अनन्तरं सेनागण एत्य पप्रच्छ किमस्माभि र्वा कर्त्तव्यम्? ततः सोभिदधे कस्य कामपि हानिं मा कार्ष्ट तथा मृषापवादं मा कुरुत निजवेतनेन च सन्तुष्य तिष्ठत।
फिलिप्पियों 4:11 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari अहं यद् दैन्यकारणाद् इदं वदामि तन्नहि यतो मम या काचिद् अवस्था भवेत् तस्यां सन्तोष्टुम् अशिक्षयं। अधिकानि संस्करणानिসত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script অহং যদ্ দৈন্যকাৰণাদ্ ইদং ৱদামি তন্নহি যতো মম যা কাচিদ্ অৱস্থা ভৱেৎ তস্যাং সন্তোষ্টুম্ অশিক্ষযং| সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script অহং যদ্ দৈন্যকারণাদ্ ইদং ৱদামি তন্নহি যতো মম যা কাচিদ্ অৱস্থা ভৱেৎ তস্যাং সন্তোষ্টুম্ অশিক্ষযং| သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script အဟံ ယဒ် ဒဲနျကာရဏာဒ် ဣဒံ ဝဒါမိ တန္နဟိ ယတော မမ ယာ ကာစိဒ် အဝသ္ထာ ဘဝေတ် တသျာံ သန္တောၐ္ဋုမ် အၑိက္ၐယံ၊ satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script ahaM yad dainyakAraNAd idaM vadAmi tannahi yatO mama yA kAcid avasthA bhavEt tasyAM santOSTum azikSayaM| સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script અહં યદ્ દૈન્યકારણાદ્ ઇદં વદામિ તન્નહિ યતો મમ યા કાચિદ્ અવસ્થા ભવેત્ તસ્યાં સન્તોષ્ટુમ્ અશિક્ષયં| satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script ahaM yad dainyakAraNAd idaM vadAmi tannahi yato mama yA kAcid avasthA bhavet tasyAM santoSTum azikSayaM| |
अनन्तरं सेनागण एत्य पप्रच्छ किमस्माभि र्वा कर्त्तव्यम्? ततः सोभिदधे कस्य कामपि हानिं मा कार्ष्ट तथा मृषापवादं मा कुरुत निजवेतनेन च सन्तुष्य तिष्ठत।
परिश्रमक्लेशाभ्यां वारं वारं जागरणेन क्षुधातृष्णाभ्यां बहुवारं निराहारेण शीतनग्नताभ्याञ्चाहं कालं यापितवान्।
शोकयुक्ताश्च वयं सदानन्दामः, दरिद्रा वयं बहून् धनिनः कुर्म्मः, अकिञ्चनाश्च वयं सर्व्वं धारयामः।
यूयञ्चास्मत्प्रभो र्यीशुख्रीष्टस्यानुग्रहं जानीथ यतस्तस्य निर्धनत्वेन यूयं यद् धनिनो भवथ तदर्थं स धनी सन्नपि युष्मत्कृते निर्धनोऽभवत्।
अपरम् ईश्वरो युष्मान् प्रति सर्व्वविधं बहुप्रदं प्रसादं प्रकाशयितुम् अर्हति तेन यूयं सर्व्वविषये यथेष्टं प्राप्य सर्व्वेण सत्कर्म्मणा बहुफलवन्तो भविष्यथ।
किञ्चाधुनाप्यहं मत्प्रभोः ख्रीष्टस्य यीशो र्ज्ञानस्योत्कृष्टतां बुद्ध्वा तत् सर्व्वं क्षतिं मन्ये।
यूयं मम बन्धनस्य दुःखेन दुःखिनो ऽभवत, युष्माकम् उत्तमा नित्या च सम्पत्तिः स्वर्गे विद्यत इति ज्ञात्वा सानन्दं सर्व्वस्वस्यापहरणम् असहध्वञ्च।