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1 कुरिन्थियों 7:37 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

37 किन्तु दुःखेनाक्लिष्टः कश्चित् पिता यदि स्थिरमनोगतः स्वमनोऽभिलाषसाधने समर्थश्च स्यात् मम कन्या मया रक्षितव्येति मनसि निश्चिनोति च तर्हि स भद्रं कर्म्म करोति।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

37 কিন্তু দুঃখেনাক্লিষ্টঃ কশ্চিৎ পিতা যদি স্থিৰমনোগতঃ স্ৱমনোঽভিলাষসাধনে সমৰ্থশ্চ স্যাৎ মম কন্যা মযা ৰক্ষিতৱ্যেতি মনসি নিশ্চিনোতি চ তৰ্হি স ভদ্ৰং কৰ্ম্ম কৰোতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

37 কিন্তু দুঃখেনাক্লিষ্টঃ কশ্চিৎ পিতা যদি স্থিরমনোগতঃ স্ৱমনোঽভিলাষসাধনে সমর্থশ্চ স্যাৎ মম কন্যা মযা রক্ষিতৱ্যেতি মনসি নিশ্চিনোতি চ তর্হি স ভদ্রং কর্ম্ম করোতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

37 ကိန္တု ဒုးခေနာက္လိၐ္ဋး ကၑ္စိတ် ပိတာ ယဒိ သ္ထိရမနောဂတး သွမနော'ဘိလာၐသာဓနေ သမရ္ထၑ္စ သျာတ် မမ ကနျာ မယာ ရက္ၐိတဝျေတိ မနသိ နိၑ္စိနောတိ စ တရှိ သ ဘဒြံ ကရ္မ္မ ကရောတိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

37 kintu duHkhEnAkliSTaH kazcit pitA yadi sthiramanOgataH svamanO'bhilASasAdhanE samarthazca syAt mama kanyA mayA rakSitavyEti manasi nizcinOti ca tarhi sa bhadraM karmma karOti|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

37 કિન્તુ દુઃખેનાક્લિષ્ટઃ કશ્ચિત્ પિતા યદિ સ્થિરમનોગતઃ સ્વમનોઽભિલાષસાધને સમર્થશ્ચ સ્યાત્ મમ કન્યા મયા રક્ષિતવ્યેતિ મનસિ નિશ્ચિનોતિ ચ તર્હિ સ ભદ્રં કર્મ્મ કરોતિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




1 कुरिन्थियों 7:37
6 अन्तरसन्दर्भाः  

अपरञ्च युष्माभि र्मां प्रति यत् पत्रमलेखि तस्योत्तरमेतत्, योषितोऽस्पर्शनं मनुजस्य वरं;


कस्यचित् कन्यायां यौवनप्राप्तायां यदि स तस्या अनूढत्वं निन्दनीयं विवाहश्च साधयितव्य इति मन्यते तर्हि यथाभिलाषं करोतु, एतेन किमपि नापरात्स्यति विवाहः क्रियतां।


अतो यो विवाहं करोति स भद्रं कर्म्म करोति यश्च विवाहं न करोति स भद्रतरं कर्म्म करोति।


एकैकेन स्वमनसि यथा निश्चीयते तथैव दीयतां केनापि कातरेण भीतेन वा न दीयतां यत ईश्वरो हृष्टमानसे दातरि प्रीयते।


युष्माकं मध्यवर्त्ती य ईश्वरस्य मेषवृन्दो यूयं तं पालयत तस्य वीक्षणं कुरुत च, आवश्यकत्वेन नहि किन्तु स्वेच्छातो न व कुलोभेन किन्त्विच्छुकमनसा।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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