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प्रेरिता 27:21 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

21 बहुदिनेषु लोकैरनाहारेण यापितेषु सर्व्वेषां साक्षत् पौलस्तिष्ठन् अकथयत्, हे महेच्छाः क्रीत्युपद्वीपात् पोतं न मोचयितुम् अहं पूर्व्वं यद् अवदं तद्ग्रहणं युष्माकम् उचितम् आसीत् तथा कृते युष्माकम् एषा विपद् एषोऽपचयश्च नाघटिष्येताम्।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

21 বহুদিনেষু লোকৈৰনাহাৰেণ যাপিতেষু সৰ্ৱ্ৱেষাং সাক্ষৎ পৌলস্তিষ্ঠন্ অকথযৎ, হে মহেচ্ছাঃ ক্ৰীত্যুপদ্ৱীপাৎ পোতং ন মোচযিতুম্ অহং পূৰ্ৱ্ৱং যদ্ অৱদং তদ্গ্ৰহণং যুষ্মাকম্ উচিতম্ আসীৎ তথা কৃতে যুষ্মাকম্ এষা ৱিপদ্ এষোঽপচযশ্চ নাঘটিষ্যেতাম্|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

21 বহুদিনেষু লোকৈরনাহারেণ যাপিতেষু সর্ৱ্ৱেষাং সাক্ষৎ পৌলস্তিষ্ঠন্ অকথযৎ, হে মহেচ্ছাঃ ক্রীত্যুপদ্ৱীপাৎ পোতং ন মোচযিতুম্ অহং পূর্ৱ্ৱং যদ্ অৱদং তদ্গ্রহণং যুষ্মাকম্ উচিতম্ আসীৎ তথা কৃতে যুষ্মাকম্ এষা ৱিপদ্ এষোঽপচযশ্চ নাঘটিষ্যেতাম্|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

21 ဗဟုဒိနေၐု လောကဲရနာဟာရေဏ ယာပိတေၐု သရွွေၐာံ သာက္ၐတ် ပေါ်လသ္တိၐ္ဌန် အကထယတ်, ဟေ မဟေစ္ဆား ကြီတျုပဒွီပါတ် ပေါတံ န မောစယိတုမ် အဟံ ပူရွွံ ယဒ် အဝဒံ တဒ္ဂြဟဏံ ယုၐ္မာကမ် ဥစိတမ် အာသီတ် တထာ ကၖတေ ယုၐ္မာကမ် ဧၐာ ဝိပဒ် ဧၐော'ပစယၑ္စ နာဃဋိၐျေတာမ်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

21 bahudinESu lOkairanAhArENa yApitESu sarvvESAM sAkSat paulastiSThan akathayat, hE mahEcchAH krItyupadvIpAt pOtaM na mOcayitum ahaM pUrvvaM yad avadaM tadgrahaNaM yuSmAkam ucitam AsIt tathA kRtE yuSmAkam ESA vipad ESO'pacayazca nAghaTiSyEtAm|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

21 બહુદિનેષુ લોકૈરનાહારેણ યાપિતેષુ સર્વ્વેષાં સાક્ષત્ પૌલસ્તિષ્ઠન્ અકથયત્, હે મહેચ્છાઃ ક્રીત્યુપદ્વીપાત્ પોતં ન મોચયિતુમ્ અહં પૂર્વ્વં યદ્ અવદં તદ્ગ્રહણં યુષ્માકમ્ ઉચિતમ્ આસીત્ તથા કૃતે યુષ્માકમ્ એષા વિપદ્ એષોઽપચયશ્ચ નાઘટિષ્યેતામ્|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




प्रेरिता 27:21
8 अन्तरसन्दर्भाः  

तत् खातं शीतकाले वासार्हस्थानं न तस्माद् अवाचीप्रतीचोर्दिशोः क्रीत्याः फैनीकियखातं यातुं यदि शक्नुवन्तस्तर्हि तत्र शीतकालं यापयितुं प्रायेण सर्व्वे मन्त्रयामासुः।


ततः परं दक्षिणवायु र्मन्दं वहतीति विलोक्य निजाभिप्रायस्य सिद्धेः सुयोगो भवतीति बुद्ध्वा पोतं मोचयित्वा क्रीत्युपद्वीपस्य तीरसमीपेन चलितवन्तः।


ततो बहुदिनानि यावत् सूर्य्यनक्षत्रादीनि समाच्छन्नानि ततो ऽतीव वात्यागमाद् अस्माकं प्राणरक्षायाः कापि प्रत्याशा नातिष्ठत्।


ततः परं बहूनि दिनानि शनैः शनैः र्गत्वा क्नीदपार्श्वोपस्थ्तिेः पूर्व्वं प्रतिकूलेन पवनेन वयं सल्मोन्याः सम्मुखम् उपस्थाय क्रीत्युपद्वीपस्य तीरसमीपेन गतवन्तः।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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