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मार्क 5:40 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

तस्मात्ते तमुपजहसुः किन्तु यीशुः सर्व्वान बहिष्कृत्य कन्यायाः पितरौ स्वसङ्गिनश्च गृहीत्वा यत्र कन्यासीत् तत् स्थानं प्रविष्टवान्।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

তস্মাত্তে তমুপজহসুঃ কিন্তু যীশুঃ সৰ্ৱ্ৱান বহিষ্কৃত্য কন্যাযাঃ পিতৰৌ স্ৱসঙ্গিনশ্চ গৃহীৎৱা যত্ৰ কন্যাসীৎ তৎ স্থানং প্ৰৱিষ্টৱান্|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

তস্মাত্তে তমুপজহসুঃ কিন্তু যীশুঃ সর্ৱ্ৱান বহিষ্কৃত্য কন্যাযাঃ পিতরৌ স্ৱসঙ্গিনশ্চ গৃহীৎৱা যত্র কন্যাসীৎ তৎ স্থানং প্রৱিষ্টৱান্|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

တသ္မာတ္တေ တမုပဇဟသုး ကိန္တု ယီၑုး သရွွာန ဗဟိၐ္ကၖတျ ကနျာယား ပိတရော် သွသင်္ဂိနၑ္စ ဂၖဟီတွာ ယတြ ကနျာသီတ် တတ် သ္ထာနံ ပြဝိၐ္ဋဝါန်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

tasmAttE tamupajahasuH kintu yIzuH sarvvAna bahiSkRtya kanyAyAH pitarau svasagginazca gRhItvA yatra kanyAsIt tat sthAnaM praviSTavAn|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

તસ્માત્તે તમુપજહસુઃ કિન્તુ યીશુઃ સર્વ્વાન બહિષ્કૃત્ય કન્યાયાઃ પિતરૌ સ્વસઙ્ગિનશ્ચ ગૃહીત્વા યત્ર કન્યાસીત્ તત્ સ્થાનં પ્રવિષ્ટવાન્|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

tasmAtte tamupajahasuH kintu yIzuH sarvvAna bahiSkRtya kanyAyAH pitarau svasaGginazca gRhItvA yatra kanyAsIt tat sthAnaM praviSTavAn|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



मार्क 5:40
14 अन्तरसन्दर्भाः  

यन्मुखं प्रविशति, तत् मनुजम् अमेध्यं न करोति, किन्तु यदास्यात् निर्गच्छति, तदेव मानुषममेध्यी करोती।


अन्यञ्च सारमेयेभ्यः पवित्रवस्तूनि मा वितरत, वराहाणां समक्षञ्च मुक्ता मा निक्षिपत; निक्षेपणात् ते ताः सर्व्वाः पदै र्दलयिष्यन्ति, परावृत्य युष्मानपि विदारयिष्यन्ति।


तस्मान् निवेशनं प्रविश्य प्रोक्तवान् यूयं कुत इत्थं कलहं रोदनञ्च कुरुथ? कन्या न मृता निद्राति।


अथ स तस्याः कन्याया हस्तौ धृत्वा तां बभाषे टालीथा कूमी, अर्थतो हे कन्ये त्वमुत्तिष्ठ इत्याज्ञापयामि।


तदैताः सर्व्वाः कथाः श्रुत्वा लोभिफिरूशिनस्तमुपजहसुः।


तदा श्मशानाद् उत्थानस्य कथां श्रुत्वा केचिद् उपाहमन्, केचिदवदन् एनां कथां पुनरपि त्वत्तः श्रोष्यामः।