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मत्ती 5:47 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

अपरं यूयं यदि केवलं स्वीयभ्रातृत्वेन नमत, तर्हि किं महत् कर्म्म कुरुथ? चण्डाला अपि तादृशं किं न कुर्व्वन्ति?

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

অপৰং যূযং যদি কেৱলং স্ৱীযভ্ৰাতৃৎৱেন নমত, তৰ্হি কিং মহৎ কৰ্ম্ম কুৰুথ? চণ্ডালা অপি তাদৃশং কিং ন কুৰ্ৱ্ৱন্তি?

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

অপরং যূযং যদি কেৱলং স্ৱীযভ্রাতৃৎৱেন নমত, তর্হি কিং মহৎ কর্ম্ম কুরুথ? চণ্ডালা অপি তাদৃশং কিং ন কুর্ৱ্ৱন্তি?

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

အပရံ ယူယံ ယဒိ ကေဝလံ သွီယဘြာတၖတွေန နမတ, တရှိ ကိံ မဟတ် ကရ္မ္မ ကုရုထ? စဏ္ဍာလာ အပိ တာဒၖၑံ ကိံ န ကုရွွန္တိ?

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

aparaM yUyaM yadi kEvalaM svIyabhrAtRtvEna namata, tarhi kiM mahat karmma kurutha? caNPAlA api tAdRzaM kiM na kurvvanti?

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

અપરં યૂયં યદિ કેવલં સ્વીયભ્રાતૃત્વેન નમત, તર્હિ કિં મહત્ કર્મ્મ કુરુથ? ચણ્ડાલા અપિ તાદૃશં કિં ન કુર્વ્વન્તિ?

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

aparaM yUyaM yadi kevalaM svIyabhrAtRtvena namata, tarhi kiM mahat karmma kurutha? caNDAlA api tAdRzaM kiM na kurvvanti?

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



मत्ती 5:47
9 अन्तरसन्दर्भाः  

यदा यूयं तद्गेहं प्रविशथ, तदा तमाशिषं वदत।


अपरं युष्मान् अहं वदामि, अध्यापकफिरूशिमानवानां धर्म्मानुष्ठानात् युष्माकं धर्म्मानुष्ठाने नोत्तमे जाते यूयम् ईश्वरीयराज्यं प्रवेष्टुं न शक्ष्यथ।


ये युष्मासु प्रेम कुर्व्वन्ति, यूयं यदि केवलं तेव्वेव प्रेम कुरुथ, तर्हि युष्माकं किं फलं भविष्यति? चण्डाला अपि तादृशं किं न कुर्व्वन्ति?


तस्मात् युष्माकं स्वर्गस्थः पिता यथा पूर्णो भवति, यूयमपि तादृशा भवत।


ये जना युष्मासु प्रीयन्ते केवलं तेषु प्रीयमाणेषु युष्माकं किं फलं? पापिलोका अपि स्वेषु प्रीयमाणेषु प्रीयन्ते।


लूकनामा प्रियश्चिकित्सको दीमाश्च युष्मभ्यं नमस्कुर्व्वाते।


यूयं लायदिकेयास्थान् भ्रातृन् नुम्फां तद्गृहस्थितां समितिञ्च मम नमस्कारं ज्ञापयत।


पापं कृत्वा युष्माकं चपेटाघातसहनेन का प्रशंसा? किन्तु सदाचारं कृत्वा युष्माकं यद् दुःखसहनं तदेवेश्वरस्य प्रियं।