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लूका 18:4 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

ततः स प्राड्विवाकः कियद्दिनानि न तदङ्गीकृतवान् पश्चाच्चित्ते चिन्तयामास, यद्यपीश्वरान्न बिभेमि मनुष्यानपि न मन्ये

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

ততঃ স প্ৰাড্ৱিৱাকঃ কিযদ্দিনানি ন তদঙ্গীকৃতৱান্ পশ্চাচ্চিত্তে চিন্তযামাস, যদ্যপীশ্ৱৰান্ন বিভেমি মনুষ্যানপি ন মন্যে

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

ততঃ স প্রাড্ৱিৱাকঃ কিযদ্দিনানি ন তদঙ্গীকৃতৱান্ পশ্চাচ্চিত্তে চিন্তযামাস, যদ্যপীশ্ৱরান্ন বিভেমি মনুষ্যানপি ন মন্যে

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

တတး သ ပြာဍွိဝါကး ကိယဒ္ဒိနာနိ န တဒင်္ဂီကၖတဝါန် ပၑ္စာစ္စိတ္တေ စိန္တယာမာသ, ယဒျပီၑွရာန္န ဗိဘေမိ မနုၐျာနပိ န မနျေ

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

tataH sa prAPvivAkaH kiyaddinAni na tadaggIkRtavAn pazcAccittE cintayAmAsa, yadyapIzvarAnna bibhEmi manuSyAnapi na manyE

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

તતઃ સ પ્રાડ્વિવાકઃ કિયદ્દિનાનિ ન તદઙ્ગીકૃતવાન્ પશ્ચાચ્ચિત્તે ચિન્તયામાસ, યદ્યપીશ્વરાન્ન બિભેમિ મનુષ્યાનપિ ન મન્યે

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

tataH sa prADvivAkaH kiyaddinAni na tadaGgIkRtavAn pazcAccitte cintayAmAsa, yadyapIzvarAnna bibhemi manuSyAnapi na manye

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



लूका 18:4
8 अन्तरसन्दर्भाः  

ततः स मनसा चिन्तयित्वा कथयाम्बभूव ममैतानि समुत्पन्नानि द्रव्याणि स्थापयितुं स्थानं नास्ति किं करिष्यामि?


तदा स गृहकार्य्याधीशो मनसा चिन्तयामास, प्रभु र्यदि मां गृहकार्य्याधीशपदाद् भ्रंशयति तर्हि किं करिष्येऽहं? मृदं खनितुं मम शक्ति र्नास्ति भिक्षितुञ्च लज्जिष्येऽहं।


कुत्रचिन्नगरे कश्चित् प्राड्विवाक आसीत् स ईश्वरान्नाबिभेत् मानुषांश्च नामन्यत।


अथ तत्पुरवासिनी काचिद्विधवा तत्समीपमेत्य विवादिना सह मम विवादं परिष्कुर्व्विति निवेदयामास।


तदा क्षेत्रपति र्विचारयामास, ममेदानीं किं कर्त्तव्यं? मम प्रिये पुत्रे प्रहिते ते तमवश्यं दृष्ट्वा समादरिष्यन्ते।


अपरम् अस्माकं शारीरिकजन्मदातारोऽस्माकं शास्तिकारिणोऽभवन् ते चास्माभिः सम्मानितास्तस्माद् य आत्मनां जनयिता वयं किं ततोऽधिकं तस्य वशीभूय न जीविष्यामः?