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1 कुरिन्थियों 14:27 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

27 यदि कश्चिद् भाषान्तरं विवक्षति तर्ह्येकस्मिन् दिने द्विजनेन त्रिजनेन वा परभााषा कथ्यतां तदधिकैर्न कथ्यतां तैरपि पर्य्यायानुसारात् कथ्यतां, एकेन च तदर्थो बोध्यतां।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

27 যদি কশ্চিদ্ ভাষান্তৰং ৱিৱক্ষতি তৰ্হ্যেকস্মিন্ দিনে দ্ৱিজনেন ত্ৰিজনেন ৱা পৰভাाষা কথ্যতাং তদধিকৈৰ্ন কথ্যতাং তৈৰপি পৰ্য্যাযানুসাৰাৎ কথ্যতাং, একেন চ তদৰ্থো বোধ্যতাং|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

27 যদি কশ্চিদ্ ভাষান্তরং ৱিৱক্ষতি তর্হ্যেকস্মিন্ দিনে দ্ৱিজনেন ত্রিজনেন ৱা পরভাाষা কথ্যতাং তদধিকৈর্ন কথ্যতাং তৈরপি পর্য্যাযানুসারাৎ কথ্যতাং, একেন চ তদর্থো বোধ্যতাং|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

27 ယဒိ ကၑ္စိဒ် ဘာၐာန္တရံ ဝိဝက္ၐတိ တရှျေကသ္မိန် ဒိနေ ဒွိဇနေန တြိဇနေန ဝါ ပရဘာाၐာ ကထျတာံ တဒဓိကဲရ္န ကထျတာံ တဲရပိ ပရျျာယာနုသာရာတ် ကထျတာံ, ဧကေန စ တဒရ္ထော ဗောဓျတာံ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

27 yadi kazcid bhASAntaraM vivakSati tarhyEkasmin dinE dvijanEna trijanEna vA parabhAाSA kathyatAM tadadhikairna kathyatAM tairapi paryyAyAnusArAt kathyatAM, EkEna ca tadarthO bOdhyatAM|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

27 યદિ કશ્ચિદ્ ભાષાન્તરં વિવક્ષતિ તર્હ્યેકસ્મિન્ દિને દ્વિજનેન ત્રિજનેન વા પરભાाષા કથ્યતાં તદધિકૈર્ન કથ્યતાં તૈરપિ પર્ય્યાયાનુસારાત્ કથ્યતાં, એકેન ચ તદર્થો બોધ્યતાં|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




1 कुरिन्थियों 14:27
6 अन्तरसन्दर्भाः  

अन्यस्मै दुःसाध्यसाधनशक्तिरन्यस्मै चेश्वरीयादेशः, अन्यस्मै चातिमानुषिकस्यादेशस्य विचारसामर्थ्यम्, अन्यस्मै परभाषाभाषणशक्तिरन्यस्मै च भाषार्थभाषणसामर्यं दीयते।


अतएव परभाषावादी यद् अर्थकरोऽपि भवेत् तत् प्रार्थयतां।


यो जनः परभाषां भाषते स मानुषान् न सम्भाषते किन्त्वीश्वरमेव यतः केनापि किमपि न बुध्यते स चात्मना निगूढवाक्यानि कथयति;


हे भ्रातरः, सम्मिलितानां युष्माकम् एकेन गीतम् अन्येनोपदेशोऽन्येन परभाषान्येन ऐश्वरिकदर्शनम् अन्येनार्थबोधकं वाक्यं लभ्यते किमेतत्? सर्व्वमेव परनिष्ठार्थं युष्माभिः क्रियतां।


किन्त्वर्थाभिधायकः कोऽपि यदि न विद्यते तर्हि स समितौ वाचंयमः स्थित्वेश्वरायात्मने च कथां कथयतु।


युष्माकं सर्व्वेषां परभाषाभाषणम् इच्छाम्यहं किन्त्वीश्वरीयादेशकथनम् अधिकमपीच्छामि। यतः समिते र्निष्ठायै येन स्ववाक्यानाम् अर्थो न क्रियते तस्मात् परभाषावादित ईश्वरीयादेशवादी श्रेयान्।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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