येन केनचिद् युष्मत्सन्निधौ घोष्यते स शप्तो भवतु।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

9 পূৰ্ৱ্ৱং যদ্ৱদ্ অকথযাম, ইদানীমহং পুনস্তদ্ৱৎ কথযামি যূযং যং সুসংৱাদং গৃহীতৱন্তস্তস্মাদ্ অন্যো যেন কেনচিদ্ যুষ্মৎসন্নিধৌ ঘোষ্যতে স শপ্তো ভৱতু|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

9 পূর্ৱ্ৱং যদ্ৱদ্ অকথযাম, ইদানীমহং পুনস্তদ্ৱৎ কথযামি যূযং যং সুসংৱাদং গৃহীতৱন্তস্তস্মাদ্ অন্যো যেন কেনচিদ্ যুষ্মৎসন্নিধৌ ঘোষ্যতে স শপ্তো ভৱতু|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

9 ပူရွွံ ယဒွဒ် အကထယာမ, ဣဒါနီမဟံ ပုနသ္တဒွတ် ကထယာမိ ယူယံ ယံ သုသံဝါဒံ ဂၖဟီတဝန္တသ္တသ္မာဒ် အနျော ယေန ကေနစိဒ် ယုၐ္မတ္သန္နိဓော် ဃောၐျတေ သ ၑပ္တော ဘဝတု၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

9 pUrvvaM yadvad akathayAma, idAnImahaM punastadvat kathayAmi yUyaM yaM susaMvAdaM gRhItavantastasmAd anyO yEna kEnacid yuSmatsannidhau ghOSyatE sa zaptO bhavatu|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

9 પૂર્વ્વં યદ્વદ્ અકથયામ, ઇદાનીમહં પુનસ્તદ્વત્ કથયામિ યૂયં યં સુસંવાદં ગૃહીતવન્તસ્તસ્માદ્ અન્યો યેન કેનચિદ્ યુષ્મત્સન્નિધૌ ઘોષ્યતે સ શપ્તો ભવતુ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




गलातियों 1:9
13 अन्तरसन्दर्भाः  

तत्र कियत्कालं यापयित्वा तस्मात् प्रस्थाय सर्व्वेषां शिष्याणां मनांसि सुस्थिराणि कृत्वा क्रमशो गलातियाफ्रुगियादेशयो र्भ्रमित्वा गतवान्।


हे भ्रातरो युष्मान् विनयेऽहं युष्माभि र्या शिक्षा लब्धा ताम् अतिक्रम्य ये विच्छेदान् विघ्नांश्च कुर्व्वन्ति तान् निश्चिनुत तेषां सङ्गं वर्जयत च।


तस्माद् अहं स्वजातीयभ्रातृणां निमित्तात् स्वयं ख्रीष्टाच्छापाक्रान्तो भवितुम् ऐच्छम्।


एतादृशी मन्त्रणा मया किं चाञ्चल्येन कृता? यद् यद् अहं मन्त्रये तत् किं विषयिलोकइव मन्त्रयाण आदौ स्वीकृत्य पश्चाद् अस्वीकुर्व्वे?


हे भ्रातरः, शेषे वदामि यूयं प्रभावानन्दत। पुनः पुनरेकस्य वचो लेखनं मम क्लेशदं नहि युष्मदर्थञ्च भ्रमनाशकं भवति।


यूयं प्रभौ सर्व्वदानन्दत। पुन र्वदामि यूयम् आनन्दत।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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