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मत्ती 11:8 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

वा किं वीक्षितुं वहिर्गतवन्तः? किं परिहितसूक्ष्मवसनं मनुजमेकं? पश्यत, ये सूक्ष्मवसनानि परिदधति, ते राजधान्यां तिष्ठन्ति।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

ৱা কিং ৱীক্ষিতুং ৱহিৰ্গতৱন্তঃ? কিং পৰিহিতসূক্ষ্মৱসনং মনুজমেকং? পশ্যত, যে সূক্ষ্মৱসনানি পৰিদধতি, তে ৰাজধান্যাং তিষ্ঠন্তি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

ৱা কিং ৱীক্ষিতুং ৱহির্গতৱন্তঃ? কিং পরিহিতসূক্ষ্মৱসনং মনুজমেকং? পশ্যত, যে সূক্ষ্মৱসনানি পরিদধতি, তে রাজধান্যাং তিষ্ঠন্তি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

ဝါ ကိံ ဝီက္ၐိတုံ ဝဟိရ္ဂတဝန္တး? ကိံ ပရိဟိတသူက္ၐ္မဝသနံ မနုဇမေကံ? ပၑျတ, ယေ သူက္ၐ္မဝသနာနိ ပရိဒဓတိ, တေ ရာဇဓာနျာံ တိၐ္ဌန္တိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

vA kiM vIkSituM vahirgatavantaH? kiM parihitasUkSmavasanaM manujamEkaM? pazyata, yE sUkSmavasanAni paridadhati, tE rAjadhAnyAM tiSThanti|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

વા કિં વીક્ષિતું વહિર્ગતવન્તઃ? કિં પરિહિતસૂક્ષ્મવસનં મનુજમેકં? પશ્યત, યે સૂક્ષ્મવસનાનિ પરિદધતિ, તે રાજધાન્યાં તિષ્ઠન્તિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

vA kiM vIkSituM vahirgatavantaH? kiM parihitasUkSmavasanaM manujamekaM? pazyata, ye sUkSmavasanAni paridadhati, te rAjadhAnyAM tiSThanti|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



मत्ती 11:8
11 अन्तरसन्दर्भाः  

अनन्तरं तयोः प्रस्थितयो र्यीशु र्योहनम् उद्दिश्य जनान् जगाद, यूयं किं द्रष्टुं वहिर्मध्येप्रान्तरम् अगच्छत? किं वातेन कम्पितं नलं?


तर्हि यूयं किं द्रष्टुं बहिरगमत, किमेकं भविष्यद्वादिनं? तदेव सत्यं। युष्मानहं वदामि, स भविष्यद्वादिनोपि महान्;


एतद्वचनं यिशयियभविष्यद्वादिना योहनमुद्दिश्य भाषितम्। योहनो वसनं महाङ्गरोमजं तस्य कटौ चर्म्मकटिबन्धनं; स च शूककीटान् मधु च भुक्तवान्।


यूयं किं द्रष्टुं निरगमत? किं सूक्ष्मवस्त्रपरिधायिनं कमपि नरं? किन्तु ये सूक्ष्ममृदुवस्त्राणि परिदधति सूत्तमानि द्रव्याणि भुञ्जते च ते राजधानीषु तिष्ठन्ति।


वयमद्यापि क्षुधार्त्तास्तृष्णार्त्ता वस्त्रहीनास्ताडिता आश्रमरहिताश्च सन्तः


परिश्रमक्लेशाभ्यां वारं वारं जागरणेन क्षुधातृष्णाभ्यां बहुवारं निराहारेण शीतनग्नताभ्याञ्चाहं कालं यापितवान्।


पश्चात् मम द्वाभ्यां साक्षिभ्यां मया सामर्थ्यं दायिष्यते तावुष्ट्रलोमजवस्त्रपरिहितौ षष्ठ्यधिकद्विशताधिकसहस्रदिनानि यावद् भविष्यद्वाक्यानि वदिष्यतः।