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1 कुरिन्थियों 12:25 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

25 शरीरमध्ये यद् भेदो न भवेत् किन्तु सर्व्वाण्यङ्गानि यद् ऐक्यभावेन सर्व्वेषां हितं चिन्तयन्ति तदर्थम् ईश्वरेणाप्रधानम् आदरणीयं कृत्वा शरीरं विरचितं।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

25 শৰীৰমধ্যে যদ্ ভেদো ন ভৱেৎ কিন্তু সৰ্ৱ্ৱাণ্যঙ্গানি যদ্ ঐক্যভাৱেন সৰ্ৱ্ৱেষাং হিতং চিন্তযন্তি তদৰ্থম্ ঈশ্ৱৰেণাপ্ৰধানম্ আদৰণীযং কৃৎৱা শৰীৰং ৱিৰচিতং|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

25 শরীরমধ্যে যদ্ ভেদো ন ভৱেৎ কিন্তু সর্ৱ্ৱাণ্যঙ্গানি যদ্ ঐক্যভাৱেন সর্ৱ্ৱেষাং হিতং চিন্তযন্তি তদর্থম্ ঈশ্ৱরেণাপ্রধানম্ আদরণীযং কৃৎৱা শরীরং ৱিরচিতং|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

25 ၑရီရမဓျေ ယဒ် ဘေဒေါ န ဘဝေတ် ကိန္တု သရွွာဏျင်္ဂါနိ ယဒ် အဲကျဘာဝေန သရွွေၐာံ ဟိတံ စိန္တယန္တိ တဒရ္ထမ် ဤၑွရေဏာပြဓာနမ် အာဒရဏီယံ ကၖတွာ ၑရီရံ ဝိရစိတံ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

25 zarIramadhyE yad bhEdO na bhavEt kintu sarvvANyaggAni yad aikyabhAvEna sarvvESAM hitaM cintayanti tadartham IzvarENApradhAnam AdaraNIyaM kRtvA zarIraM viracitaM|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

25 શરીરમધ્યે યદ્ ભેદો ન ભવેત્ કિન્તુ સર્વ્વાણ્યઙ્ગાનિ યદ્ ઐક્યભાવેન સર્વ્વેષાં હિતં ચિન્તયન્તિ તદર્થમ્ ઈશ્વરેણાપ્રધાનમ્ આદરણીયં કૃત્વા શરીરં વિરચિતં|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




1 कुरिन्थियों 12:25
8 अन्तरसन्दर्भाः  

किन्तु यानि स्वयं सुदृश्यानि तेषां शोभनम् निष्प्रयोजनं।


तस्माद् एकस्याङ्गस्य पीडायां जातायां सर्व्वाण्यङ्गानि तेन सह पीड्यन्ते, एकस्य समादरे जाते च सर्व्वाणि तेन सह संहृष्यन्ति।


युष्मन्मध्ये मात्सर्य्यविवादभेदा भवन्ति ततः किं शारीरिकाचारिणो नाध्वे मानुषिकमार्गेण च न चरथ?


हे भ्रातरः, शेषे वदामि यूयम् आनन्दत सिद्धा भवत परस्परं प्रबोधयत, एकमनसो भवत प्रणयभावम् आचरत। प्रेमशान्त्योराकर ईश्वरो युष्माकं सहायो भूयात्।


येनापराद्धं तस्य कृते किंवा यस्यापराद्धं तस्य कृते मया पत्रम् अलेखि तन्नहि किन्तु युष्मानध्यस्माकं यत्नो यद् ईश्वरस्य साक्षाद् युष्मत्समीपे प्रकाशेत तदर्थमेव।


युष्माकं हिताय तीतस्य मनसि य ईश्वर इमम् उद्योगं जनितवान् स धन्यो भवतु।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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