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1 कुरिन्थियों 11:25 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

25 पुनश्च भेजनात् परं तथैव कंसम् आदाय तेनोक्तं कंसोऽयं मम शोणितेन स्थापितो नूतननियमः; यतिवारं युष्माभिरेतत् पीयते ततिवारं मम स्मरणार्थं पीयतां।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

25 পুনশ্চ ভেজনাৎ পৰং তথৈৱ কংসম্ আদায তেনোক্তং কংসোঽযং মম শোণিতেন স্থাপিতো নূতননিযমঃ; যতিৱাৰং যুষ্মাভিৰেতৎ পীযতে ততিৱাৰং মম স্মৰণাৰ্থং পীযতাং|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

25 পুনশ্চ ভেজনাৎ পরং তথৈৱ কংসম্ আদায তেনোক্তং কংসোঽযং মম শোণিতেন স্থাপিতো নূতননিযমঃ; যতিৱারং যুষ্মাভিরেতৎ পীযতে ততিৱারং মম স্মরণার্থং পীযতাং|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

25 ပုနၑ္စ ဘေဇနာတ် ပရံ တထဲဝ ကံသမ် အာဒါယ တေနောက္တံ ကံသော'ယံ မမ ၑောဏိတေန သ္ထာပိတော နူတနနိယမး; ယတိဝါရံ ယုၐ္မာဘိရေတတ် ပီယတေ တတိဝါရံ မမ သ္မရဏာရ္ထံ ပီယတာံ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

25 punazca bhEjanAt paraM tathaiva kaMsam AdAya tEnOktaM kaMsO'yaM mama zONitEna sthApitO nUtananiyamaH; yativAraM yuSmAbhirEtat pIyatE tativAraM mama smaraNArthaM pIyatAM|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

25 પુનશ્ચ ભેજનાત્ પરં તથૈવ કંસમ્ આદાય તેનોક્તં કંસોઽયં મમ શોણિતેન સ્થાપિતો નૂતનનિયમઃ; યતિવારં યુષ્માભિરેતત્ પીયતે તતિવારં મમ સ્મરણાર્થં પીયતાં|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




1 कुरिन्थियों 11:25
11 अन्तरसन्दर्भाः  

अथ भोजनान्ते तादृशं पात्रं गृहीत्वावदत्, युष्मत्कृते पातितं यन्मम रक्तं तेन निर्णीतनवनियमरूपं पानपात्रमिदं।


यद् धन्यवादपात्रम् अस्माभि र्धन्यं गद्यते तत् किं ख्रीष्टस्य शोणितस्य सहभागित्वं नहि? यश्च पूपोऽस्माभि र्भज्यते स किं ख्रीष्टस्य वपुषः सहभागित्वं नहि?


परकरसमर्पणक्षपायां प्रभु र्यीशुः पूपमादायेश्वरं धन्यं व्याहृत्य तं भङ्क्त्वा भाषितवान् युष्माभिरेतद् गृह्यतां भुज्यताञ्च तद् युष्मत्कृते भग्नं मम शरीरं; मम स्मरणार्थं युष्माभिरेतत् क्रियतां।


तेषां मनांसि कठिनीभूतानि यतस्तेषां पठनसमये स पुरातनो नियमस्तेनावरणेनाद्यापि प्रच्छन्नस्तिष्ठति।


तेन वयं नूतननियमस्यार्थतो ऽक्षरसंस्थानस्य तन्नहि किन्त्वात्मन एव सेवनसामर्थ्यं प्राप्ताः। अक्षरसंस्थानं मृत्युजनकं किन्त्वात्मा जीवनदायकः।


अनन्तनियमस्य रुधिरेण विशिष्टो महान् मेषपालको येन मृतगणमध्यात् पुनरानायि स शान्तिदायक ईश्वरो


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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