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लूका 18:20 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

परदारान् मा गच्छ, नरं मा जहि, मा चोरय, मिथ्यासाक्ष्यं मा देहि, मातरं पितरञ्च संमन्यस्व, एता या आज्ञाः सन्ति तास्त्वं जानासि।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

পৰদাৰান্ মা গচ্ছ, নৰং মা জহি, মা চোৰয, মিথ্যাসাক্ষ্যং মা দেহি, মাতৰং পিতৰঞ্চ সংমন্যস্ৱ, এতা যা আজ্ঞাঃ সন্তি তাস্ত্ৱং জানাসি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

পরদারান্ মা গচ্ছ, নরং মা জহি, মা চোরয, মিথ্যাসাক্ষ্যং মা দেহি, মাতরং পিতরঞ্চ সংমন্যস্ৱ, এতা যা আজ্ঞাঃ সন্তি তাস্ত্ৱং জানাসি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

ပရဒါရာန် မာ ဂစ္ဆ, နရံ မာ ဇဟိ, မာ စောရယ, မိထျာသာက္ၐျံ မာ ဒေဟိ, မာတရံ ပိတရဉ္စ သံမနျသွ, ဧတာ ယာ အာဇ္ဉား သန္တိ တာသ္တွံ ဇာနာသိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

paradArAn mA gaccha, naraM mA jahi, mA cOraya, mithyAsAkSyaM mA dEhi, mAtaraM pitaranjca saMmanyasva, EtA yA AjnjAH santi tAstvaM jAnAsi|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

પરદારાન્ મા ગચ્છ, નરં મા જહિ, મા ચોરય, મિથ્યાસાક્ષ્યં મા દેહિ, માતરં પિતરઞ્ચ સંમન્યસ્વ, એતા યા આજ્ઞાઃ સન્તિ તાસ્ત્વં જાનાસિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

paradArAn mA gaccha, naraM mA jahi, mA coraya, mithyAsAkSyaM mA dehi, mAtaraM pitaraJca saMmanyasva, etA yA AjJAH santi tAstvaM jAnAsi|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



लूका 18:20
15 अन्तरसन्दर्भाः  

यीशुरुवाच, मां कुतः परमं वदसि? ईश्वरं विना कोपि परमो न भवति।


तदा स उवाच, बाल्यकालात् सर्व्वा एता आचरामि।


वस्तुतः परदारान् मा गच्छ, नरहत्यां मा कार्षीः, चैर्य्यं मा कार्षीः, मिथ्यासाक्ष्यं मा देहि, लोभं मा कार्षीः, एताः सर्व्वा आज्ञा एताभ्यो भिन्ना या काचिद् आज्ञास्ति सापि स्वसमीपवासिनि स्ववत् प्रेम कुर्व्वित्यनेन वचनेन वेदिता।


अतएव व्यवस्थानुरूपैः कर्म्मभिः कश्चिदपि प्राणीश्वरस्य साक्षात् सपुण्यीकृतो भवितुं न शक्ष्यति यतो व्यवस्थया पापज्ञानमात्रं जायते।


त्वं निजपितरं मातरञ्च सम्मन्यस्वेति यो विधिः स प्रतिज्ञायुक्तः प्रथमो विधिः


हे बालाः, यूयं सर्व्वविषये पित्रोराज्ञाग्राहिणो भवत यतस्तदेव प्रभोः सन्तोषजनकं।