वणिक्षु मम वित्तार्पणं तवोचितमासीत्, येनाहमागत्य वृद्व्या साकं मूलमुद्राः प्राप्स्यम्।
मत्ती 25:28 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari अतोस्मात् तां पोटलिकाम् आदाय यस्य दश पोटलिकाः सन्ति तस्मिन्नर्पयत। अधिकानि संस्करणानिসত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script অতোস্মাৎ তাং পোটলিকাম্ আদায যস্য দশ পোটলিকাঃ সন্তি তস্মিন্নৰ্পযত| সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script অতোস্মাৎ তাং পোটলিকাম্ আদায যস্য দশ পোটলিকাঃ সন্তি তস্মিন্নর্পযত| သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script အတောသ္မာတ် တာံ ပေါဋလိကာမ် အာဒါယ ယသျ ဒၑ ပေါဋလိကား သန္တိ တသ္မိန္နရ္ပယတ၊ satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script atOsmAt tAM pOTalikAm AdAya yasya daza pOTalikAH santi tasminnarpayata| સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script અતોસ્માત્ તાં પોટલિકામ્ આદાય યસ્ય દશ પોટલિકાઃ સન્તિ તસ્મિન્નર્પયત| satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script atosmAt tAM poTalikAm AdAya yasya daza poTalikAH santi tasminnarpayata| |
वणिक्षु मम वित्तार्पणं तवोचितमासीत्, येनाहमागत्य वृद्व्या साकं मूलमुद्राः प्राप्स्यम्।
येन वर्द्व्यते तस्मिन्नैवार्पिष्यते, तस्यैव च बाहुल्यं भविष्यति, किन्तु येन न वर्द्व्यते, तस्यान्तिके यत् किञ्चन तिष्ठति, तदपि पुनर्नेष्यते।
किन्तु प्रयोजनीयम् एकमात्रम् आस्ते। अपरञ्च यमुत्तमं भागं कोपि हर्त्तुं न शक्नोति सएव मरियमा वृतः।
पश्चात् स समीपस्थान् जनान् आज्ञापयत् अस्मात् मुद्रा आनीय यस्य दशमुद्राः सन्ति तस्मै दत्त।