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1 कुरिन्थियों 11:22 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

22 भोजनपानार्थं युष्माकं किं वेश्मानि न सन्ति? युष्माभि र्वा किम् ईश्वरस्य समितिं तुच्छीकृत्य दीना लोका अवज्ञायन्ते? इत्यनेन मया किं वक्तव्यं? यूयं किं मया प्रशंसनीयाः? एतस्मिन् यूयं न प्रशंसनीयाः।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

22 ভোজনপানাৰ্থং যুষ্মাকং কিং ৱেশ্মানি ন সন্তি? যুষ্মাভি ৰ্ৱা কিম্ ঈশ্ৱৰস্য সমিতিং তুচ্ছীকৃত্য দীনা লোকা অৱজ্ঞাযন্তে? ইত্যনেন মযা কিং ৱক্তৱ্যং? যূযং কিং মযা প্ৰশংসনীযাঃ? এতস্মিন্ যূযং ন প্ৰশংসনীযাঃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

22 ভোজনপানার্থং যুষ্মাকং কিং ৱেশ্মানি ন সন্তি? যুষ্মাভি র্ৱা কিম্ ঈশ্ৱরস্য সমিতিং তুচ্ছীকৃত্য দীনা লোকা অৱজ্ঞাযন্তে? ইত্যনেন মযা কিং ৱক্তৱ্যং? যূযং কিং মযা প্রশংসনীযাঃ? এতস্মিন্ যূযং ন প্রশংসনীযাঃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

22 ဘောဇနပါနာရ္ထံ ယုၐ္မာကံ ကိံ ဝေၑ္မာနိ န သန္တိ? ယုၐ္မာဘိ ရွာ ကိမ် ဤၑွရသျ သမိတိံ တုစ္ဆီကၖတျ ဒီနာ လောကာ အဝဇ္ဉာယန္တေ? ဣတျနေန မယာ ကိံ ဝက္တဝျံ? ယူယံ ကိံ မယာ ပြၑံသနီယား? ဧတသ္မိန် ယူယံ န ပြၑံသနီယား၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

22 bhOjanapAnArthaM yuSmAkaM kiM vEzmAni na santi? yuSmAbhi rvA kim Izvarasya samitiM tucchIkRtya dInA lOkA avajnjAyantE? ityanEna mayA kiM vaktavyaM? yUyaM kiM mayA prazaMsanIyAH? Etasmin yUyaM na prazaMsanIyAH|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

22 ભોજનપાનાર્થં યુષ્માકં કિં વેશ્માનિ ન સન્તિ? યુષ્માભિ ર્વા કિમ્ ઈશ્વરસ્ય સમિતિં તુચ્છીકૃત્ય દીના લોકા અવજ્ઞાયન્તે? ઇત્યનેન મયા કિં વક્તવ્યં? યૂયં કિં મયા પ્રશંસનીયાઃ? એતસ્મિન્ યૂયં ન પ્રશંસનીયાઃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




1 कुरिन्थियों 11:22
10 अन्तरसन्दर्भाः  

यूयं स्वेषु तथा यस्य व्रजस्याध्यक्षन् आत्मा युष्मान् विधाय न्ययुङ्क्त तत्सर्व्वस्मिन् सावधाना भवत, य समाजञ्च प्रभु र्निजरक्तमूल्येन क्रीतवान तम् अवत,


यिहूदीयानां भिन्नजातीयानाम् ईश्वरस्य समाजस्य वा विघ्नजनकै र्युष्माभि र्न भवितव्यं।


युष्माभि र्न भद्राय किन्तु कुत्सिताय समागम्यते तस्माद् एतानि भाषमाणेन मया यूयं न प्रशंसनीयाः।


तथापि ममैषा वाञ्छा यद् यूयमिदम् अवगता भवथ,


यश्च बुभुक्षितः स स्वगृहे भुङ्क्तां। दण्डप्राप्तये युष्माभि र्न समागम्यतां। एतद्भिन्नं यद् आदेष्टव्यं तद् युष्मत्समीपागमनकाले मयादेक्ष्यते।


ईश्वरस्य समितिं प्रति दौरात्म्याचरणाद् अहं प्रेरितनाम धर्त्तुम् अयोग्यस्तस्मात् प्रेरितानां मध्ये क्षुद्रतमश्चास्मि।


यदि वा विलम्बेय तर्हीश्वरस्य गृहे ऽर्थतः सत्यधर्म्मस्य स्तम्भभित्तिमूलस्वरूपायाम् अमरेश्वरस्य समितौ त्वया कीदृश आचारः कर्त्तव्यस्तत् ज्ञातुं शक्ष्यते।


यत आत्मपरिवारान् शासितुं यो न शक्नोति तेनेश्वरस्य समितेस्तत्त्वावधारणं कथं कारिष्यते?


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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