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मार्क 3:27 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

अपरञ्च प्रबलं जनं प्रथमं न बद्धा कोपि तस्य गृहं प्रविश्य द्रव्याणि लुण्ठयितुं न शक्नोति, तं बद्व्वैव तस्य गृहस्य द्रव्याणि लुण्ठयितुं शक्नोति।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

অপৰঞ্চ প্ৰবলং জনং প্ৰথমং ন বদ্ধা কোপি তস্য গৃহং প্ৰৱিশ্য দ্ৰৱ্যাণি লুণ্ঠযিতুং ন শক্নোতি, তং বদ্ৱ্ৱৈৱ তস্য গৃহস্য দ্ৰৱ্যাণি লুণ্ঠযিতুং শক্নোতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

অপরঞ্চ প্রবলং জনং প্রথমং ন বদ্ধা কোপি তস্য গৃহং প্রৱিশ্য দ্রৱ্যাণি লুণ্ঠযিতুং ন শক্নোতি, তং বদ্ৱ্ৱৈৱ তস্য গৃহস্য দ্রৱ্যাণি লুণ্ঠযিতুং শক্নোতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

အပရဉ္စ ပြဗလံ ဇနံ ပြထမံ န ဗဒ္ဓါ ကောပိ တသျ ဂၖဟံ ပြဝိၑျ ဒြဝျာဏိ လုဏ္ဌယိတုံ န ၑက္နောတိ, တံ ဗဒွွဲဝ တသျ ဂၖဟသျ ဒြဝျာဏိ လုဏ္ဌယိတုံ ၑက္နောတိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

aparanjca prabalaM janaM prathamaM na baddhA kOpi tasya gRhaM pravizya dravyANi luNThayituM na zaknOti, taM badvvaiva tasya gRhasya dravyANi luNThayituM zaknOti|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

અપરઞ્ચ પ્રબલં જનં પ્રથમં ન બદ્ધા કોપિ તસ્ય ગૃહં પ્રવિશ્ય દ્રવ્યાણિ લુણ્ઠયિતું ન શક્નોતિ, તં બદ્વ્વૈવ તસ્ય ગૃહસ્ય દ્રવ્યાણિ લુણ્ઠયિતું શક્નોતિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

aparaJca prabalaM janaM prathamaM na baddhA kopi tasya gRhaM pravizya dravyANi luNThayituM na zaknoti, taM badvvaiva tasya gRhasya dravyANi luNThayituM zaknoti|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



मार्क 3:27
17 अन्तरसन्दर्भाः  

अन्यञ्च कोपि बलवन्त जनं प्रथमतो न बद्व्वा केन प्रकारेण तस्य गृहं प्रविश्य तद्द्रव्यादि लोठयितुं शक्नोति? किन्तु तत् कृत्वा तदीयगृस्य द्रव्यादि लोठयितुं शक्नोति।


अधुना जगतोस्य विचार: सम्पत्स्यते, अधुनास्य जगत: पती राज्यात् च्योष्यति।


अधिकन्तु शान्तिदायक ईश्वरः शैतानम् अविलम्बं युष्माकं पदानाम् अधो मर्द्दिष्यति। अस्माकं प्रभु र्यीशुख्रीष्टो युष्मासु प्रसादं क्रियात्। इति।


किञ्च तेन राजत्वकर्त्तृत्वपदानि निस्तेजांसि कृत्वा पराजितान् रिपूनिव प्रगल्भतया सर्व्वेषां दृष्टिगोचरे ह्रेपितवान्।


तेषाम् अपत्यानां रुधिरपललविशिष्टत्वात् सोऽपि तद्वत् तद्विशिष्टोऽभूत् तस्याभिप्रायोऽयं यत् स मृत्युबलाधिकारिणं शयतानं मृत्युना बलहीनं कुर्य्यात्


यः पापाचारं करोति स शयतानात् जातो यतः शयतान आदितः पापाचारी शयतानस्य कर्म्मणां लोपार्थमेवेश्वरस्य पुत्रः प्राकाशत।


हे बालकाः, यूयम् ईश्वरात् जातास्तान् जितवन्तश्च यतः संसाराधिष्ठानकारिणो ऽपि युष्मदधिष्ठानकारी महान्।