अपरमप्युक्तं तेन यूयं यस्यां पुर्य्यां यस्य निवेशनं प्रवेक्ष्यथ तां पुरीं यावन्न त्यक्ष्यथ तावत् तन्निवेशने स्थास्यथ।
लूका 10:7 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari अपरञ्च ते यत्किञ्चिद् दास्यन्ति तदेव भुक्त्वा पीत्वा तस्मिन्निवेशने स्थास्यथ; यतः कर्म्मकारी जनो भृतिम् अर्हति; गृहाद् गृहं मा यास्यथ। अधिकानि संस्करणानिসত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script অপৰঞ্চ তে যৎকিঞ্চিদ্ দাস্যন্তি তদেৱ ভুক্ত্ৱা পীৎৱা তস্মিন্নিৱেশনে স্থাস্যথ; যতঃ কৰ্ম্মকাৰী জনো ভৃতিম্ অৰ্হতি; গৃহাদ্ গৃহং মা যাস্যথ| সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script অপরঞ্চ তে যৎকিঞ্চিদ্ দাস্যন্তি তদেৱ ভুক্ত্ৱা পীৎৱা তস্মিন্নিৱেশনে স্থাস্যথ; যতঃ কর্ম্মকারী জনো ভৃতিম্ অর্হতি; গৃহাদ্ গৃহং মা যাস্যথ| သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script အပရဉ္စ တေ ယတ္ကိဉ္စိဒ် ဒါသျန္တိ တဒေဝ ဘုက္တွာ ပီတွာ တသ္မိန္နိဝေၑနေ သ္ထာသျထ; ယတး ကရ္မ္မကာရီ ဇနော ဘၖတိမ် အရှတိ; ဂၖဟာဒ် ဂၖဟံ မာ ယာသျထ၊ satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script aparanjca tE yatkinjcid dAsyanti tadEva bhuktvA pItvA tasminnivEzanE sthAsyatha; yataH karmmakArI janO bhRtim arhati; gRhAd gRhaM mA yAsyatha| સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script અપરઞ્ચ તે યત્કિઞ્ચિદ્ દાસ્યન્તિ તદેવ ભુક્ત્વા પીત્વા તસ્મિન્નિવેશને સ્થાસ્યથ; યતઃ કર્મ્મકારી જનો ભૃતિમ્ અર્હતિ; ગૃહાદ્ ગૃહં મા યાસ્યથ| satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script aparaJca te yatkiJcid dAsyanti tadeva bhuktvA pItvA tasminnivezane sthAsyatha; yataH karmmakArI jano bhRtim arhati; gRhAd gRhaM mA yAsyatha| |
अपरमप्युक्तं तेन यूयं यस्यां पुर्य्यां यस्य निवेशनं प्रवेक्ष्यथ तां पुरीं यावन्न त्यक्ष्यथ तावत् तन्निवेशने स्थास्यथ।
तस्मात् तस्मिन् निवेशने यदि मङ्गलपात्रं स्थास्यति तर्हि तन्मङ्गलं तस्य भविष्यति, नोचेत् युष्मान् प्रति परावर्त्तिष्यते।
अतः सा योषित् सपरिवारा मज्जिता सती विनयं कृत्वा कथितवती, युष्माकं विचाराद् यदि प्रभौ विश्वासिनी जाताहं तर्हि मम गृहम् आगत्य तिष्ठत। इत्थं सा यत्नेनास्मान् अस्थापयत्।
पश्चात् तौ स्वगृहमानीय तयोः सम्मुखे खाद्यद्रव्याणि स्थापितवान् तथा स स्वयं तदीयाः सर्व्वे परिवाराश्चेश्वरे विश्वसन्तः सानन्दिता अभवन्।
ततस्तौ काराया निर्गत्य लुदियाया गृहं गतवन्तौ तत्र भ्रातृगणं साक्षात्कृत्य तान् सान्त्वयित्वा तस्मात् स्थानात् प्रस्थितौ।
अनन्तरं ता गृहाद् गृहं पर्य्यटन्त्य आलस्यं शिक्षन्ते केवलमालस्यं नहि किन्त्वनर्थकालापं पराधिकारचर्च्चाञ्चापि शिक्षमाणा अनुचितानि वाक्यानि भाषन्ते।