मत्ती 25:17 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari यश्च दासो द्वे पोटलिके अलभत, सोपि ता मुद्रा द्विगुणीचकार। अधिकानि संस्करणानिসত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script যশ্চ দাসো দ্ৱে পোটলিকে অলভত, সোপি তা মুদ্ৰা দ্ৱিগুণীচকাৰ| সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script যশ্চ দাসো দ্ৱে পোটলিকে অলভত, সোপি তা মুদ্রা দ্ৱিগুণীচকার| သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script ယၑ္စ ဒါသော ဒွေ ပေါဋလိကေ အလဘတ, သောပိ တာ မုဒြာ ဒွိဂုဏီစကာရ၊ satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script yazca dAsO dvE pOTalikE alabhata, sOpi tA mudrA dviguNIcakAra| સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script યશ્ચ દાસો દ્વે પોટલિકે અલભત, સોપિ તા મુદ્રા દ્વિગુણીચકાર| satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script yazca dAso dve poTalike alabhata, sopi tA mudrA dviguNIcakAra| |
किन्तु यो दास एकां पोटलिकां लब्धवान्, स गत्वा भूमिं खनित्वा तन्मध्ये निजप्रभोस्ता मुद्रा गोपयाञ्चकार।
स सपरिवारो भक्त ईश्वरपरायणश्चासीत्; लोकेभ्यो बहूनि दानादीनि दत्वा निरन्तरम् ईश्वरे प्रार्थयाञ्चक्रे।
यस्मिन् इच्छुकता विद्यते तेन यन्न धार्य्यते तस्मात् सोऽनुगृह्यत इति नहि किन्तु यद् धार्य्यते तस्मादेव।
सा यत् शिशुपोषणेनातिथिसेवनेन पवित्रलोकानां चरणप्रक्षालनेन क्लिष्टानाम् उपकारेण सर्व्वविधसत्कर्म्माचरणेन च सत्कर्म्मकरणात् सुख्यातिप्राप्ता भवेत् तदप्यावश्यकं।
येन यो वरो लब्धस्तेनैव स परम् उपकरोतृ, इत्थं यूयम् ईश्वरस्य बहुविधप्रसादस्योत्तमा भाण्डागाराधिपा भवत।