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मत्ती 5:32 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

किन्त्वहं युष्मान् व्याहरामि, व्यभिचारदोषे न जाते यदि कश्चिन् निजजायां परित्यजति, तर्हि स तां व्यभिचारयति; यश्च तां त्यक्तां स्त्रियं विवहति, सोपि व्यभिचरति।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

কিন্ত্ৱহং যুষ্মান্ ৱ্যাহৰামি, ৱ্যভিচাৰদোষে ন জাতে যদি কশ্চিন্ নিজজাযাং পৰিত্যজতি, তৰ্হি স তাং ৱ্যভিচাৰযতি; যশ্চ তাং ত্যক্তাং স্ত্ৰিযং ৱিৱহতি, সোপি ৱ্যভিচৰতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

কিন্ত্ৱহং যুষ্মান্ ৱ্যাহরামি, ৱ্যভিচারদোষে ন জাতে যদি কশ্চিন্ নিজজাযাং পরিত্যজতি, তর্হি স তাং ৱ্যভিচারযতি; যশ্চ তাং ত্যক্তাং স্ত্রিযং ৱিৱহতি, সোপি ৱ্যভিচরতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

ကိန္တွဟံ ယုၐ္မာန် ဝျာဟရာမိ, ဝျဘိစာရဒေါၐေ န ဇာတေ ယဒိ ကၑ္စိန် နိဇဇာယာံ ပရိတျဇတိ, တရှိ သ တာံ ဝျဘိစာရယတိ; ယၑ္စ တာံ တျက္တာံ သ္တြိယံ ဝိဝဟတိ, သောပိ ဝျဘိစရတိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

kintvahaM yuSmAn vyAharAmi, vyabhicAradOSE na jAtE yadi kazcin nijajAyAM parityajati, tarhi sa tAM vyabhicArayati; yazca tAM tyaktAM striyaM vivahati, sOpi vyabhicarati|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

કિન્ત્વહં યુષ્માન્ વ્યાહરામિ, વ્યભિચારદોષે ન જાતે યદિ કશ્ચિન્ નિજજાયાં પરિત્યજતિ, તર્હિ સ તાં વ્યભિચારયતિ; યશ્ચ તાં ત્યક્તાં સ્ત્રિયં વિવહતિ, સોપિ વ્યભિચરતિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

kintvahaM yuSmAn vyAharAmi, vyabhicAradoSe na jAte yadi kazcin nijajAyAM parityajati, tarhi sa tAM vyabhicArayati; yazca tAM tyaktAM striyaM vivahati, sopi vyabhicarati|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



मत्ती 5:32
12 अन्तरसन्दर्भाः  

किन्त्वहं युष्मान् वदामि, यदि कश्चित् कामतः काञ्चन योषितं पश्यति, तर्हि स मनसा तदैव व्यभिचरितवान्।


यः कश्चित् स्वीयां भार्य्यां विहाय स्त्रियमन्यां विवहति स परदारान् गच्छति, यश्च ता त्यक्तां नारीं विवहति सोपि परदारान गच्छति।


अपरञ्च मूसा एलियश्चोभौ तेजस्विनौ दृष्टौ


तदा तस्मात् पयोदाद् इयमाकाशीया वाणी निर्जगाम, ममायं प्रियः पुत्र एतस्य कथायां मनो निधत्त।


एतत्कारणात् पत्युर्जीवनकाले नारी यद्यन्यं पुरुषं विवहति तर्हि सा व्यभिचारिणी भवति किन्तु यदि स पति र्म्रियते तर्हि सा तस्या व्यवस्थाया मुक्ता सती पुरुषान्तरेण व्यूढापि व्यभिचारिणी न भवति।


भार्य्यायाः स्वदेहे स्वत्वं नास्ति भर्त्तुरेव, तद्वद् भर्त्तुरपि स्वदेहे स्वत्वं नास्ति भार्य्याया एव।