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2 तीमुथियु 2:20 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

20 किन्तु बृहन्निकेतने केवल सुवर्णमयानि रौप्यमयाणि च भाजनानि विद्यन्त इति तर्हि काष्ठमयानि मृण्मयान्यपि विद्यन्ते तेषाञ्च कियन्ति सम्मानाय कियन्तपमानाय च भवन्ति।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

20 কিন্তু বৃহন্নিকেতনে কেৱল সুৱৰ্ণমযানি ৰৌপ্যমযাণি চ ভাজনানি ৱিদ্যন্ত ইতি তৰ্হি কাষ্ঠমযানি মৃণ্মযান্যপি ৱিদ্যন্তে তেষাঞ্চ কিযন্তি সম্মানায কিযন্তপমানায চ ভৱন্তি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

20 কিন্তু বৃহন্নিকেতনে কেৱল সুৱর্ণমযানি রৌপ্যমযাণি চ ভাজনানি ৱিদ্যন্ত ইতি তর্হি কাষ্ঠমযানি মৃণ্মযান্যপি ৱিদ্যন্তে তেষাঞ্চ কিযন্তি সম্মানায কিযন্তপমানায চ ভৱন্তি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

20 ကိန္တု ဗၖဟန္နိကေတနေ ကေဝလ သုဝရ္ဏမယာနိ ရော်ပျမယာဏိ စ ဘာဇနာနိ ဝိဒျန္တ ဣတိ တရှိ ကာၐ္ဌမယာနိ မၖဏ္မယာနျပိ ဝိဒျန္တေ တေၐာဉ္စ ကိယန္တိ သမ္မာနာယ ကိယန္တပမာနာယ စ ဘဝန္တိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

20 kintu bRhannikEtanE kEvala suvarNamayAni raupyamayANi ca bhAjanAni vidyanta iti tarhi kASThamayAni mRNmayAnyapi vidyantE tESAnjca kiyanti sammAnAya kiyantapamAnAya ca bhavanti|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

20 કિન્તુ બૃહન્નિકેતને કેવલ સુવર્ણમયાનિ રૌપ્યમયાણિ ચ ભાજનાનિ વિદ્યન્ત ઇતિ તર્હિ કાષ્ઠમયાનિ મૃણ્મયાન્યપિ વિદ્યન્તે તેષાઞ્ચ કિયન્તિ સમ્માનાય કિયન્તપમાનાય ચ ભવન્તિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




2 तीमुथियु 2:20
15 अन्तरसन्दर्भाः  

ततो यीशुः प्रत्यवादीत् नाहं भूतग्रस्तः किन्तु निजतातं सम्मन्ये तस्माद् यूयं माम् अपमन्यध्वे।


हे ईश्वरस्य प्रतिपक्ष मर्त्य त्वं कः? एतादृशं मां कुतः सृष्टवान्? इति कथां सृष्टवस्तु स्रष्ट्रे किं कथयिष्यति?


आवामीश्वरेण सह कर्म्मकारिणौ, ईश्वरस्य यत् क्षेत्रम् ईश्वरस्य या निर्म्मितिः सा यूयमेव।


अपरं तद् धनम् अस्माभि र्मृण्मयेषु भाजनेषु धार्य्यते यतः साद्भुता शक्ति र्नास्माकं किन्त्वीश्वरस्यैवेति ज्ञातव्यं।


यूयमपि तत्र संग्रथ्यमाना आत्मनेश्वरस्य वासस्थानं भवथ।


यदि वा विलम्बेय तर्हीश्वरस्य गृहे ऽर्थतः सत्यधर्म्मस्य स्तम्भभित्तिमूलस्वरूपायाम् अमरेश्वरस्य समितौ त्वया कीदृश आचारः कर्त्तव्यस्तत् ज्ञातुं शक्ष्यते।


यूयमपि जीवत्प्रस्तरा इव निचीयमाना आत्मिकमन्दिरं ख्रीष्टेन यीशुना चेश्वरतोषकाणाम् आत्मिकबलीनां दानार्थं पवित्रो याजकवर्गो भवथ।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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