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प्रेरिता 16:10 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

10 तस्येत्थं स्वप्नदर्शनात् प्रभुस्तद्देशीयलोकान् प्रति सुसंवादं प्रचारयितुम् अस्मान् आहूयतीति निश्चितं बुद्ध्वा वयं तूर्णं माकिदनियादेशं गन्तुम् उद्योगम् अकुर्म्म।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

10 তস্যেত্থং স্ৱপ্নদৰ্শনাৎ প্ৰভুস্তদ্দেশীযলোকান্ প্ৰতি সুসংৱাদং প্ৰচাৰযিতুম্ অস্মান্ আহূযতীতি নিশ্চিতং বুদ্ধ্ৱা ৱযং তূৰ্ণং মাকিদনিযাদেশং গন্তুম্ উদ্যোগম্ অকুৰ্ম্ম|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

10 তস্যেত্থং স্ৱপ্নদর্শনাৎ প্রভুস্তদ্দেশীযলোকান্ প্রতি সুসংৱাদং প্রচারযিতুম্ অস্মান্ আহূযতীতি নিশ্চিতং বুদ্ধ্ৱা ৱযং তূর্ণং মাকিদনিযাদেশং গন্তুম্ উদ্যোগম্ অকুর্ম্ম|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

10 တသျေတ္ထံ သွပ္နဒရ္ၑနာတ် ပြဘုသ္တဒ္ဒေၑီယလောကာန် ပြတိ သုသံဝါဒံ ပြစာရယိတုမ် အသ္မာန် အာဟူယတီတိ နိၑ္စိတံ ဗုဒ္ဓွာ ဝယံ တူရ္ဏံ မာကိဒနိယာဒေၑံ ဂန္တုမ် ဥဒျောဂမ် အကုရ္မ္မ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

10 tasyEtthaM svapnadarzanAt prabhustaddEzIyalOkAn prati susaMvAdaM pracArayitum asmAn AhUyatIti nizcitaM buddhvA vayaM tUrNaM mAkidaniyAdEzaM gantum udyOgam akurmma|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

10 તસ્યેત્થં સ્વપ્નદર્શનાત્ પ્રભુસ્તદ્દેશીયલોકાન્ પ્રતિ સુસંવાદં પ્રચારયિતુમ્ અસ્માન્ આહૂયતીતિ નિશ્ચિતં બુદ્ધ્વા વયં તૂર્ણં માકિદનિયાદેશં ગન્તુમ્ ઉદ્યોગમ્ અકુર્મ્મ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




प्रेरिता 16:10
14 अन्तरसन्दर्भाः  

इति हेतोराह्वानश्रवणमात्रात् काञ्चनापत्तिम् अकृत्वा युष्माकं समीपम् आगतोस्मि; पृच्छामि यूयं किन्निमित्तं माम् आहूयत?


तत्समीपस्थदेशञ्च गत्वा तत्र सुसंवादं प्रचारयतां।


रात्रौ पौलः स्वप्ने दृष्टवान् एको माकिदनियलोकस्तिष्ठन् विनयं कृत्वा तस्मै कथयति, माकिदनियादेशम् आगत्यास्मान् उपकुर्व्विति।


तदाहं हे राजन् मार्गमध्ये मध्याह्नकाले मम मदीयसङ्गिनां लोकानाञ्च चतसृषु दिक्षु गगणात् प्रकाशमानां भास्करतोपि तेजस्वतीं दीप्तिं दृष्टवान्।


जलपथेनास्माकम् इतोलियादेशं प्रति यात्रायां निश्चितायां सत्यां ते यूलियनाम्नो महाराजस्य संघातान्तर्गतस्य सेनापतेः समीपे पौलं तदन्यान् कतिनयजनांश्च समार्पयन्।


तदनन्तरं प्रभुस्तद्दम्मेषक्नगरवासिन एकस्मै शिष्याय दर्शनं दत्वा आहूतवान् हे अननिय। ततः स प्रत्यवादीत्, हे प्रभो पश्य शृणोमि।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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