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2 कुरिन्थियों 10:12 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

12 स्वप्रशंसकानां केषाञ्चिन्मध्ये स्वान् गणयितुं तैः स्वान् उपमातुं वा वयं प्रगल्भा न भवामः, यतस्ते स्वपरिमाणेन स्वान् परिमिमते स्वैश्च स्वान् उपमिभते तस्मात् निर्ब्बोधा भवन्ति च।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

12 স্ৱপ্ৰশংসকানাং কেষাঞ্চিন্মধ্যে স্ৱান্ গণযিতুং তৈঃ স্ৱান্ উপমাতুং ৱা ৱযং প্ৰগল্ভা ন ভৱামঃ, যতস্তে স্ৱপৰিমাণেন স্ৱান্ পৰিমিমতে স্ৱৈশ্চ স্ৱান্ উপমিভতে তস্মাৎ নিৰ্ব্বোধা ভৱন্তি চ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

12 স্ৱপ্রশংসকানাং কেষাঞ্চিন্মধ্যে স্ৱান্ গণযিতুং তৈঃ স্ৱান্ উপমাতুং ৱা ৱযং প্রগল্ভা ন ভৱামঃ, যতস্তে স্ৱপরিমাণেন স্ৱান্ পরিমিমতে স্ৱৈশ্চ স্ৱান্ উপমিভতে তস্মাৎ নির্ব্বোধা ভৱন্তি চ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

12 သွပြၑံသကာနာံ ကေၐာဉ္စိန္မဓျေ သွာန် ဂဏယိတုံ တဲး သွာန် ဥပမာတုံ ဝါ ဝယံ ပြဂလ္ဘာ န ဘဝါမး, ယတသ္တေ သွပရိမာဏေန သွာန် ပရိမိမတေ သွဲၑ္စ သွာန် ဥပမိဘတေ တသ္မာတ် နိရ္ဗ္ဗောဓာ ဘဝန္တိ စ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

12 svaprazaMsakAnAM kESAnjcinmadhyE svAn gaNayituM taiH svAn upamAtuM vA vayaM pragalbhA na bhavAmaH, yatastE svaparimANEna svAn parimimatE svaizca svAn upamibhatE tasmAt nirbbOdhA bhavanti ca|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

12 સ્વપ્રશંસકાનાં કેષાઞ્ચિન્મધ્યે સ્વાન્ ગણયિતું તૈઃ સ્વાન્ ઉપમાતું વા વયં પ્રગલ્ભા ન ભવામઃ, યતસ્તે સ્વપરિમાણેન સ્વાન્ પરિમિમતે સ્વૈશ્ચ સ્વાન્ ઉપમિભતે તસ્માત્ નિર્બ્બોધા ભવન્તિ ચ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




2 कुरिन्थियों 10:12
10 अन्तरसन्दर्भाः  

ततोऽसौ फिरूश्येकपार्श्वे तिष्ठन् हे ईश्वर अहमन्यलोकवत् लोठयितान्यायी पारदारिकश्च न भवामि अस्य करसञ्चायिनस्तुल्यश्च न, तस्मात्त्वां धन्यं वदामि।


भिन्नदेशिन आज्ञाग्राहिणः कर्त्तुं ख्रीष्टो वाक्येन क्रियया च, आश्चर्य्यलक्षणैश्चित्रक्रियाभिः पवित्रस्यात्मनः प्रभावेन च यानि कर्म्माणि मया साधितवान्,


किन्तु परोक्षे पत्रै र्भाषमाणा वयं यादृशाः प्रकाशामहे प्रत्यक्षे कर्म्म कुर्व्वन्तोऽपि तादृशा एव प्रकाशिष्यामहे तत् तादृशेन वाचालेन ज्ञायतां।


स्वेन यः प्रशंस्यते स परीक्षितो नहि किन्तु प्रभुना यः प्रशंस्यते स एव परीक्षितः।


वयं किम् आत्मप्रशंसनं पुनरारभामहे? युष्मान् प्रति युष्मत्तो वा परेषां केषाञ्चिद् इवास्माकमपि किं प्रशंसापत्रेषु प्रयोजनम् आस्ते?


अनेन वयं युष्माकं सन्निधौ पुनः स्वान् प्रशंसाम इति नहि किन्तु ये मनो विना मुखैः श्लाघन्ते तेभ्यः प्रत्युत्तरदानाय यूयं यथास्माभिः श्लाघितुं शक्नुथ तादृशम् उपायं युष्मभ्यं वितरामः।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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