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मत्ती 19:8 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

ततः स कथितवान्, युष्माकं मनसां काठिन्याद् युष्मान् स्वां स्वां जायां त्यक्तुम् अन्वमन्यत किन्तु प्रथमाद् एषो विधिर्नासीत्।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

ততঃ স কথিতৱান্, যুষ্মাকং মনসাং কাঠিন্যাদ্ যুষ্মান্ স্ৱাং স্ৱাং জাযাং ত্যক্তুম্ অন্ৱমন্যত কিন্তু প্ৰথমাদ্ এষো ৱিধিৰ্নাসীৎ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

ততঃ স কথিতৱান্, যুষ্মাকং মনসাং কাঠিন্যাদ্ যুষ্মান্ স্ৱাং স্ৱাং জাযাং ত্যক্তুম্ অন্ৱমন্যত কিন্তু প্রথমাদ্ এষো ৱিধির্নাসীৎ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

တတး သ ကထိတဝါန်, ယုၐ္မာကံ မနသာံ ကာဌိနျာဒ် ယုၐ္မာန် သွာံ သွာံ ဇာယာံ တျက္တုမ် အနွမနျတ ကိန္တု ပြထမာဒ် ဧၐော ဝိဓိရ္နာသီတ်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

tataH sa kathitavAn, yuSmAkaM manasAM kAThinyAd yuSmAn svAM svAM jAyAM tyaktum anvamanyata kintu prathamAd ESO vidhirnAsIt|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

તતઃ સ કથિતવાન્, યુષ્માકં મનસાં કાઠિન્યાદ્ યુષ્માન્ સ્વાં સ્વાં જાયાં ત્યક્તુમ્ અન્વમન્યત કિન્તુ પ્રથમાદ્ એષો વિધિર્નાસીત્|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

tataH sa kathitavAn, yuSmAkaM manasAM kAThinyAd yuSmAn svAM svAM jAyAM tyaktum anvamanyata kintu prathamAd eSo vidhirnAsIt|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



मत्ती 19:8
14 अन्तरसन्दर्भाः  

तदानीं ते तं प्रत्यवदन्, तथात्वे त्याज्यपत्रं दत्त्वा स्वां स्वां जायां त्यक्तुं व्यवस्थां मूसाः कथं लिलेख?


अतो युष्मानहं वदामि, व्यभिचारं विना यो निजजायां त्यजेत् अन्याञ्च विवहेत्, स परदारान् गच्छति; यश्च त्यक्तां नारीं विवहति सोपि परदारेषु रमते।


तदानीं यीशुः प्रत्यवोचत्; ईदानीम् अनुमन्यस्व, यत इत्थं सर्व्वधर्म्मसाधनम् अस्माकं कर्त्तव्यं, ततः सोऽन्वमन्यत।


ततो भूतौ तौ तस्यान्तिके विनीय कथयामासतुः, यद्यावां त्याजयसि, तर्हि वराहाणां मध्येव्रजम् आवां प्रेरय।


तदा यीशुः प्रत्युवाच, युष्माकं मनसां काठिन्याद्धेतो र्मूसा निदेशमिमम् अलिखत्।


शेषत एकादशशिष्येषु भोजनोपविष्टेषु यीशुस्तेभ्यो दर्शनं ददौ तथोत्थानात् परं तद्दर्शनप्राप्तलोकानां कथायामविश्वासकरणात् तेषामविश्वासमनःकाठिन्याभ्यां हेतुभ्यां स तांस्तर्जितवान्।


एतद् आदेशतो नहि किन्त्वनुज्ञात एव मया कथ्यते,