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कुलुस्सियों 1:21 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

21 पूर्व्वं दूरस्था दुष्क्रियारतमनस्कत्वात् तस्य रिपवश्चास्त ये यूयं तान् युष्मान् अपि स इदानीं तस्य मांसलशरीरे मरणेन स्वेन सह सन्धापितवान्।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

21 পূৰ্ৱ্ৱং দূৰস্থা দুষ্ক্ৰিযাৰতমনস্কৎৱাৎ তস্য ৰিপৱশ্চাস্ত যে যূযং তান্ যুষ্মান্ অপি স ইদানীং তস্য মাংসলশৰীৰে মৰণেন স্ৱেন সহ সন্ধাপিতৱান্|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

21 পূর্ৱ্ৱং দূরস্থা দুষ্ক্রিযারতমনস্কৎৱাৎ তস্য রিপৱশ্চাস্ত যে যূযং তান্ যুষ্মান্ অপি স ইদানীং তস্য মাংসলশরীরে মরণেন স্ৱেন সহ সন্ধাপিতৱান্|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

21 ပူရွွံ ဒူရသ္ထာ ဒုၐ္ကြိယာရတမနသ္ကတွာတ် တသျ ရိပဝၑ္စာသ္တ ယေ ယူယံ တာန် ယုၐ္မာန် အပိ သ ဣဒါနီံ တသျ မာံသလၑရီရေ မရဏေန သွေန သဟ သန္ဓာပိတဝါန်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

21 pUrvvaM dUrasthA duSkriyAratamanaskatvAt tasya ripavazcAsta yE yUyaM tAn yuSmAn api sa idAnIM tasya mAMsalazarIrE maraNEna svEna saha sandhApitavAn|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

21 પૂર્વ્વં દૂરસ્થા દુષ્ક્રિયારતમનસ્કત્વાત્ તસ્ય રિપવશ્ચાસ્ત યે યૂયં તાન્ યુષ્માન્ અપિ સ ઇદાનીં તસ્ય માંસલશરીરે મરણેન સ્વેન સહ સન્ધાપિતવાન્|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




कुलुस्सियों 1:21
14 अन्तरसन्दर्भाः  

कर्णेजपा अपवादिन ईश्वरद्वेषका हिंसका अहङ्कारिण आत्मश्लाघिनः कुकर्म्मोत्पादकाः पित्रोराज्ञालङ्घका


यत् तस्मिन् समये यूयं ख्रीष्टाद् भिन्ना इस्रायेललोकानां सहवासाद् दूरस्थाः प्रतिज्ञासम्बलितनियमानां बहिः स्थिताः सन्तो निराशा निरीश्वराश्च जगत्याध्वम् इति।


यतः स सन्धिं विधाय तौ द्वौ स्वस्मिन् एकं नुतनं मानवं कर्त्तुं


अत इदानीं यूयम् असम्पर्कीया विदेशिनश्च न तिष्ठनतः पवित्रलोकैः सहवासिन ईश्वरस्य वेश्मवासिनश्चाध्वे।


यतस्ते स्वमनोमायाम् आचरन्त्यान्तरिकाज्ञानात् मानसिककाठिन्याच्च तिमिरावृतबुद्धय ईश्वरीयजीवनस्य बगीर्भूताश्च भवन्ति,


हे व्यभिचारिणो व्यभिचारिण्यश्च, संसारस्य यत् मैत्र्यं तद् ईश्वरस्य शात्रवमिति यूयं किं न जानीथ? अत एव यः कश्चित् संसारस्य मित्रं भवितुम् अभिलषति स एवेश्वरस्य शत्रु र्भवति।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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