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प्रेरिता 13:11 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

11 अधुना परमेश्वरस्तव समुचितं करिष्यति तेन कतिपयदिनानि त्वम् अन्धः सन् सूर्य्यमपि न द्रक्ष्यसि। तत्क्षणाद् रात्रिवद् अन्धकारस्तस्य दृष्टिम् आच्छादितवान्; तस्मात् तस्य हस्तं धर्त्तुं स लोकमन्विच्छन् इतस्ततो भ्रमणं कृतवान्।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

11 অধুনা পৰমেশ্ৱৰস্তৱ সমুচিতং কৰিষ্যতি তেন কতিপযদিনানি ৎৱম্ অন্ধঃ সন্ সূৰ্য্যমপি ন দ্ৰক্ষ্যসি| তৎক্ষণাদ্ ৰাত্ৰিৱদ্ অন্ধকাৰস্তস্য দৃষ্টিম্ আচ্ছাদিতৱান্; তস্মাৎ তস্য হস্তং ধৰ্ত্তুং স লোকমন্ৱিচ্ছন্ ইতস্ততো ভ্ৰমণং কৃতৱান্|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

11 অধুনা পরমেশ্ৱরস্তৱ সমুচিতং করিষ্যতি তেন কতিপযদিনানি ৎৱম্ অন্ধঃ সন্ সূর্য্যমপি ন দ্রক্ষ্যসি| তৎক্ষণাদ্ রাত্রিৱদ্ অন্ধকারস্তস্য দৃষ্টিম্ আচ্ছাদিতৱান্; তস্মাৎ তস্য হস্তং ধর্ত্তুং স লোকমন্ৱিচ্ছন্ ইতস্ততো ভ্রমণং কৃতৱান্|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

11 အဓုနာ ပရမေၑွရသ္တဝ သမုစိတံ ကရိၐျတိ တေန ကတိပယဒိနာနိ တွမ် အန္ဓး သန် သူရျျမပိ န ဒြက္ၐျသိ၊ တတ္က္ၐဏာဒ် ရာတြိဝဒ် အန္ဓကာရသ္တသျ ဒၖၐ္ဋိမ် အာစ္ဆာဒိတဝါန်; တသ္မာတ် တသျ ဟသ္တံ ဓရ္တ္တုံ သ လောကမနွိစ္ဆန် ဣတသ္တတော ဘြမဏံ ကၖတဝါန်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

11 adhunA paramEzvarastava samucitaM kariSyati tEna katipayadinAni tvam andhaH san sUryyamapi na drakSyasi| tatkSaNAd rAtrivad andhakArastasya dRSTim AcchAditavAn; tasmAt tasya hastaM dharttuM sa lOkamanvicchan itastatO bhramaNaM kRtavAn|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

11 અધુના પરમેશ્વરસ્તવ સમુચિતં કરિષ્યતિ તેન કતિપયદિનાનિ ત્વમ્ અન્ધઃ સન્ સૂર્ય્યમપિ ન દ્રક્ષ્યસિ| તત્ક્ષણાદ્ રાત્રિવદ્ અન્ધકારસ્તસ્ય દૃષ્ટિમ્ આચ્છાદિતવાન્; તસ્માત્ તસ્ય હસ્તં ધર્ત્તું સ લોકમન્વિચ્છન્ ઇતસ્તતો ભ્રમણં કૃતવાન્|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




प्रेरिता 13:11
18 अन्तरसन्दर्भाः  

पश्चाद् यीशुः कथितवान् नयनहीना नयनानि प्राप्नुवन्ति नयनवन्तश्चान्धा भवन्तीत्यभिप्रायेण जगदाहम् आगच्छम्।


ततो ऽननियो गत्वा गृहं प्रविश्य तस्य गात्रे हस्तार्प्रणं कृत्वा कथितवान्, हे भ्रातः शौल त्वं यथा दृष्टिं प्राप्नोषि पवित्रेणात्मना परिपूर्णो भवसि च, तदर्थं तवागमनकाले यः प्रभुयीशुस्तुभ्यं दर्शनम् अददात् स मां प्रेषितवान्।


हे भ्रातरो युष्माकम् आत्माभिमानो यन्न जायते तदर्थं ममेदृशी वाञ्छा भवति यूयं एतन्निगूढतत्त्वम् अजानन्तो यन्न तिष्ठथ; वस्तुतो यावत्कालं सम्पूर्णरूपेण भिन्नदेशिनां संग्रहो न भविष्यति तावत्कालम् अंशत्वेन इस्रायेलीयलोकानाम् अन्धता स्थास्यति;


अमरेश्वरस्य करयोः पतनं महाभयानकं।


इमे निर्जलानि प्रस्रवणानि प्रचण्डवायुना चालिता मेघाश्च तेषां कृते नित्यस्थायी घोरतरान्धकारः सञ्चितो ऽस्ति।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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